तुम्हारे चेहरे की झुर्रियॉं चलचित्र की भॉंति मेरे मन मस्तिष्क पटल पर हमारे सम्पूर्ण जीवन की कष्टमय कहानियों का गुणगान कर रही हैं। प्रिय सोचकर बताना क्या उन कष्टमय क्षणों में हम सुखों के सागर में गोते नहीं लगाते थे? मेरी प्राणप्रिया सत्य बताना कि क्या वह पल तुम्हारी यौवन भरी गालों पर सुर्खियॉं नहीं बिखेरते थे? क्या आज इस बुढ़ापे में बता सकती हो कि कहॉं गये वो सुनहरे दिन और कहॉं गईं वह सुहागिन रातें, जिसमें हमारा दाम्पत्य जीवन समुद्र की ज्वार भाटाओं सा ऊपर नीचे होता था? हम एक दूसरे के समक्ष सम्पूर्ण पारदर्शी थे और दो होते भी एक थे।
मैं वास्तव में तुम्हारा ऋणी हूॅं। तुम्हारे माथे की बिंदी, ऑंखों के काजल, होंठों की लाल लिपस्टिक, कानों की बालियों, बालों के गजरे, श्रृंगार का दर्पण, पांवों के बिछुए, कपड़ों की जोड़ी और मंगलसूत्र का ऋणी हूॅं। परन्तु क्या करूं, यह तो आप भी मानती हो कि मैंने राष्ट्रधर्म और मातृभूमि का ऋण, भरपूर नहीं तो कुछ सीमा तक चुकाया ही है? जिस पर गौरव तो आप भी अनुभव कर रही होंगी। तुम्हें वह करवाचौथ भी अवश्य स्मरण होगा, जब तुम गहनों से लदी समस्त सुंदरियों से सुन्दर प्रमाणित हुई थीं। तुम्हारे बालों में लगी काली मेंहदी आज भी उसकी साक्षी है।
मुझे स्मरण है जब तुमने मुझे एक पुत्र रत्न से सम्मानित किया था। उसके कई वर्षों बाद मुझे एक कन्या का पिताश्री भी बनाया था। मुझे वह क्षण कैसे भूल सकते हैं? कैसे भूल सकता हूॅं नन्हें बेटे द्वारा एक रूपया मॉंगना और बेटी द्वारा एक रूपया खोने पर उसे दो उंगलियों से उसके कोमल गाल पर मारा गया थप्पड़? परन्तु उसके उपरांत भी मैंने अपने मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन किया। भ्रष्टाचार को खत्म करने का अंतिम प्रयास भी किया है। जिसके फलस्वरूप आज कई विश्व कीर्तिमान भी स्थापित कर चुका हूॅं।
अर्धांगिनी होने के आधार पर आपको बताना परम आवश्यक है कि तुम्हारे पति के रूप में ऑंखों पर लगे चश्मे की परवाह न करते हुए वही पीड़ा अब भी मेरी ऑंखों से नीर बनकर बह रही है। परन्तु तुम्हारे चेहरे की झुर्रियों के आगे उक्त क्षणिक पीड़ा नतमस्तक होकर क्षमा याचना करने में व्यस्त है। चूंकि पुरुष की पीड़ाओं से स्त्री की पीड़ा सदैव अधिक होती है। चूंकि स्त्री जननी होती है और सर्वविदित है कि जननी ही प्रसवपीड़ा को सहन करने की अदम्य शक्ति रखती है। जिसे देवता भी नमन करते हैं।
अतः प्राणप्रिया अंतर्मन से क्षमा प्रार्थी हूॅं। वैसे मोक्ष प्राप्ति के करीब पहुॅंच चुका हूॅं। चूंकि मैं माननीय उच्च न्यायालय में छाती ठोककर विपक्षियों से बिंदास प्रश्न पूछ रहा हूॅं और विपक्षी उत्तर देने की स्थिति में भी नहीं हैं। इसलिए शीघ्र ही तुम्हारा छीना गया अधिकार तुम्हें लौटने में सक्षम होने वाला हूॅं। आशा है तब तक आप मुझे प्रत्येक दृष्टिकोण से क्षमा कर दोगी। सम्माननीय जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।