अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि दो प्रख्यात लेखकों में "मित्रतापूर्ण प्रतिद्वंद" के नाम से लेखन प्रतियोगिता आरम्भ हो चुकी है। जिसमें एक ओर भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीनस्थ सशस्त्र सीमा बल विभाग द्वारा देय मानसिक दिव्यांगता पेंशन पाने वाला इंदु भूषण बाली खड़ा है और दूसरी ओर जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू के डोगरी-हिंदी शीराज़ा का मुख्य सम्पादक आदरणीय विद्वान डॉ. रत्न बसोत्रा जी शोभायमान हैं। जिन्हें मेरे "शिष्य" श्री यशपाल निर्मल जी का सम्पूर्ण सहयोग है।
उल्लेखनीय है कि सशस्त्र सीमा बल ने पागल घोषित कर दिनांक 18 अगस्त 2000 को इंदु भूषण बाली को सेवा से निरस्त कर दिया था। उन कठिन परिस्थितियों में वर्तमान साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्तकर्ता एवं शीराज़ा के सह संपादक आदरणीय श्री यशपाल निर्मल जी के संग उसने समाचार पत्र बेचे थे और यशपाल निर्मल जी को समाचार उपलब्ध कर देने से अपने पेट की अग्नि को शांत किया था। उन दिनों आदरणीय यशपाल निर्मल जी को पत्रकारिता के लिए देनिक जागरण से 1350 रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था। जो शोधार्थियों के शोध का विषय है।
मित्रो यशपाल निर्मल जी सहित सम्पूर्ण अकादमी आदरणीय विद्वान प्रतिस्पर्धी डॉ. रत्न बसोत्रा जी का प्रोत्साहन कर रहे हैं। जिसे सराहनीय कहना अतिश्योक्ति नहीं है। सुना यह भी जा रहा है कि उच्च कोटि के विद्वान अर्थात महाविद्वान लेखक भी आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी के पक्षधर हैं और उनका मनोबल बढ़ाने में उनकी सहायता भी कर रहे हैं। जिसका एक पारदर्शी प्रमाण यह है कि उक्त आकर्षक मैत्रीपूर्ण प्रतिद्वंद नामक प्रतियोगिता में प्रत्यक्षदर्शी लेखकों ने चुप्पी साध रखी है। जिन्हें मूकदर्शक की संज्ञा दी जा सकती है। जो न तो मित्र के हित में है और न ही राष्ट्रहित में है।
क्योंकि साहित्यकारों, लेखकों, रचनाकारों को सामाजिक दर्पण माना जाता है। ऐसे में समसामयिक उच्च कोटि के लेखकों में छाया "मौन" साहित्यिक जगत की उदासीनता प्रकट करते हुए संवैधानिक प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। जिसकी परिधि में कुकरमुत्ते की भांति उग आए उच्चस्थ अधिकारी, डॉक्टर और प्रोफ़ेसर भी प्रश्नचिन्हों के कटघरे में खड़े हैं। जबकि सत्यमेव जयते हमारी सभ्यता और संस्कृति ही नहीं बल्कि संवैधानिक प्रतिबद्धता भी है। जिसके अंतर्गत सत्य का प्रतीक माने जाने वाले साहित्य अकादमी/पद्मश्री पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकार भी सार्वजनिक टिप्पणियों से क्यों बच रहे हैं? जबकि इनके बीच इंदु भूषण बाली अपनी आंतों की तपेदिक रोग की दवाइयां राज्य और केंद्र सरकार से नहीं मिलने के उपरांत रेडक्रास और विश्व स्वास्थ्य संगठन से मांगता रहा था और उक्त महाविद्वान उसकी विवशता को पागल की संज्ञा देकर उसका उपहास उड़ाते रहे थे। जिसके प्रमाण चीख चीखकर कर माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय से सम्पूर्ण न्याय की मांग कर रहे हैं। वह यह भी पूछ रहे हैं कि तपेदिक दवाई के लिए इंदु भूषण बाली को माननीय उपभोक्ता न्यायालय जम्मू का दरवाजा क्यों खटखटाना पड़ा था और उस समय महाविद्वान लेखक कौन सी बगिया में हरा-हरा घास चर रहे थे?
प्रश्न स्वाभाविक हैं कि समाज का दर्पण माने जाने वाले पद्मश्री पुरस्कार प्राप्तकर्ता लेखकों के कानों में "जूं" क्यों नहीं रेंग रही थी? उस समय जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी ने अपने पंजिकृत लेखक इंदु भूषण बाली की व्यथा पर आधारित पत्रवाचनों/आलेखों/कहानियों इत्यादि में अपने मौलिक कर्तव्यों का निर्वहन क्यों नहीं किया था? उसे जीवित रहने के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध क्यों नहीं करवाई गई थी? ऐसी मानवीय सहायता के लिए जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा ने कौन कौन से कदम उठाकर मानवीय उपाय किए थे? ऐसे मानवीय संवेदनशीलतापूर्ण प्रश्नों में उक्त मैत्रीपूर्ण प्रतिद्वंद नामक प्रतियोगिता में दिव्यांगता पेंशनभोगी इंदु भूषण बाली के समक्ष खड़े कल्चरल अकादमी की पत्रिका शीराज़ा के मुख्य सम्पादक सशक्त महाविद्वान डॉ. रत्न बसोत्रा जी ईश्वरीय कृपा से अब बौने प्रमाणित नहीं होंगे तो फिर कब होंगे?
