अंततः 19-07-2023 का दिन उगने वाला था। जिसकी प्रतीक्षा मैं दिनांक 02-06-2023 से व्यग्रतापूर्वक कर रहा था। जिसके लिए माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पुनीत गुप्ता जी ने उत्तरदाताओं को सकारात्मक रूप से आपत्तियां भरने हेतु कड़ा आदेश पारित किया हुआ था। जिसकी आगामी सुनवाई रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल के समक्ष विधिक कार्रवाई हेतु लगाई गई थी। जिसके लिए मैं पल-पल व्याकुल भी रहा था। चूंकि मैं नहीं जानता था कि "फॉर टेकिंग स्टेप्स' क्या होते हैं और उनका विधिवत पालन कैसे होता है?
जिसके लिए मैंने सुबह चार बजे बिस्तर छोड़ दिया था और नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साढ़े सात बजे बस में सवार होकर माननीय न्यायालय में सुनवाई हेतु चल पड़ा था। मन में भय था कि माननीय न्यायालय में पहुंचने में कहीं देरी न हो जाए। ऊपर से भयंकर बारिश भी हो रही थी। परन्तु मन में उमंगों का उत्साह उमड़ रहा था कि आज मैं माननीय न्यायिक रजिस्ट्रार महोदय जी को 110 के 110 साक्ष्यों से अवगत करवाऊंगा। उन्हें बताऊंगा कि मेरे साथ-साथ इसी माननीय न्यायालय में मेरी देवी स्वरूप धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली को भी कैसे-कैसे अनसुना किया गया था और कैसे-कैसे उस देवी का उपहास उड़ाकर उसे न्याय से वंचित रखा गया था?
जबकि वह अपने दूध पीते बच्चे को छाती से लगाकर माननीय न्यायालय से न्याय पाने हेतु पहुंचती थी। जहां वह अपने राष्ट्रधर्म, मातृधर्म, पत्नीधर्म के साथ-साथ भारत के लिखित संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन भी करती थी। जो स्पष्ट रूप से मौलिक अधिकारों को प्राप्त करने के साथ-साथ अपनी सिंदूर भरी मांग को यथावत बनाए रखने हेतु अपने पति अर्थात मेरी अंतड़ियों के क्षय रोग का उपचार, विभागीय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों की क्रूरतापूर्ण प्रताड़ना से मुक्ति और बार-बार पागलखानों में न भेजने की मांग कर रही थी। जो हमारा संवैधानिक मौलिक अधिकार था। जिसके लिए आज भी मैंने कमर कसी हुई है कि सत्य विश्व पटल पर लाना ही लाना है। ताकि अपनी धर्मपत्नी एवं बच्चों को सम्मान सहित घर ला सकूं और विश्व स्तर पर प्रमाणित कर सकूं कि "सत्यमेव जयते" एक यथार्थ है। जिसका शाब्दिक अर्थ भी यही कहता है कि अंततः जीत सत्य की होती है।
परन्तु दुर्भाग्यवश आज तक हमें संविधान के अनुच्छेद 21, 32 इत्यादि एवं दिव्यांगजन अधिनियम 1995 के नियम 1996 का क्षणिक लाभ भी माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय से प्राप्त नहीं हुआ था। जिसका साक्ष्य तथाकथित विद्वान माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. मीर जी द्वारा दिनांक 09 फरवरी 1998 का लिखित आदेश भी उन्हें पढ़ाऊंगा। जिससे निराश होकर मेरी सुकोमल एवं साधारण धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली का मानसिक संतुलन बिगड़ गया था और आजतक बिगड़ा हुआ है। सत्य तो यह भी है कि मेरा चार सदस्यीय परिवार निरंतर आर्थिक, सामाजिक एवं मानसिक तनाव से जूझते-जूझते पागल हो चुका है। जिसका जीवित उदाहरण यह है कि हम वर्तमान समय में आर्थिक रूप से सशक्त होते हुए भी अलग-अलग नारकीय जीवनयापन कर रहे हैं। ऐसी समस्त व्यथाएं क्रमवार ढंग से माननीय रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल श्री एस.