shabd-logo

न्यायिक नपुंसकता और मौलिक कर्तव्यों की चक्की में सिसकते मौलिक अधिकार !              (आलेख) 

22 मई 2023

13 बार देखा गया 13
न्यायिक नपुंसकता और मौलिक कर्तव्यों की चक्की में सिसकते मौलिक अधिकार !
             (आलेख) 

           सत्य केवल उनके लिए ही कड़वा होता है जो झूठ में रहने के आदी हो चुके होते हैं और उन्हें अपने चारों ओर झूठ के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। उस पर भी वह व्यक्तित्व अपनेआप को समाज के महा प्रतिष्ठित और महाविद्वान प्राणियों की श्रेणी में सूचीबद्ध करवाने का सौभाग्य भी प्राप्त कर लेते हैं। परन्तु वह यह भूल जाते हैं कि "झूठ" को कितना भी संवार लें वह "सत्य" के प्रकाश में चुंधिया ही जाता है। ऐसे प्राणियों में कतिपय डॉक्टर, अधिवक्ता और तथाकथित माननीय न्यायाधीश यहां तक की भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी भी अछूते नहीं हैं। जिनकी न्यायिक नपुंसकता और मौलिक कर्तव्यों की चक्की में सिसकते मौलिक अधिकार चीख चीखकर उन्हें पूछ रहे हैं कि हमारा राष्ट्र "संविधान के अनुसार" कब चलेगा? कब तक पीड़ित प्रताड़ित याचिकाकर्ताओं की झोली में मात्र और मात्र "तारीख पर तारीख" डाली जाएगी? उन्हें न्याय कब मिलेगा? क्यों न्यायिक नपुंसकता और मौलिक कर्तव्यों की चक्की में हमारे मौलिक अधिकार सिसक रहे हैं? क्यों अठाईस वर्षों से समस्त साक्ष्यों को माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के पटल पर रखने के बावजूद मुझे न्याय नहीं दिया जा रहा? क्यों एक के बाद एक जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय का माननीय मुख्य न्यायाधीश भारीभरकम वेतन, भत्ते और अन्य राजसी सुख सुविधाओं को भोगकर भी मेरी याचिकाओं पर संवैधानिक निर्णय नहीं दे रहे? उसपर पहले की भांति वर्तमान माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी ने भी चुप्पी क्यों साध रखी है? जबकि आप राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली के संरक्षक हैं और मेरी असंख्य पत्र याचिकाएं दायर करने के उपरांत भी आपने अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक नहीं किया। आखिर क्यों? माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी उत्तर क्यों नहीं दे रहे? कृपया सादर शीघ्र अतिशीघ्र उत्तर देकर कृतार्थ करें। 
           माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी सार्वभौमिक सत्य यह है कि मैं आपसे "भीख" नहीं "न्याय" मांग रहा हूॅं। जो मेरा मौलिक अधिकार है और आपका मौलिक कर्तव्य है। जिससे आप पतली गली से नहीं भाग सकते। क्योंकि आप हम जैसे नागरिकों द्वारा दिए "टेक्स अर्थात कर" से भारीभरकम वेतन भत्ते और राजसी सुविधाओं का सुख भोग रहे हो। चूंकि आपके पिताश्री भी भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे हैं। जिनकी योग्यता के कारण और कॉलेजियम प्रणाली के आधार पर आप न्यायाधीश बने और अब आप अपनी योग्यता दर्शाने एवं अपने संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों से सरपट भागना शोभा नहीं देता। इसलिए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी मुझे न्याय नहीं तो कम से कम "उत्तर" तो दीजिए। चूंकि न्याय पाने हेतु उत्तर आवश्यक हैं।
           माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी उत्तर इसलिए भी आवश्यक हैं चूंकि मैं पिछले अठाईस वर्षों से माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय से न्याय मांग रहा हूॅं और न्याय तो दूर मुझे सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता मेरा पैतृक विभाग एसएसबी अर्थात सशस्त्र सीमा बल उचित उत्तर तक नहीं दे रहे और माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश उन्हें पिछले 09 माह से समय देते जा रहे हैं। जिसे संवैधानिक और लोकतांत्रिक दुर्भाग्य कहना अतिश्योक्ति नहीं है। 
           उल्लेखनीय है कि मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) द्वारा सीखी राष्ट्रभक्ति और मानवता सहित सशस्त्र सीमा बल विभाग ने निर्धारित लिखित एवं शारीरिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के साथ-साथ साक्षात्कार के उपरांत मुझे  05-12-1990 को शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता प्रमाणपत्र सहित सर्कल आर्गेनाइजर ज्यौड़ियां में नियुक्त किया था। जिसमें मेरा दो वर्ष का प्रोबेशन पीरियड अर्थात परिविक्षॉ अवधि थी अर्थात भारत के समस्त कर्मचारियों की भांति दो वर्ष के लिए अस्थाई था। जिस अवधि को मैंने कुशलतापूर्वक पूरा किया था। परन्तु उसके बावजूद मुझे भारत के समस्त कर्मचारियों की भांति भारतीय सेवा नियमों को तिलांजलि देते हुए मुझे तत्कालीन सक्षम प्राधिकारी एरिया आर्गनाइजर श्री के. डी. सिंह जी ने अपने मौलिक कर्तव्यों पर खरा नहीं उतरते हुए मुझे स्थाई नहीं किया था। जिसके आधार पर सक्षम प्राधिकारी श्री के. डी. सिंह जी दोषी हैं। जिसका दण्ड मैं, मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली और मेरे बच्चे निरंतर आज तक भोग रहे हैं और माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के तत्कालीन माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए. एम. मीर जी मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली की याचिका ओडव्ल्यूपी अंक 968/96 में अपनी मूर्खता का परिचय देते हुए और मुझे पागल बताते हुए 09 फरवरी 1998 में स्पष्ट आदेश पारित करते हैं कि याचिकाकर्ता के किसी अधिकार का हनन नहीं हुआ है और इसी आधार पर याचिका खारिज की जाती है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी "नारी सशक्तिकरण" का इससे बड़ा उपहास क्या होगा और इससे अधिक माननीय न्यायालय को कलंकित करते हुए "अन्याय" का उदाहरण कहॉं मिलेगा? क्या यह न्यायिक भ्रष्टाचार नहीं है? क्या यहॉं प्रमाणित नहीं हो रहा कि "न्यायिक नपुंसकता और मौलिक कर्तव्यों की चक्की में हमारे मौलिक अधिकार सिसक रहे हैं"? 
           माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी मेरी राष्ट्रभक्ति और मानवता के आधार पर मेरे तत्कालीन सर्कल आर्गेनाइजर श्री प्रदीप कुमार गुप्ता जी ने मुझे दिनांक 21-02-1994 को मानसिक प्रताड़ना सहित शारीरिक रूप से अत्यधिक पीटा था। जिसके कारण मैं कार्यालय में ही बेहोश हो गया था। लम्बी बेहोशी के बावजूद जब मुझे होश नहीं आया तो मुझे 23-02-1994 को ज्यौड़ियां सरकारी चिकित्सालय में दाखिल कराया था। जहॉं से रेफर करवाकर जम्मू मेडिकल कॉलेज से होते हुए मनोरोग चिकित्सालय जम्मू में दाखिल कराया था। जहां मुझे 28-02-1994 से 05-03-1994 तक "ब्रीफ साईकोटिक डिसार्डर" बीमारी की घोषणा करते हुए "सेडेटिव" उपचार दिया गया था। माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी साक्ष्य के रूप में मेरी बेहोशी के दिन की मुझे एक दिन का अर्जित अवकाश और 23-02-1994 से 11-03-1994 तक 17 दिवस का चिकित्सा अवकाश और 12-03-1994 से 18-03-1994 तक पुनः अर्जित अवकाश दिया गया था। जबकि इसके बीच मैं किसी विवाह समारोहों में नहीं गया था बल्कि मानसिक उत्पीड़न एवं पिटाई से उभरने का उपचार करवा रहा था। जिसको माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए. एम. मीर जी ने न्यायिक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर मुझे ही पागल घोषित करते हुए याचिका ओडव्ल्यूपी अंक 968/96 रद्द कर दी थी। जिसे माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी क्रूरतम से क्रूरतम आपराधिक संज्ञा देना अतिश्योक्ति नहीं होगी। 
           माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी इसके बाद भी मुझे सुकून से राष्ट्र सेवा नहीं करने दी बल्कि इसके बाद भी मुझे भयानक रूप से प्रताड़ित किया गया। जिसके कारण मुझे पुनः 26-05-1994 से 28-05-1994 तक मनोरोग चिकित्सालय जम्मू में दाखिल कराया गया। जहां "एंग्जायटी स्टेट" अर्थात चिंता की स्थिति का उपचार आरंभ किया था। जिसके लिए मैं अभी उपचाराधीन ही था कि मेरा स्थानांतरण लेह लद्दाख जैसे दुर्गम क्षेत्र में कर दिया। जबकि लाख यातनाएं करने पर भी एक तो मुझे चिकित्सा अवकाश अर्थात मेडिकल लीव उपलब्ध नहीं करवाई गई और दूसरा मुझे छुट्टी पर ही 01-08-94 को रिलीव कर दिया। जबकि मेरे साक्ष्य चीखकर कर बोल रहे हैं कि मैंने 03-08-1994 को भी मानसिक चिकित्सालय से उपचार करवा रहा था। जबकि मेरे विभागीय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने मेंटल हेल्थ एक्ट 1987 का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करते हुए मुझे दुर्गम क्षेत्र में स्थांतरित कर दिया। जिसे दिनांक 22-07-1994 और 30-07-1994 को तत्कालीन एरिया आर्गनाइजर श्री के.डी. सिंह जी द्वारा पारित कार्यालय आदेश अंक 2825-29 और ए-12/94-एओजे/2937-44 उनकी अमानवता, निर्ममता और भ्रष्टाचार को प्रमाणित करते हैं। जिन्हें सर्वप्रथम न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. मीर जी ने न्यायिक भ्रष्टाचार को प्रमाणित करते हुए अन्याय किया था। जिसके बावजूद माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के वर्तमान माननीय न्यायाधीश न्यायिक नपुंसकता को सुचारू रखते हुए और अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक न करते हुए मेरे मौलिक अधिकारों से खिलवाड़ कर रहे हैं। जिसको रेखांकित करने के लिए मुझे उपयुक्त शब्दावली का प्रयोग करने के लिए विवश होना पड़ रहा है। चूंकि मेरे साथ-साथ मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली और बच्चे भी उपरोक्त अमानवता, निर्ममता और भ्रष्टाचार का शिकार हो रहे हैं। जबकि हम अलग-अलग जीवनयापन कर रहे हैं। क्योंकि माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली का विश्वास उसकी याचिका रद्द करके खो चुकी है। इसलिए माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी न्यायालय के विश्वास को कायम रखने के लिए अपने मौलिक कर्तव्यों से न भागें। चूंकि माननीय न्यायालयों में मानवता के साथ वर्षों से क्रूरता होती आ रही है और आपके अनुपम कार्यकाल में भी निरंतर जारी है। 
           माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी अत्यधिक तनाव की भयंकर पीड़ा के साथ हिमाचल प्रदेश के रास्ते से मैं एरिया आर्गनाइजर लेह पहुंचा। जहां एरिया आर्गनाइजर महोदय ने मेरी व्यथा पर दुख प्रकट किया और मुझे आश्वासन दिया कि उनके नेतृत्व में मुझे कोई प्रताड़ित नहीं कर सकेगा। जिनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त कर मैंने लेह एरिया के सर्कल आर्गेनाइजर सक्ती (SAKTE) कार्यालय में 16-08-1994 को मैं शामिल हो गया था। जिसकी प्रमाणिकता एरिया आर्गनाइजर महोदय का डीआईजी टी.एन. शानू जी को दिनांक 28-01--1995 का विस्तारपूर्वक लिखा पत्र सिद्ध करता है। जहॉं रात को ही एसएफए (एम) श्री कश्मीर सिंह जी ने विश्वास के आधार पर मुझे चार्ज दिया और वह ट्रक पर बैठ कर अपने घर जम्मू क्षेत्र की ओर चले आए। परन्तु मेरा दुर्भाग्य यह है कि माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के तत्कालीन तथाकथित माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. मीर जी ने उसे खुली ऑंखों से भी नहीं देखा और यह लिखते हुए याचिका रद्द कर दी कि न्यायालय इससे अधिक कुछ नहीं कर सकती। उन्हें माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय को कलंकित करने पर शर्म आनी चाहिए। जिसके लिए उन्हें माननीय न्यायालय से क्षमा मांगनी चाहिए। ताकि न्याय जिंदा रहे। 
           माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी चूंकि मैं तनाव और अत्यधिक पीड़ा के साथ लेह में गया था और लेह का तापमान और ऊंचाई के प्रभाव से मैं अत्यधिक प्रभावित हुआ। जिसपर मेरे साथी कर्मियो ने एरिया आर्गनाइजर लेह के दिशा निर्देशों के आधार पर मुझे सेना के 153 जीएच चिकित्सालय में दिनांक 22-08-1994 को दाखिल कराया। जहॉं सेना के विद्वान डॉक्टरों ने दिनांक 31-08-1994 को मेरा  मेडिकल बोर्ड करते हुए मुझे हाई आल्टिच्यूट अनफिट कर दिया। जिसपर मेरे हस्ताक्षर करवाते हुए उन्होंने मुझे बताया कि यह क्षेत्र मेरे लिए जानलेवा है जिसके लिए यह क्षेत्र सदा के वर्जिन कर दिया है और छह माह के लिए अस्थाई केटागिरी सी (CEE) कर दिया गया है। उन्होंने मुझे यह भी बताया था कि इस क्षेत्र में मुझे पेरालिसिस भी हो सकता है। जिसकी प्रमाणिकता दिनांक 01-09-1994 को जारी किया सेना का प्रमाणपत्र सिद्ध करता है। जिसमें मेडिकल बोर्ड की आगामी तिथि सहित सबकुछ स्पष्ट लिखा हुआ है। जिसे पहले विभाग ने और फिर विभाग से घूस लेने के आधार पर तथाकथित माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. मीर जी ने नहीं माना और सुशीला बाली बनाम यूनियन ऑफ इंडिया की याचिका ओडव्ल्यूपी अंक 968/96 रद्द कर दी थी। जो हमारे मौलिक अधिकारों और उनके मौलिक कर्तव्यों पर एक भद्दा उपहास था। जिसके आधार पर मेरा विभाग डंके की चोट पर कहता है कि जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च ने माना है कि याचिकाकर्ता के किसी भी अधिकार का हनन नहीं हुआ है जो न्यायिक नपुंसकता और मौलिक कर्तव्यों की चक्की में सिसकते मौलिक अधिकार को सिद्ध करता है। जिसे असंवैधानिक करार देना अतिश्योक्ति नहीं है। 
           माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी जब सेना के डॉक्टरों के दिशा निर्देशों के बावजूद मुझे लेह से स्थांतरित नहीं किया तो मेरी पीड़ा बढ़ती गई और मुझे सिविल अस्पताल में भर्ती करने पर दबाव बनाया। जिसे मैंने नहीं माना और अंततः मुझे डी.ओ. जम्मू के दिनांक 09-09-1994 के वायरलेस मैसेज के आधार पर मुझे जम्मू एरिया में स्थांतरित किया। परन्तु यह भी सोची समझी साजिश थी। जिसका उद्देश्य मुझे और मेरे देश को धोखा देना मात्र था। चूंकि उसमें आप पढ़ सकते हैं कि उक्त आदेश में मुझे चिकित्सा अवकाश पर भेजने के लिए लिखा हुआ है और स्थानांतरित बाद में नियम अनुसार करने के लिए लिखा हुआ है। जबकि विश्व के विज्ञानिको के पास आज तक हाई आल्टिच्यूट का कोई उपचार नहीं है। जबकि डाऊन आल्टिचयूट में भेजना एकमात्र उपाय है। इसी प्रकार प्रताड़ना का भी कोई उपचार नहीं है। जबकि प्रताड़ित मानव को प्रताड़ना मुक्त करना एकमात्र उपाय है। परन्तु मेरे विभाग द्वारा माननीय न्यायालय को यह बताना कि मैंने जम्मू में उपचार हेतु छुट्टी के लिए प्रार्थनापत्र दिया था के सत्य को झुठलाने के लिए उक्त साक्ष्य बहुत है। जो प्रमाणिकता से सिद्ध करता है कि मुझे लेह से जम्मू विभाग ने ही भेजा था। जो महाभ्रष्ट असिस्टेंट डायरेक्टर एडम श्री कर्ण सिंह जी की सोची समझी रणनीति पर आधारित था और खुल्लमखुल्ला मेंटल हेल्थ एक्ट 1987 एवं संविधान की धारा 21 का उल्लंघन था। जो ए.एम. मीर को दिखाई नहीं दिया। हालॉंकि एरिया आर्गनाइजर लेह द्वारा लिखा विस्तारपूर्वक पत्र इसको चिन्हित करते हुए मेरा पक्ष सशक्त करता है। माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी उक्त प्रताड़ना पर शोधार्थियों द्वारा शोध करवाना चाहिए ताकि न्याय जीवित रह सके और माननीय न्यायालय एवं न्यायाधीशों की संवैधानिक गरिमा बनी रहे। 
           माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी मैं अपने मौलिक अधिकारों के प्रति सदैव सजग था। जिसके आधार पर अपने मौलिक कर्तव्य का पालन करते हुए मैंने दिनांक 24-10-1994 को डिविजनल आर्गनाइजर जी को सीधे जम्मू में सेवा सुचारू करने हेतु प्रार्थनापत्र दिया। जिसके उत्तर में असिस्टेंट डायरेक्टर (एडम) श्री कर्ण सिंह जी ने मेरी उक्त याचिका का उल्लेख करते हुए रजिस्टर्ड लेटर द्वारा भेजे मेमोरेंडम नंबर 21240-41 दिनांक 01-11-1994 के अंतर्गत मुझे सेवा सुचारू संबंधित प्रार्थना डिव. हेडक्वार्टर में नहीं करने के दिशा निर्देश जारी करते हुए एरिया आर्गनाइजर लेह को करने को कहा था। जिसकी प्रतिलिपि मेरी प्रार्थनापत्र सहित एरिया आर्गनाइजर लेह को भी भेजी गई थी।
           माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी विभागीय क्रूरता के नंगे नाच की श्रंखला में बढ़ोतरी करते हुए मेरे विभागीय क्रूर एवं भ्रष्ट अधिकारियों ने मानवीय मूल्यों पर आधारित सेना के डॉक्टरों के बोर्ड द्वारा प्रदत्त प्रमाणपत्र की भी खुलकर खिल्ली उड़ाई। जिसका प्रमाण यह है कि डिव. हेडक्वार्टर जम्मू के महाभ्रष्ट एसिस्टेंट डायरेक्टर एडम कर्ण सिंह द्वारा दिनांक 13-10-1994 के सिग्नल नंबर 3384 के अंतर्गत मुझे एरिया आर्गनाइजर लेह श्री एल आर इंचन द्वारा एक टेलिग्राम भेजी गई। जिसके अनुसार मुझे मेरे स्थानांतरण हेत प्रार्थनापत्र भेजने को कहा गया था। जिसके साथ आथोराइजिड मेडिकल अटेंडेंट द्वारा जारी और चीफ मेडिकल आफिसर द्वारा कौंटरसाइंड किया गया "मेडिकल सर्टिफिकेट" मांगा गया था। जिसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि सेना द्वारा प्रदत्त मेडिकल बोर्ड का प्रमाणपत्र डिव हेडक्वार्टर जम्मू को पहले से ही भेजा जा चुका है। ऐसी विकट परिस्थितियों में भारत की सर्वोच्च न्यायालय के विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी मेरा सार्वभौमिक प्रश्न आपसे है कि सेना के मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी छः माह की अवधि के बीच कौन मेडिकल आफिसर प्रमाणपत्र जारी करेगा और कौन चीफ मेडिकल आफिसर कौंटरसाइंड करेगा? 
           माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी उपरोक्त अमानवीय ही नहीं बल्कि असंवैधानिक आदेशों के विरुद्ध मैंने दिनांक 16-11-1994 को एरिया आर्गनाइजर लेह को रसीद अंक 1169 के अंतर्गत एक टेलिग्राम दी थी। जिसमें मैंने अपना वेतन मांगते हुए अपनी सेवाएं कहॉं सुचारू करने हेतु पूछा था। हालॉंकि इस युद्ध में मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली ने भी मुझे सहयोग करते हुए एवं नारी शक्ति के सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए 09-11-1994 को उसने मेरे डिविजनल आर्गनाइजर को संबोधित करते हुए डिव. हेडक्वार्टर जम्मू को दयनीय दशा का हवाला देते हुए मुझे जम्मू में स्थानांतरित करने हेतु प्रार्थनापत्र भेजा था। परन्तु नारी शक्ति के सशक्तिकरण की धज्जियां उड़ाते हुए उसे भी पत्रांक 21925 द्वारा दिनांक 22-11-1994 को यह लिखते हुए दुत्कार दिया गया था कि वह अपने पति श्री इंदु भूषण बाली की स्थानांतरण के लिए एरिया आर्गनाइजर लेह को थ्रू परापर चैनल लिखें और पुनः यहां न लिखें। माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी यह मेरे साथ-साथ मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली के साथ भी क्रूरता नहीं तो और क्या है? प्रताड़ित और असहाय पति की सेवा और सुरक्षा के लिए उसकी धर्मपत्नी आवाज बुलंद नहीं करेगी तो कौन आएगा उसकी सहायता करने के लिए श्रीमान माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी? अपने नवजात शिशु की परवरिश के लिए भारत सरकार में नियुक्त उसके पिता के विभागीय उच्च अधिकारियों से वेतन नहीं मांगेगी तो किससे मांगेगी? कब तक अपने पिता से अर्थात मायके से मांगकर लाए धन से परिवार का भरण पोषण करेगी? एक विवाहिता स्त्री जिसने अपने पति को सरकारी सेवा हेतु शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ नियुक्त करवाया था। जिसकी पत्नी, बच्चों एवं माता पिता के उपचार का सारा दायित्व सरकार का होता है। वह मां अपने शिशु के लिए मातृत्व का और अपने प्रताड़ित बीमार पति के प्रति अपने पत्नीधर्म के मौलिक कर्तव्यों के निर्वहन की पूर्ति कैसे करेगी? भारतीय न्यायव्यवस्था के कर्णधार माननीय उच्चतम न्यायालय के विद्वान माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी स्पष्ट उत्तर देते हुए देश की समस्त सशक्त नारी जाति को मार्गदर्शन करते हुए भारत माता को आश्वस्त करते हुए संवैधानिक स्पष्ट उत्तर दें? यही प्रश्न सादर माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी से भी है ? चूंकि उपरोक्त कटु प्रश्न भारतीय सभ्यता, संस्कृति और सम्पूर्ण भारतीय नारी के अस्तित्व के साथ-साथ भारतीय न्यायपालिका एवं संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को प्रदत्त आश्वासन पर आधारित प्रश्नचिन्ह है। 
           माननीय उच्चतम न्यायालय के विद्वान माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी मेरी चिंताओं का हश्र यही हो रहा था कि "ज्यों ज्यों इलाज किया मर्ज बढ़ता गया" वाली कहावत विभाग चरितार्थ कर रहा था। जिसका साक्ष्य विभाग द्वारा भेजा दिनांक 06-12-1994 का पत्रांक 3892-94 स्पष्ट बता रहा है कि विभाग ने मुझे एक साधारण तार भेजा था। जिसमें मुझे तुरन्त शक्ति (SAKTE) उपस्थित होने के लिए आदेश दिया गया था। जो एक ओर विश्वशनीय सेना के डॉक्टरों द्वारा प्रदत्त हाई आल्टिच्यूट अनफिट के प्रमाणपत्र की अवमानना था और दूसरी और संविधान की धारा 21 एवं मेंटल हेल्थ एक्ट 1987 का हनन था। चूंकि विभागीय आदेश को मानने का अर्थ स्पष्ट था कि मुझे पेरालिसिस हो जाएगा या फिर मृत्यु हो जाएगी। जिसके परिणामस्वरूप मेरी चिंताओं का बढ़ना स्वाभाविक था। चूंकि उसमें मुझे स्पष्ट आदेश दिया गया था कि यदि आप शक्ति कार्यालय में उपस्थित नहीं होते तो आप पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी अर्थात आगे मौत पीछे कुआं वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी। जिसकी सूचना डिव. हेडक्वार्टर के असिस्टेंट डायरेक्टर एडम श्री कर्ण सिंह जी को भी भेजी गई थी। इसके अलावा मुझे समझाने हेतु उक्त पत्र की प्रतिलिपि सब एरिया आर्गनाइजर अखनूर को सूचनार्थ भेजी गई थी। जिसमें उक्त कार्यालय से अनुरोध किया गया था कि वे ऊपर दिए गए कर्मचारी अर्थात इंदु भूषण बाली से अर्थात मुझसे संपर्क साधें और मुझे शक्ति उपस्थित करें। माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी यहॉं बताना अत्यन्त आवश्यक है कि मुझे विवश करने के लिए अर्थात मुझे किसी भी तरह शक्ति कार्यालय में उपस्थित करने के लिए विभिन्न कर्मचारियों एवं अधिकारियों की सेवा का प्रयोग कर रहे थे। जिसके फलस्वरूप वह कर्मचारी/अधिकारी मेरी धर्मपत्नी सहित मेरे पारिवारिक सदस्यों को भी मेरे विरुद्ध उकसा रहे थे। यहॉं तक कि वे मेरे मित्र वर्ग और पड़ोसियों को भी मेरे विरुद्ध दुष्प्रचार कर रहे थे और उनसे आग्रह कर रहे थे कि वह इंदु भूषण बाली को शक्ति कार्यालय में उपस्थित करने में विभाग/सरकार की सहायता करें। चूंकि इंदु भूषण बाली पागल हो चुका है और सरकार उसे सहानुभूति के आधार पर पटरी पर लाना चाहती है ताकि इसकी बीवी और बच्चों का भरण पोषण होता रहे। जिसके कारण मेरे संबंध मित्र वर्ग सहित पड़ोसियों के साथ साथ मेरे पारिवारिक सदस्यों से भी बिगड़ते गए और मैं पारिवारिक एवं सामाजिक तिरस्कार का भी पूरी तरह शिकार हो गया। जबकि मेरी व्यथा यह थी कि मैं मानवीय विश्वसनीयता के प्रतीक सेना के डॉक्टरों के बोर्ड द्वारा जारी किए गए हाई आल्टिच्यूट अनफिट के प्रमाणपत्र का पालन करते हुए राष्ट्रसेवा हेतु जीवित रहना चाहता था और शक्ति कार्यालय में उपस्थित होने के आदेश का अर्थ निरापराध मृत्यु दण्ड था। माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी राष्ट्रीय सेवा हेतु जीवित रहने के प्रयास करना और मानवीय विश्वसनीयता के प्रतीक सेना के डॉक्टरों के बोर्ड द्वारा दिए गए परामर्श का पालन करना क्या क्रूरतम से क्रूरतम अपराध है? 
           माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी पारिवारिक, मित्र वर्ग एवं पड़ोसियों की तथाकथित सहानुभूतियों अर्थात सद्भावनाओं का परित्याग करते हुए मैंने दिनांक 09-12-1994 को भारतीय डाक विभाग की रसीद क्रमांक 1223 द्वारा एरिया आर्गनाइजर लेह को एक तार भेजा जिसमें अंग्रेज़ी भाषा में यूं लिखा "रेडी टू ओबे यूअर आर्डरस. बट आर यू रेस्पोंसिबल फार माई डैथ/मिस्हैपनिंग ड्यू टू हाईआलटीचियूट अनफिट बाई डॉक्टर्स. रिप्लाई टेलिग्राफिकली प्लीज़" अर्थात मैंने अपनी पीड़ाओं को सार्वभौमिक सत्य के आधार पर एरिया आर्गनाइजर लेह को आरपार की लड़ाई का लक्ष्य साधते हुए लिखा था कि मैं आपके आदेश की पालना के लिए तैयार हूॅं। परन्तु क्या आप डॉक्टरों के परामर्श के विरुद्ध हाई आल्टिच्यूट अनफिट के कारण मेरी मृत्यु या अनहोनी के जिम्मेदार हैं? कृपया तार द्वारा उत्तर दें। 
           माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी उपरोक्त तार ने भयंकर रूप धारण किया था। जिसका साक्ष्य यह है कि उसके फलस्वरूप दिनांक 28-12-1994 का सब एरिया आर्गनाइजर अखनूर का हस्ताक्षर किया हुआ विभागीय पत्रांक 468 प्राप्त हुआ। जिसमें दिनांक 07-12-1994 के डीओ आर्डर नंबर 22827-29 के अंतर्गत एरिया आर्गनाइजर लेह द्वारा एरिया आर्गनाइजर रजौरी को वायरलेस मैसेज किया गया है। जिसमें मुझे लेह एरिया से रजौरी एरिया में मेरे अनुरोध पर बिना टिए/डिए/ज्वाइनिंग टाइम के स्थायी स्थांतरित दर्शाया गया है। जिसकी सूचना देने के सब एरिया आर्गनाइजर अखनूर को आदेश दिया गया है कि वह मुझसे संपर्क साध कर उक्त मैसेज मुझे दें। जिसमें यह भी लिखा गया है कि विस्तारपूर्वक स्थानांतरण आदेश बाद में डाक द्वारा भेजा जाएगा। माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी यह विभागीय अधिकारियों की साज़िश नहीं तो और क्या है? जबकि एक ओर तार द्वारा तुरन्त लेह एरिया के शक्ति कार्यालय में उपस्थित होने पर बल दिया गया था जिसकी पालना नहीं करने पर मुझ पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी दी जा रही थी। जिसकी पालना के लिए मैंने दिनांक 09-12-1994 को भारतीय डाक विभाग की रसीद क्रमांक 1223 द्वारा एरिया आर्गनाइजर लेह को एक तार भेजा था। जिसमें उनकी सहमति के बारे में स्पष्ट पूछा था। तो ऐसी हालत में मेरा प्रार्थनापत्र कहॉं से आ टपका? यूॅं भी रजौरी मेरे घर से 150 किलोमीटर की दूरी पर है अर्थात "आसमान से गिरा और खजूर पर लटका" वाली कहावत मैं क्यों चरितार्थ करूंगा? जबकि रजौरी क्षेत्र का कुछ भाग भी हाई आल्टिच्यूट था जहॉं बर्फ ही बर्फ थी और उस पर आंतकवाद से भी ग्रस्त था। अर्थात वहॉं स्थानांतरित करना विभागीय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों की एक साज़िश का उदाहरण है। जो मात्र " एक तो करेला और उस पर नीम चढ़ा" वाली कहावत चरितार्थ करता है। जो माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के तत्कालीन माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए एम मीर जी को सुशीला बाली बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एण्ड अदर्स ओडव्ल्यूपी अंक 968/96 की सुनवाई के दौरान दिनांक 24-12-1997 को बताने का प्रयास कर रहा था कि उन्होंने मुझे पागल घोषित करते हुए चुप करा दिया था। जो न्यायिक नपुंसकता और मौलिक कर्तव्यों की चक्की में सिसकते मेरे मौलिक अधिकारों की व्यथा को प्राथमिकता के आधार पर प्रमाणित करता है। जिसका उत्तर देना माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी आपका मौलिक कर्तव्य बनता है। 
           भारत की माननीय सर्वोच्च न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी दिनांक 28-12-1994 को एरिया आर्गनाइजर लेह द्वारा दिनांक 26-12-1994 द्वारा हस्ताक्षरित कार्यालय आदेश अंक 5025-31 बताता है कि जिस चार्ज को मैंने एसएफए (एम) श्री कश्मीर सिंह जी से मानवीय विश्वास पर लिया था। उसका प्रत्यक्ष सत्यापन अर्थात फिजिकल वेरिफिकेशन उसी अधिकारी ने करनी है। जिसने पहले ही कश्मीर सिंह से एक कोट पहनने के लिए अवैध रूप से लिया हुआ था। अर्थात चोर को ही न्यायाधीश बना दिया गया। जिसकी जांच होनी आवश्यक ही नहीं बल्कि सत्य को उजागर करने हेतु परमावश्यक है। ताकि सत्य राष्ट्र और देशवासियों के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके। 
           माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी मरता क्या न करता वाली कहावत चरितार्थ करते हुए नए वर्ष की नई चुनौती को स्वीकार करते हुए मैंने राजौरी एरिया आर्गनाइजर कार्यालय में एरिया आर्गनाइजर श्री बी.के. आनंद जी के समक्ष उपस्थित हुआ। जहॉं उन्होंने सम्पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन देते हुए पहले से बनाई योजना के अंतर्गत आंतकवाद क्षेत्र थानामंड़ी के सर्कल आर्गेनाइजर आफिस में मुझे तैनात किया था। जबकि उनका सहयोग मात्र "हाथी के दांत खाने के ओर और दिखाने के ओर" वाली कहावत को चरितार्थ करते थे। जिसका सामना करने हेतु मैंने अपनी उपस्थिति सर्कल आर्गेनाइजर आफिस थानामण्डी में दर्ज कराई थी। अन्यथा मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी अपनी विद्वता का लेशमात्र प्रयोग करते हुए राष्ट्र को बताने का कष्ट करें कि विश्वसनीय सेना के विद्वान डॉक्टरों द्वारा इफैक्टिव मूड डिसार्डर के अंतर्गत केटेगरी सी (CEE) घोषित कर्मचारी का आंतकवाद क्षेत्र में क्या कार्य था? जबकि उसकी समस्त सेवाएं केटेगरी सी के आधार पर स्थगित की गई थीं। ऐसी विकट परिस्थितियों में मेंटल हेल्थ एक्ट 1987 एवं संविधान की धारा 21 का स्पष्ट हनन करते हुए मुझे वहॉं तैनात करने के पीछे का उद्देश्य क्या था? जिसे छुपाने हेतु तथाकथित माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए. एम. मीर जी ने दोषियों की सहायता करने हेतु कितनी घूस खाई होगी? चूंकि प्रश्न मेरे और मेरे परिवार की क्षति का है। जिसके लिए कृपया गंभीरतापूर्वक मंथन करने के उपरांत शान्त मन से मेरे राष्ट्र के साथ साथ माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी सम्माननीय मुझे भी बता कर कृतार्थ करें। 
           माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी उपरोक्त अवस्थाओं को उजागर करने हेतु आदरणीय एरिया आर्गनाइजर लेह के 28 जनवरी 1995 के पत्र जो उन्होंने सजगता से डिविजनल आर्गनाइजर जम्मू के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल श्री टी. एन. शानू जी को विस्तारपूर्वक लिखा है को संज्ञान में लेने की आवश्यकता है। जिसमें उन्होंने समस्त वायरलेस मैसेजों सहित स्पष्ट किया हुआ है कि कब कब क्या क्या हुआ था। जिस पत्र में उन्होंने एरिया आर्गनाइजर राजौरी के सिग्नल नंबर 32 का हवाला देते हुए अर्धसत्य बताया हुआ है कि मैं 09-09-1994 से लेकर 31-12-1994 तक छुट्टी पर रहा हूॅं। जिसमें यहां तक झूठ दर्शाया गया है कि बिना मेडिकल सर्टिफिकेट के मुझे 37 दिन की एक्स्ट्रा आर्डिनरी लीव देकर मेरी सर्विस ब्रेक कर दी गई है। जबकि सेना के मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी छः माह का मेडिकल सर्टिफिकेट उनके पास था। जिसके अन्तर्गत वह दोषी सिद्ध हो रहे हैं। 

