जम्मू और कश्मीर के कतिपय मॅंचीय लेखकों का मानना है कि माननीय न्यायालय और माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों की धूर्त मनमानियों पर न्यायिक तार्किक टिप्पणियॉंयुक्त लेखन "राष्ट्रीय साहित्य" के क्षेत्र में नहीं आता है। जबकि यह उनके मतिभ्रम, कायरता और नपुंसकता का प्रमाणपत्र तो हो सकता है परन्तु स्वतंत्र भारत का समकालिक यथार्थ नहीं हो सकता है। क्योंकि यथार्थ स्वाभाविक रूप से अत्यधिक कड़वा होता है और कड़वाहटों के घूंट पीना स्वार्थी, चाटुकार, चापलूस व मॅंचीय लेखकों के वश में नहीं होता है।
विशेषकर उन्हें जिन्हें मॅंच पर मात्र चिपकना आता है और मॅंच से उठते ही वह गधे के सिर से लुप्त सींगों की भॉंति नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। चूॅंकि एक ओर इनकी पाचनक्रिया अत्यंत अशक्त होती है और दूसरी ओर उन्हें मन ही मन सुधारगृह अर्थात जेल जाने का डर भी सताता है।
क्योंकि माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों पर न्यायिक टिप्पणियॉं करने से पहले साहसिक लेखकों को भारतीय बलिदानियों द्वारा दिए अभूतपूर्व बलिदानों पर आधारित लिखित पवित्र ग्रंथ "संविधान" का ज्ञान होना चाहिए और "संवैधानिक धाराओं" का भी गूढ़ प्रज्ञान होना अनिवार्य है, जिसकी स्थानीय स्वार्थी चाटुकार, चापलूस, कायर और नपुंसक मॅंचीय लेखकों के पास भारी कमीं है, जिसके कारण वह कल्पनाओं में खोए काल्पनिक एवं मनगढ़ंत लेखन को बढ़ावा देते हुए राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय न्यायिक समस्याओं से कन्नी काट कर साहित्य अकादमी पुरस्कार अथवा पद्मश्री पुरस्कार प्राप्ति की दौड़ में अग्रसर रहते हैं। जिन्हें माननीय न्यायालय और माननीय न्यायाधीशों के दर्शन कराना भी अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। ताकि उन्हें डर की सीमाओं को लांघ चुके साहसिक लेखकों की लेखनी का अनुभव हो सके।
दुर्भाग्यवश ऐसे अनेक डरपोक लेखकों को मैं भलीभॉंति जानता हूॅं जिन्होंने भीष्म न्यायिक चुनौतीपूर्ण समस्याओं से अपना मूंह फेर कर, काल्पनिक एवं अनुवाद के साहित्य को प्राथमिकता देते हुए, साहित्य अकादमी के विभिन्न पुरस्कार प्राप्त कर पवित्र साहित्य को कलॅंकित किया है। हालॉंकि जागरूक लेखकों का मौलिक कर्तव्य बनता है कि वह मानवीय मूल्यों पर आधारित संवैधानिक संवेदनशील समस्याओं को प्राथमिकता देते हुए भ्रष्ट नेताओं पर ही नहीं बल्कि भ्रष्ट न्यायाधीशों पर भी साहसपूर्ण न्यायिक टिप्पणियॉं करें। ताकि राष्ट्र के चारों सशक्त स्तंभों का संतुलन बना रहे और राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता में स्वच्छ तरूण भारत दिन दोगुनी और रात चौगुनी वृद्धि कर सके।
अंततः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी "स्वस्थ एवं सशक्त लोकतंत्र" के आधार पर मेरी आपसे सादर विनम्र प्रार्थना है कि आप अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपने कर कमलों द्वारा सम्पूर्ण भारत की सरकारी पत्रिकाओं के मुख्य सम्पादकों सहित जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी के आदरणीय प्रशासनिक सचिव एवं विभिन्न सम्पादकों को निर्देश जारी करें कि वह वर्तमान माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा आरम्भ किए पारदर्शी एवं स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों पर न्यायिक योद्धाओं द्वारा सत्य पर आधारित राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तरीय निडर लेखकों के लिखे न्यायिक आलेखों को भी प्राथमिकता के आधार पर प्रकाशित करें और राष्ट्र निर्माण में वीरों एवं वीरॉंगनाओं के स्वर्णिम आलौकिक स्वप्नों को साकार करते हुए निडरतापूर्वक अपना अद्वितीय योगदान भी दें। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर
Grievance Status for registration number : PRSEC/E/2024/0000532
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
05/01/2024
Received By Ministry/Department