आर. गांधी जी को साक्ष्यों सहित बताऊंगा। यह सोचते-सोचते मैं माननीय न्यायालय में पहुंच गया। जहां सर्वप्रथम मुख्य द्वार पर तैनात सुरक्षा कर्मी महोदय ने मेरे आत्मविश्वास और व्यक्तित्व की भूरी-भूरी प्रशंसा कर मेरा साहस बढ़ाया। जिसके लिए मैं समस्त सुरक्षाकर्मियों का हृदय तल से आभारी हूॅं।
किंतु जैसे ही मैं माननीय न्यायिक रजिस्ट्रार जी के कार्यालय में पहुंचा तो माननीय न्यायिक रजिस्ट्रार के सचिव महोदय जी ने मुझे एक सहायक द्वारा दूसरे कार्यालय में भेज दिया था। जहां मुझे मेरा केस नंबर पूछा गया और कहा गया कि आगामी सुनवाई हेतु दिनांक 12 सितंबर 2023 को पुनः आ जाना। यह सुनकर मेरे पांवों तले से जमीन खिसकने लगी थी। जिसकी हड़बड़ाहट के कारण मैंने उनसे वर्तमान सुनवाई करने हेतु विनम्रतापूर्वक आग्रह करते हुए कहा कि मैं यहां तारीख पर तारीख लेने के लिए कदापि नहीं आया हूॅं। जबकि मैं पिछले कई दशकों से न्याय मांगते-मागते बूढ़ा हो चुका हूॅं। परन्तु आज तक न्याय से वंचित हूॅं। जिसके आधार पर मेरे मूर्ख रिश्तेदार, मित्र और भाई बंधु भी मेरा उपहास उड़ाते हैं। यही कारण है कि मेरे बीवी बच्चे तक उपरोक्त षड्यंत्रकारी रिश्तेदारों की साज़िशों के शिकार होकर मुझसे घृणा करते हैं। जबकि मैं अपने परिवार को सुखी रखने का भरपूर प्रयास कर रहा हूॅं। परन्तु "न्याय" न मिलने के कारण न्याय "अन्याय" में परिवर्तित हो चुका है। जिसके फलस्वरूप मेरा बेटा तरूण बाली एम टैक और एलएलबी की पढ़ाई करने के बावजूद राष्ट्र के लिए "रिमोट" बनाने का इच्छुक स्वयं रिश्तेदारों के हाथों का "रिमोट कन्ट्रोल" बन चुका है। इसलिए कृपया आज पहले मेरी सुनवाई करते हुए मुझे कृतार्थ करें।
जिसकी गंभीरता को समझते हुए उन्होंने मुझे माननीय रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल के समक्ष उपस्थित होने का मूल्यवान सुझाव दिया। जिसकी पालना करते हुए मैं पुनः माननीय न्यायिक रजिस्ट्रार के सचिव आदरणीय श्री भारती जी के समक्ष उपस्थित हो गया और सारा वृत्तान्त उनकी झोली में डालते हुए उनसे माननीय रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल जी के अनुपम दर्शनों की अभिलाषा व्यक्त की थी। जिसकी पीड़ा को समझते हुए वह अपनी कुर्सी से उठे और माननीय न्यायिक रजिस्ट्रार के कमरे में मेरे लिए अनुमति लेने चले गए।
मेरा सौभाग्य यह रहा कि उन्होंने मेरे उचित और न्यायसंगत आग्रह को मन मस्तिष्क से स्वीकार किया और माननीय रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल श्री एस.आर. गांधी जी से अनुमति लेकर मुझे उनके कार्यालय में बुला लिया था। जहां उनके साक्षात दर्शन करते हुए मैंने उनका और उनकी माननीय न्यायालय के सम्मान में "जय हिन्द" के उद्घोष के साथ उन्हें सैल्यूट करते हुए गौरवान्वित हुआ था। मैंने पाया कि वह अत्यंत मृदुभाषी एवं उच्च व्यक्तित्व के स्वामी हैं। उनके व्यवहारिक आचरण से मैं अत्याधिक प्रभावित भी हुआ। मैंने अपने न्यायिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु उन्हें साक्ष्यों सहित अपनी सम्पूर्ण व्यथा सुनाने की इच्छा से अवगत करवाया और विनम्रतापूर्वक गुहार लगाई कि वह मेरे 110 के 110 साक्ष्यों को विधिवत देखें और उनका विधिक मूल्यांकन करें। ताकि न्याय जिंदा रहे।