                            क्रमशः 
1

आहत भावनाओं से राहत !           (आलेख) 

20 मई 2023
3
1
1

संविधान के अंतर्गत संवैधानिक गतिविधियों के अनुसार सरकारी नियमों का पालन करते हुए लाभान्वित होने की प्रसन्नता से भले ही मैंने दूसरों को घोड़े बेचकर सोने का पराम

2

इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों का प्रयोग !                      (आलेख)

20 मई 2023
4
1
1

माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ जी एक लम्बे समय से मुझे समझाया जा रहा है और उक्त समझाने के पीछे की विशेष कुटिल इच्छा यह है कि

3

ग़ज़ल

21 मई 2023
1
0
0

ग़ज़लसीने में धधकते शोले जगमगाते रहो। जागते रहो और अन्य भी जगाते रहो।।यूं ही दूसरों के गालों को सहलाओ न।दरिया आग की ऑंच का बहाते रहो।। शव सभी बिखरे हुए, पर जिंदा हैं हम।क्रोध छोड़ो न दीप रक्

4

आज के दिन के हर पल को आनन्दमय बनाओ !                        (आलेख)

21 मई 2023
0
0
0

गीता सार कहता है कि अतीत को अधिक नहीं कुरेदना चाहिए। चूंकि वह कष्ट देता है और गीता सार यह भी मार्गदर्शन करता है कि भविष्य के प्रति भी अधिक संवेदनशील नहीं होना

5

ध्यान ! (आलेख)

22 मई 2023
0
0
0

ध्यान रहे कि ध्यान अपने चारों ओर वृताकार आग लगाकर समाधी लगाने को ही नहीं कहते बल्कि अपने कर्मों के प्रति सशक्त एवं संवेदनशील जागरूकता को भी ध्यान कहते हैं। ध्य

6

न्यायिक नपुंसकता और मौलिक कर्तव्यों की चक्की में सिसकते मौलिक अधिकार !              (आलेख) 

22 मई 2023
1
0
0

न्यायिक नपुंसकता और मौलिक कर्तव्यों की चक्की में सिसकते मौलिक अधिकार ! (आलेख) सत्य केवल उनके लिए ही कड़वा ह

7

अपनों का रक्तपात कैसे करूं?                (आलेख)

23 मई 2023
1
0
1

सर्वविदित है कि अपने तो अपने होते हैं। फिर अपनों का सिर कलम करना कैसे संभव हो सकता है? जिसकी गोद में सिर रखकर बचपन बिताया हो, उसे नुकीले बाणों पर घायलावस्था मे

8

कारागार से मुक्ति !      (आलेख)