हालांकि सुनने में आया है कि आदरणीय डॉ. रत्न बसोत्रा जी उक्त लेखन प्रतिस्पर्धा को माननीय न्यायालय की देखरेख में सम्पन्न करवाना चाहते हैं। जिसका क्षेत्रफल अधिनियम 1860 की धारा 499/500 के अंतर्गत माननीय सैशन कोर्ट से लेकर माननीय उच्चतम न्यायालय तक है। जिसपर तय है कि अंतिम मोहर भारत के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में अन्य विद्वान न्यायाधीशों की भी लगेगी। दुर्भाग्यवश जिसमें लम्बी यात्रा तय करनी पड़ेगी। परन्तु समझने वाली बात यह है कि उपरोक्त विशेष शुभ परिस्थितियों में आदरणीय डॉ. रत्न बसोत्रा जी डोगरी और हिंदी शीराज़ा के मुख्य सम्पादक होते हुए भी "अंग्रेजी भाषा" में ऊलजलूल किसके परामर्श से लिख रहे हैं? जिसे वह अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर वायरल भी कर रहे हैं। जिससे उनका मानसिक तनाव भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर हो रहा है।
जिसके दुष्प्रभावों से कल्चरल अकादमी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। जिसके आधार पर कल्चरल अकादमी के आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी विभागीय जांच करने पर विवश भी हो रहे हैं। चूंकि विभागीय कर्मचारियों/अधिकारियों को अनुशासन में रखना उनका मौलिक कर्तव्य है। जबकि उनके अधीनस्थ शीराजा़ के मुख्य सम्पादक आदरणीय विद्वान प्रतिस्पर्धी डॉ रत्न बसोत्रा जी द्वारा रचित अंग्रेजी रचना फेसबुक पर सुर्खियां बटोर रही है। जिसके आधार पर उनकी डोगरी/हिंदी भाषा में प्राप्त "विद्या वाचस्पति" की उपाधियों पर स्वतः प्रश्नचिन्ह लग गया है। चूंकि प्रतियोगिता हिंदी भाषा के लेखन पर चल रही है। जिसके कारण समस्त प्रत्यक्षदर्शियों की समझ में यह नहीं आ रहा कि वे अपनी मातृभाषा डोगरी और दादी कहलाने वाली हिंदी भाषा को त्यागकर विदेशी भाषा "अंग्रेजी" की शरण में क्यों चले गए हैं?
अतः अकादमी के उच्च अधिकारियों को चाहिए कि वह अपने डोगरी/हिंदी मुख्य सम्पादक आदरणीय विद्वान डॉ रत्न बसोत्रा जी के लिए शक्तिवर्धक भोजन की व्यवस्था करें। जिनमें विशेषकर जम्मू कश्मीर प्राशसनिक सेवा अधिकारी के रूप में नियुक्त अकादमी सचिव आदरणीय श्री भरथ सिंह मन्हास जी का प्रथम मौलिक कर्तव्य बनता है। जिनके हस्ताक्षरित शपथपत्र पर ही न्यायिक प्रतिस्पर्धा का मूल्यांकन होगा। भले ही विद्वान मुख्य सम्पादक आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी उनके नेतृत्व को नहीं मानते। अन्यथा अब तक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन सहित समस्त कवि सम्मेलनों में भाग लेने वाले समस्त कवियों के नाम अब तक सार्वजनिक होकर अकादमी की जालस्थल (वैबसाइट) पर उपलब्ध हो जाने चाहिए थे। जिनके उपलब्ध नहीं होने के आधार पर उक्त प्रतियोगिता का शंखनाद करते हुए शुभारम्भ हो चुका है और यह भी तय है कि प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा की समयावधि लम्बी है। जिस यात्रा में कई बाधाएं पार करनी होंगी और प्रत्येक बाधा को पार करने के लिए जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश एडवोकेट जनरल सहित भारत के असिस्टेंट सालिसिटर जनरल कमेंट्री करेंगे। यह भी तय है कि हमारे बीच प्रत्येक चौके/छक्के पर लोकतंत्र का चौथा सशक्त स्तंभ "पत्रकारिता" भी डिजिटल इंडिया मिशन पर अपने संपादकीय प्रकाशित करने के लिए विवश होगी। जिसके संदर्भ में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित आदरणीय श्री विजय कुमार चोपड़ा जी अग्रणी भी हैं। क्या पता स्वातंत्र्योत्तर देश का उक्त लेखन "मित्रतापूर्ण प्रतिद्वंद" नामक प्रतिस्पर्धा प्रथम स्थान प्राप्त कर कीर्तिमान स्थापित कर दे? जिनमें मेरे गंभीर एवं महत्वपूर्ण प्रश्नों की आधारशिला पर मेरे विरुद्ध खड़े प्रतियोगी आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी को मेरे राष्ट्रीय प्रश्नों के साथ साथ केंद्र सरकार की प्रतिष्ठा के प्रतीक यक्ष प्रश्न का "उत्तर" भी देना ही पड़ेगा।
जिनमें आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी को ससम्मान उत्तर देना ही पड़ेगा कि उन्हे अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा राष्ट्र को समर्पित "डिजिटल इंडिया मिशन" को मानने में क्या विपत्तियां हैं? आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी को अनुशासनात्मक विभागीय जांच में तार्किक रूप से संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के माननीय कैबिनेट मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव जी को विस्तारपूर्वक बताना ही पड़ेगा कि उन्हें माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उनके माननीय विद्वान मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्र को समर्पित "डिजिटल इंडिया मिशन" अर्थात "पारदर्शी भारत अभियान" को सार्वजनिक अर्थात जन-जन तक पहुंचाने में विशेष रूप से आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी के आदेश के बावजूद आखिर आपत्तियां क्या हैं? ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।