जिस पर उन्होंने समय के अभाव के कारण मेरी प्रार्थना को अस्वीकार करते हुए मुझे बताया कि वह मेरी समस्त पीड़ाओं से पहले ही भलीभांति परिचित हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वह मेरी समस्त याचिकाओं को पढ़कर ही न्यायिक प्रक्रियाओं हेतु माननीय न्यायालय में सूचीबद्ध करते हैं। उक्त ज्ञान से मेरी आत्मा संतुष्ट हुई थी। उन्होंने मेरी प्रकाशित पुस्तकों को सम्मान की दृष्टि से निहारते हुए कहा था कि "आप तो विद्वान हैं"।
जिससे प्रसन्न होकर मैंने उनका हार्दिक आभार व्यक्त किया और उन्हें सादर बताया कि आपसे पहले माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री राजेश बिंदल जी, न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ठाकुर धीरज सिंह जी और मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पंकज मिथल जी भी मुझे "विद्वान और जीनियस" मान चुके हैं। जबकि वर्तमान में न्यायमूर्ति श्री राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति श्री पंकज मिथल जी माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीश बन चुके हैं। परन्तु उसके बावजूद मुझे आज भी "पागल की कलंकित पेंशन" से अपमानित किया जा रहा है। जिससे क्षुब्ध होकर मैंने उनसे पुनः आग्रह किया कि यदि आप मुझे "विद्वान" मानते हैं तो मुझे "मानसिक दिव्यांगता के कलंक" से छुटकारा दिलाएं या विश्व स्तर पर मेरे जैसा कोई उदाहरण प्रस्तुत करें "जिसमें किसी को पागल न होते हुए भी पागल की पेंशन दी जा रही हो? जिसमें विशेषता यह भी हो कि उक्त पेंशन अर्थात पागल की पेंशन का सीधा संबंध माननीय न्यायालय के असंवैधानिक निर्णय से हो?
जिसके प्रतिउत्तर में उन्होंने मुझे धैर्य रखने का परामर्श दिया। जिसके उपरांत उन्होंने मेरे साथ प्रेमपूर्वक हाथ मिलाते हुए शीघ्र सुनवाई की तिथि का आश्वासन दिया। मेरा सौभाग्य उस समय और भी स्वाभाविक हो गया जब वहां मुझे वरिष्ठ अधिवक्ता श्री शेख़ शकील जी एवं दो और अधिवक्ताओं से भी हाथ मिलाने का सुअवसर प्राप्त हुआ था।
उल्लेखनीय यह भी है कि उनके कार्यालय से बाहर निकलते ही मैं भावावेग के फलस्वरूप अत्यधिक भावुकता को रोक नहीं पाया था और फूट फूटकर रोया था। जिसपर माननीय रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल के सचिव श्री भारती एवं उनके चतुर्थ श्रेणी के तीन कर्मचारियों ने अपनी मानवीय संवेदनाओं का परिचय देते हुए मेरी अद्वितीय सहायता की और मुझे एक के बाद एक शीतल पानी के तीन गिलास पिलाए। तब जाकर मैं सामान्य हुआ। जिसके लिए मैं श्री भारती जी एवं तीनों मानवीय मूल्यों में परिपूर्ण व्यक्तित्वों का हृदय तल से आभारी हूॅं। जिनसे विदा होकर मैं बताए गए कार्यालय में गया था। जहां मुझे आगामी सुनवाई के लिए 31 जुलाई की तिथि की सूचना दी गई। जिसके लिए मैं उन सबका हृदय तल से आभारी हूॅं। जिसके उपरांत माननीय न्यायालय से अपने जाले लगे घर की ओर भारी वर्षा के बावजूद चल पड़ा था। जय हिन्द। सम्माननीयों ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।