24 मई 2023
0
0
0

कर्म मानव जीवन के आधार बिंदु हैं। वह किस रूप में प्रकट हो जाएं कोई नहीं जानता। अर्थात कर्म वह बीज हैं जिनके उत्पन्न होने पर पेड़ बनता है और उक्त पेड़ पर

9

ग़ज़ल

25 मई 2023
0
0
0

मानवता तरसती रही माननीय प्यार में।बर्बाद होता रहा बस भरोसे सरकार में।। छोड़ो बातें सामाजिक कार्यकर्ताओं की। धोखेबाजी में सक्षम देखो खड़े कतार में।। कल भी आए थे चार सज्जन समझाने। गल

10

ग़ज़ल

26 मई 2023
0
0
0

प्राकृतिक व्यक्तित्व में निखार आता है। मेरे क्रोध पर भी आपको प्यार आता है।। यह अनुकंपा एवं ईश्वरीय आशीर्वाद है।अन्यथा प्यार भी कहां सरकार आता है।। यह सृष्टि अत्यंत आलौकिक है लेकिन।&nbsp

11

भारतीय अर्थव्यवस्था 2023-24

26 मई 2023
0
0
0

भ्रष्टाचार और न्यायिक आतंकवाद के कर कमलों द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था बिगड़ ही नहीं रही बल्कि चक्कनाचूर हो रही है। जिसके आधार पर हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ गए हैं। हमारे रूपए का मूल्य डालर के प्रति

12

भारतीय अर्थव्यवस्था 2023-24 !                 (आलेख) 

26 मई 2023
2
0
0

भ्रष्टाचार और न्यायिक आतंकवाद के कर कमलों द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था बिगड़ ही नहीं रही बल्कि चक्कनाचूर हो रही है। जिसके आधार पर हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर

13

जिन्हें ईश्वर सद्बुद्धि दें !         (आलेख)

28 मई 2023
0
0
0

सुबह सबेरे बिस्तर से उठा और नियमानुसार सैर करने के लिए पग उठाने से पहले अपनी इच्छानुसार यूट्यूब पर गीत सुनने के लिए मोबाइल आरम्भ किया। फिल्म 'संबंध' के गीतकार

14

नई संसद ! (आलेख) 

29 मई 2023
1
0
0

नई संसद आजादी के अमृत महोत्सव कार्यकाल की नई सुबह की भांति प्रकाशमान होने वाली नई किरण प्रमाणित होनी चाहिए। जिसके लिए माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी

15

ग़ज़ल

29 मई 2023
0
0
0

सबकुछ भूलकर अपने घर आ जाओ।ईश्वरीय अनुकंपा समझ तुम छा जाओ।।समय है प्रेम की परीक्षा न लो प्रियतमा। आओ अपनी इच्छा के गीत गा जाओ।।मत करो भरोसा तथाकथित अपनों पे। सुनलो मेरी और अपनी गुनगुना जाओ।।&

16

अनुच्छेद 32 और मेरी असंवैधानिक दिव्यांगता पेंशन?                             (आलेख) 

30 मई 2023
0
0
0

माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 भारत के प्रत्येक नागरिक को वचन देता

17

ग़ज़ल

31 मई 2023
0
0
0

जो कुत्ते भौंकते हुए काटने को आते थे एक पग उठाने पर।समय परिवर्तित होते ही दुम हिलाते थे एक पग उठाने पर।।हालांकि शब्दावली पहले की भांति अद्वितीय है अभी भी।परन्तु भाग्य बदलते ही दूध पिलाते थे एक पग उठान

18

ग़ज़ल

1 जून 2023
0
0
0

साठ की आयु में यौवन का अविष्कार हो गया। बैठे ही बैठे देख लो मैं धनी शाहूकार हो गया।। मेरी मृत्यु के फैला रहे थे जो लोग चर्चे अनेक। उनके सामने ही सैनिकों सी ललकार हो गया।। पीड़ाएं भ

19

ग़ज़ल

1 जून 2023
0
0
0

साठ की आयु में यौवन का अविष्कार हो गया। बैठे ही बैठे देख लो मैं धनी शाहूकार हो गया।। मेरी मृत्यु के फैला रहे थे जो लोग चर्चे अनेक। उनके सामने ही सैनिकों सी ललकार हो गया।। पीड़ाएं भ

20

ग़ज़ल

1 जून 2023
0
0
0

ऑंखों का धोखा था कि पानी है। सॉंस जीवन की कड़वी कहानी है।। मैं टूटा नहीं तोड़ने का प्रयास था। लक्ष्मी चंचल है आनी व जानी है।। मेरे अपने हैं अपने ही रहेंगे भाई। घरों में लड़ाई

21

ओडिशा ट्रेन दुर्घटना         (आलेख) 

3 जून 2023
1
1
0

ओडिशा के बालासोर में कल शाम तीन ट्रेनों अर्थात रेलगाड़ियों अर्थात लौह पथ गामिनियों में भीषण टक्कर के कारण हुई दुर्घटना में सैंकड़ों अनमोल जीवन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़

22

आओ और मुझे समझाओ जो समझाना चाहते थे !                            (आलेख) 

4 जून 2023
1
0
0

अद्भुत अद्वितीय अकल्पनीय अविश्वसनीय कष्टों से मुक्ति पाने में सफलता की ओर बढ़ने पर मन मस्तिष्क में एक विचित्र प्रश्न उभर रहा है कि विद्वान लोग मुझे समझाना क्या

23

बालासोर हादसे की जांच !            (आलेख) 

4 जून 2023
0
0
0

दुर्घटना के उपरांत न्यायिक जांच समसामयिक प्रथा बन चुकी है। वह जांच न्यायिक अधिकारियों के द्वारा करवाई जाए या न्यायिक विशेषज्ञ आयोग द्वारा करवाई जाए। परन्

24

विश्व पर्यावरण दिवस !        (आलेख) 

5 जून 2023
0
0
0

विश्व के जितने भी दिवस हैं जैसे विश्व क्षय रोग दिवस, विश्व पशु कल्याण दिवस, विश्व शिक्षक दिवस, विश्व वन्यजीव दिवस, विश्व महिला दिवस, विश्व उपभोक्ता दिवस, विश्व

25

ग़ज़ल

6 जून 2023
0
0
0

यह मेरा सौभाग्य है कि चुनौतियों से लड़ा हूॅं मैं। इसलिए अपनी आयु से कहीं अधिक बड़ा हूॅं मैं।। लोग अपने जीवन में मरते हैं बस एक बार ही। परन्तु अपने प्रत्येक शोध में कई बार मरा हूॅं मैं।।

26

भारतीय पहलवान आंदोलन !             (आलेख) 

6 जून 2023
0
0
0

आंदोलन चाहे पहलवानों के हों या सामाजिक, सांस्कृति, आर्थिक और राजनीतिक संगठनों के हों। परन्तु आंदोलन तो आंदोलन ही होते हैं। जिन आंदोलनों में पीड़ितों की सर्वोच्

27

साहित्यिक बलात्कारियों एवं हत्यारों को फांसी कब?                            (आलेख) 

7 जून 2023
1
0
0

बलात्कार एवं हत्या जैसे अपराधियों का अपराध के पीछे का आपराधिक दृष्टिकोण क्या होता है? इसके संबंधित अपने अल्प ज्ञान के कारण मैं कुछ नहीं जानता हूॅं। परन्तु इतना अवश्य

28

यूपी की ध्वस्त कानून व्यवस्था !             (आलेख) 

8 जून 2023
0
0
0

यूपी की ध्वस्त कानून व्यवस्था ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय विधिक व्यवस्था ही ध्वस्त हो चुकी है। जिसमें सुधार करने की अत्यंत आवश्यकता है और संभवतः माननीय महामहिम रा

29

चापलूसी यदि साहित्य है तो मैं साहित्यकार नहीं हूॅं !                           (आलेख) 