President's Secretariat
Grievance Description
राष्ट्रीय साहित्य में माननीय न्यायाधीशों पर टिप्पणियॉं आलेख जम्मू और कश्मीर के कतिपय मॅंचीय लेखकों का मानना है कि माननीय न्यायालय और माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों की धूर्त मनमानियों पर न्यायिक तार्किक टिप्पणियॉंयुक्त लेखन राष्ट्रीय साहित्य के क्षेत्र में नहीं आता है जबकि यह उनके मतिभ्रम कायरता और नपुंसकता का प्रमाणपत्र तो हो सकता है परन्तु स्वतंत्र भारत का समकालिक यथार्थ नहीं हो सकता है क्योंकि यथार्थ स्वाभाविक रूप से अत्यधिक कड़वा होता है और कड़वाहटों के घूंट पीना स्वार्थी चाटुकार चापलूस व मॅंचीय लेखकों के वश में नहीं होता है विशेषकर उन्हें जिन्हें मॅंच पर मात्र चिपकना आता है और मॅंच से उठते ही वह गधे के सिर से लुप्त सींगों की भॉंति नौ दो ग्यारह हो जाते हैं चूॅंकि एक ओर इनकी पाचनक्रिया अत्यंत अशक्त होती है और दूसरी ओर उन्हें मन ही मन सुधारगृह अर्थात जेल जाने का डर भी सताता है क्योंकि माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों पर न्यायिक टिप्पणियॉं करने से पहले साहसिक लेखकों को भारतीय बलिदानियों द्वारा दिए अभूतपूर्व बलिदानों पर आधारित लिखित पवित्र ग्रंथ संविधान का ज्ञान होना चाहिए और संवैधानिक धाराओं का भी गूढ़ प्रज्ञान होना अनिवार्य है जिसकी स्थानीय स्वार्थी चाटुकार चापलूस कायर और नपुंसक मॅंचीय लेखकों के पास भारी कमीं है जिसके कारण वह कल्पनाओं में खोए काल्पनिक एवं मनगढ़ंत लेखन को बढ़ावा देते हुए राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय न्यायिक समस्याओं से कन्नी काट कर साहित्य अकादमी पुरस्कार अथवा पद्मश्री पुरस्कार प्राप्ति की दौड़ में अग्रसर रहते हैं जिन्हें माननीय न्यायालय और माननीय न्यायाधीशों के दर्शन कराना भी अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है ताकि उन्हें डर की सीमाओं को लांघ चुके साहसिक लेखकों की लेखनी का अनुभव हो सके दुर्भाग्यवश ऐसे अनेक डरपोक लेखकों को मैं भलीभॉंति जानता हूॅं जिन्होंने भीष्म न्यायिक चुनौतीपूर्ण समस्याओं से अपना मूंह फेर कर काल्पनिक एवं अनुवाद के साहित्य को प्राथमिकता देते हुए साहित्य अकादमी के विभिन्न पुरस्कार प्राप्त कर पवित्र साहित्य को कलॅंकित किया है हालॉंकि जागरूक लेखकों का मौलिक कर्तव्य बनता है कि वह मानवीय मूल्यों पर आधारित संवैधानिक संवेदनशील समस्याओं को प्राथमिकता देते हुए भ्रष्ट नेताओं पर ही नहीं बल्कि भ्रष्ट न्यायाधीशों पर भी साहसपूर्ण न्यायिक टिप्पणियॉं करें ताकि राष्ट्र के चारों सशक्त स्तंभों का संतुलन बना रहे और राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता में स्वच्छ तरूण भारत दिन दोगुनी और रात चौगुनी वृद्धि कर सके अंततः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी स्वस्थ एवं सशक्त लोकतंत्र के आधार पर मेरी आपसे सादर विनम्र प्रार्थना है कि आप अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपने कर कमलों द्वारा सम्पूर्ण भारत की सरकारी पत्रिकाओं के मुख्य सम्पादकों सहित जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के आदरणीय प्रशासनिक सचिव एवं विभिन्न सम्पादकों को निर्देश जारी करें कि वह वर्तमान माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा आरम्भ किए पारदर्शी एवं स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों पर न्यायिक योद्धाओं द्वारा सत्य पर आधारित राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तरीय निडर लेखकों के लिखे न्यायिक आलेखों को भी प्राथमिकता के आधार पर प्रकाशित करें और राष्ट्र निर्माण में वीरों एवं वीरॉंगनाओं के स्वर्णिम आलौकिक स्वप्नों को साकार करते हुए निडरतापूर्वक अपना अद्वितीय योगदान भी दें सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं जम्मू
जम्मू और कश्मीर
Current Status
Grievance received
Forwarded to
President's Secretariat
Organisation name
President's Secretariat