12 जून 2023
0
0
0

मेरा जीवन एक खुली किताब है। जिसके प्रत्येक पन्ने पर मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों के संघर्षों की मोहर लगी हुई है। जिनमें अधिक

30

जंगल में मोर नाचा किसने देखा ?               (आलेख) 

14 जून 2023
0
0
0

जंगल में मोर नाचा किसने देखा ? (आलेख) जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू में डोगरी और हिं

31

ग़ज़ल

15 जून 2023
0
0
0

मेरी ऑंखों के समंदर से मोतिया निकलता है। तेरी क्रूरता अटल मुख से वाह वा निकलता है।। सितारे कैसे तोड़ लाऊं मैं तेरे लिए आकाश से।घुटन पीड़ा आंतों के क्षय से दरिया निकलता है।। बुलंदियों पर

32

महा विनाशकारी चक्रवात !           (आलेख)

15 जून 2023
0
0
0

चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी होते हैं। जिसमें हवाएं तांडव नृत्य करती हैं। जिससे समुद्र का पानी दिवार की भांति आगे बढ़ता है और कम ऊंचाई पर स्थित तटीय क्षेत्रों मे

33

मेरा खोया सम्मान और बीता यौवन वृद्धावस्था में लौट आया है !                              (आलेख) 

16 जून 2023
0
0
0

कहते हैं कि एक बार सम्मान तथा यौवन चला जाए तो वह लौटकर नहीं आता है। उक्त कथन पूरी तरह असत्य प्रमाणित हो रहा है। चूंकि मेरे विरोधी साजिशकर्ताओं ने मुझे जीवनभर क्रूरतम

34

भय के डर से निर्भय होकर संघर्ष करो !                     (आलेख) 

17 जून 2023
1
1
1

नाशवान संसार में नाश होने के भय के डर से निर्भय होकर सत्य पर आधारित अपने मौलिक कर्तव्यों पर सदैव संघर्षरत रहना चाहिए। उक्त लड़ाई में लड़ते-लड़ते वाद/विवाद की क

35

समान नागरिक संहिता ! आलेख

17 जून 2023
2
0
0

भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक हेतु कानून समान होना चाहिए। भले ही वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो? भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। जिसका अर्थ यह

36

मित्रतापूर्ण प्रतिद्वंद! आलेख

18 जून 2023
0
0
0

अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि दो प्रख्यात लेखकों में "मित्रतापूर्ण प्रतिद्वंद" के नाम से लेखन प्रतियोगिता आरम्भ हो चुकी है। जिसमें एक ओर भारत सरकार के गृह मंत्रालय क

37

भयशीलता की पराकाष्ठा! (आलेख)

19 जून 2023
1
0
0

पंजाबी गीत "भट्ठी वालिए दुक्खां दा परागा भुन्न दे" सुनाई दे रहा था। जिसमें वास्तव में वास्तविक पीड़ाएं थीं। जो गायक निजी और सांसारिक पीड़ाओं को उस भट्ठी वाली क

38

शत्रु को पहचानें ! (आलेख)

20 जून 2023
0
0
0

जीवन एक खुली चुनौती है और चुनौतियों से भरा सम्पूर्ण जीवन है। जिसमें हम सब एक ओर मौजमस्ती करते हुए अपनी यात्रा में अग्रसर हो रहे हैं और दूसरी ओर नर्क भोगते हुए जीवनया

39

ग़ज़ल

21 जून 2023
0
0
0

मेरा किया धरा सब बेकार हो गया। बोलती बंद चुप पूरा संसार हो गया।। कहा था उसने न्यायालय में मिलेंगे।परंतु लुप्त कहां लो सरकार हो गया।। कल्चरल अकादमी सब लेखकों की सेवकों का कैसे वह दर

40

ग़ज़ल

21 जून 2023
0
0
0

मैं तेरी दुनिया छोड़ चला।तेरे बंधन सारे तोड़ चला।। यौवन तेरा मेरा था परन्तु।अंधेरों से नाता जोड़ चला।। मैं लम्बी रेस का घोड़ा था।जितना हो सका दौड़ चला।। सूरदास भी न हूॅं प्रियतम। ज

41

पशुधन विधेयक 2023 ! आलेख

22 जून 2023
0
0
0

उपरोक्त विधेयक पुरजोर विरोध के बाद केंद्र सरकार ने वापस ले लिया है। चूंकि पशुपालकों के अनुसार उक्त विधेयक के पश्चात पशुधन और पशुधन उत्पाद से आयात और निर्यात पर अत्यध

42

ग़ज़ल

23 जून 2023
0
0
0

मेरी सीमांत योग्यता को जिसने भी ललकारा है। ईश्वर साक्षी है वे हर क्षण और स्थान पर हारा है।। भारत देश है मेरा और सौभाग्यवश मैं भारतीय। भारतीयता को जो भी मानें मुझे अत्यंत प्यारा है।।&nbs

43

ग़ज़ल

25 जून 2023
0
0
0

मैं पत्थर हूॅं पुजारी तुम्हारा।प्रेम में डूबा सारे का सारा।। ठोकर जो मारी तुम सबने। गोल होता गया मैं बेचारा।। प्रयास सबने किए गिरा न। फिसला पर जीता न हारा।। आप सौभाग्य हो मेरा

44

ग़ज़ल

25 जून 2023
0
0
0

चलो वस्त्र पहनकर सम्पूर्णतः नंगे हो जाएं। उठकर वासनाओं से आत्माओं में खो जाएं।। पवित्रता के समंदर में कूदना आसान कहां। ठंडी आग की भट्ठी के अंगारों पर सो जाएं।। सबकुछ भूलकर बच्चों क

45

पारदर्शी भारत अभियान और मेरा संघर्ष! आलेख

26 जून 2023
1
0
0

सर्वविदित है कि जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी द्वारा प्रकाशित डोगरी/हिंदी भाषा की पत्रिका शीराज़ा के मुख्य सम्पादक आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी "पारदर

46

कुत्ते का कुत्ता बैरी ! आलेख

27 जून 2023
1
0
1

"ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर" लोकोक्ति भी मुझे निरंतर प्रोत्साहित कर रही है। जो मेरा साक्षात मार्गदर्शन भी कर रही है कि जब मैंने देश सेवा करने के लिए ठान

47

ग़ज़ल

27 जून 2023
0
0
0

जब अपनी कहानी पर रोना आया। तब कांटों की सेज पर सोना आया।। सिलवटें बिस्तर की कभी गई नहीं। तथापि याद पाना औ खोना आया।। मिट्टी हुए छाती फाड़कर भूमि की। तभी तो धरती में बीज

48

राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस! आलेख

1 जुलाई 2023
0
0
0

आज राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस है। जो प्रख्यात भारतीय चिकित्सक, शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ डॉ बिधान चंद्र रॉय की जयंती के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्

49

राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस ! आलेख

1 जुलाई 2023
0
0
0

आज राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस है। जो प्रख्यात भारतीय चिकित्सक, शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ डॉ बिधान चंद्र रॉय की जयंती के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्

50

निडरता से सामना प्रत्येक समस्या का समाधान ! आलेख

2 जुलाई 2023
1
1
0

जब तक याचिकाकर्ता अपराधी को दण्डित करने के लिए कठोरता से आग्रह नहीं करते, तब तक माननीय न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश भी अपराधी को कठोर दण्ड से दण्डित नही

51

ग़ज़ल

2 जुलाई 2023
0
0
0

जन्म से मरण तक संघर्ष करो।करो न करो कुछ पर हर्ष करो।। भले जीवन का आधार ना हो। पर जीने हेतु प्रेम हर वर्ष करो।‌।यह संसार बहुत बड़ा है परन्तु। स्वयं को प्रमाणित आदर्श करो।। मत भूलो स

52

मंचासीन होने हेतु तलवे चाटना क्या न्यायोचित है? आलेख

3 जुलाई 2023
0
0
0

जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू इन दिनों चर्चाओं के गलियारों में है। जिसमें हिंदी क्षेत्र के वरिष्ठ रचनाकारों में युद्ध स्तर पर मंथन हो रहा है

53

क्या आप स्वयं संतुष्ट एवं शांत हैं ? (आलेख)

4 जुलाई 2023
0
0
0

जो बना, वह मिटा है। जो जन्मा, वो मरा है। यह प्राकृतिक नियम के प्राकृतिक सौंदर्य का प्राकृतिक सौंदर्यीकरण है। जिसे प्राकृतिक परिवर्तन कहना भी अतिश्योक्ति नहीं ह

54

ग़ज़ल

5 जुलाई 2023
1
0
0

चलो एक बार कर के देखें।सलाखों में से डर के देखें।। अपनी दुनिया रूखी सही।धनिया पाउडर भर के देखें।। कब तक कुएं के मेंढक रहें। क्यों ना समंदर तर के देखें।। चोरी की चिंताओं को छोड़।&nb

55

ग़ज़ल

6 जुलाई 2023
1
0
1

न पूछो पीड़ा कितनी मेरी अंतड़ियों में। दिखाई देती हैं डॉक्टरों की परचियों में।।मिलन की चाहत छोड़कर देख ली मैंने। ममतामई सौभाग्य कहां है बर्बादियों में।। हमारा सम्पूर्ण जीवन एक उदाहरण है

56

राष्ट्रभक्ति की आग की आंच के सेंक से मेरे बच्चे भी अछूते नहीं रहे ! आलेख

7 जुलाई 2023
0
0
0

मृत्युदंड के अपराधी को मृत्यु से कुछ समय पूर्व काल कोठरी में बंद कर दिया जाता है। सुना है कि वहां ढंग से लेटा, खाया और आराम भी नहीं किया जा सकता।

57

ग़ज़ल

8 जुलाई 2023
0
0
0

मुझे ईश्वर मिल गए सोचता हूॅं। पुष्प सारे खिल गए सोचता हूॅं।। जो समझाते रहे यूं जीवनभर। मन उनके हिल गए सोचता हूॅं।।मैं तो पहले सा ही हूॅं माननीयों। हार तुम्हारे दिल गए सोचता हूॅं।।&

58

बुढ़ापे में यौवन ! आलेख

9 जुलाई 2023
0
0
0

इसमें कोई दोराय नहीं है कि जब राष्ट्रहित में न्यायिक युद्ध में सम्पूर्ण सफलता प्राप्ति हेतु मैं समाचारपत्र विक्रेता के रूप में गलियों से गुजरता था। तो उन विपरी

59

पुरस्कार ले लो पुरस्कार ! (आलेख)

10 जुलाई 2023
0
0
0

प्रातः काल की सैर में असंख्य शीतल मोतियों को पैरों तले कुचलकर मन मस्तिष्क प्रसन्न हुआ है। जिस अनमोल कृत्य से अनुभव हो रहा था कि मैं भ्रष्टाचार और भ्रष्ट व्यवस्

60

ग़ज़ल

11 जुलाई 2023
0
0
0

मैं भारतीय जम्मू और कश्मीर हूॅं। भूषण की शशि, रांझे की हीर हूॅं।। मेरा सौभाग्य मैं पुनर्जीवित हुआ। पौरुष बल से अभिनंदन शरीर हूॅं।। जो भी है तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत है।मैं अद्वितीय

61

ग़ज़ल

12 जुलाई 2023
0
0
0

शांति और धैर्य रखें बर्बादी के समय।शीघ्रता कभी ना करें शादी के समय।। एक ही नियम हो पूरे भारत में सनम। केंद्र गंभीर न बढ़ती आबादी के समय।। देश को हानि पहुंचाने वाले बाज़ आएं। छोड़ा

62

ग़ज़ल

14 जुलाई 2023
0
0
0

बची है जो जिंदगी चलो मज़ा करें।शनि देखेंगे उन्हें जो हमसे दगा करें।। सच्चाई का मोल आखिरी क्षणों में। बस इतना बता दो कैसे सजा करें।। पूरी दुनिया जाए भाड़ में क्यों कहें। पवित्र कहां

63

ग़ज़ल

17 जुलाई 2023
1
0
0

मेरी ढाल और तलवार ग़ज़ल है। मेरे आलेख की तेजधार ग़ज़ल है।। मेरा जीवन निष्पक्ष जांच की मूर्त। जिसमें तेरा निर्मल प्यार ग़ज़ल है।। तू देवी स्वरूप धर्मपत्नी है मेरी। सुशीला सम्पू

64

हिंदी ग़ज़ल पर बहुत अनाप शनाप लिखा जा रहा है। पढ़कर दुख होता है:- निदा नवाज़। (आलेख)

17 जुलाई 2023
0
0
0

उपरोक्त शब्द समकालीन उच्च शिक्षा प्राप्त एवं जम्मू कश्मीर के विद्वान हिंदी कलमकार श्री निदा नवाज़ जी ने अपनी फेसबुक पर लिखे हैं। उक्त शब्दावली की उत्पत्ति उन्ह

65

कामदेव का वध ! (आलेख)

18 जुलाई 2023
1
0
0

यौवन में सदैव सुखमय जीवन व्यतीत करने हेतु काम के देव "कामदेव" का वध आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। चूंकि जब तक कामदेव चंचल, सजग, सक्रिय एवं प्रभावी रहेंगे त

66

मैं स्वर्गीय पंडित विद्या रत्न 'आसी' नहीं हूॅं। (आलेख)

21 जुलाई 2023
0
0
0

मैं अद्वितीय हूॅं। मेरी व्यथा अंतरराष्ट्रीय स्तर की है। जबकि सौभाग्यवश मैं अद्भुत योद्धा, निडर लेखक एवं पत्रकार, आलोचनात्मक समीक्षक, राष्ट्रीय विधिक ज्ञाता, रा

67

ग़ज़ल

21 जुलाई 2023
0
0
0

भूल पिछली बातों को वर्तमान देख।क्यों हुई ऐसी दशा अपनी जान देख।। कहते जिसे तुम सब मिलकर पागल। अपनी दुर्दशा और उसकी शान देख।। भरोसा था उसे अपने ईश्वर पे देखो। मरने से पहले उसे मिला व

68

ग़ज़ल

22 जुलाई 2023
0
0
0

चक्रव्यूह आज भी रचाए जा रहे हैं। अभिमन्यु भी पुनः फंसाए जा रहे हैं।। सत्य मेव जयते हमारी सभ्यता पर।महाभारत से कर्म कराए जा रहे हैं।। समय का चक्कर कभी रुकता नहीं। बल पूर्वक अशक्त दब

69

आप तो विद्वान हैं : न्यायिक रजिस्ट्रार ! (आलेख)

23 जुलाई 2023
1
0
0

अंततः 19-07-2023 का दिन उगने वाला था। जिसकी प्रतीक्षा मैं दिनांक 02-06-2023 से व्यग्रतापूर्वक कर रहा था। जिसके लिए माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्याया

70

सुशीला चलो जीवन जी लें! (आलेख)

25 जुलाई 2023
0
0
0

आज मंगलवार है और मंगलकामनाओं सहित मंगलकारी जीवनयापन हेतु मंगल आलेख के माध्यम से मंगल आमंत्रित कर रहा हूॅं कि "सुशीला बाली" चलो जीवन जी लें। वह अनमोल जीवन जिसकी

71

ग़ज़ल

27 जुलाई 2023
0
0
0

आज़ पुनः बरसात हुई।आनंदपूर्ण मेरी रात हुई।।जो भी समझाने आए। मेरे भाइयों की मात हुई।। वो बोली मैं तो परी हूॅं। सोचते सोचते प्रभात हुई।। राष्ट्र जाति न धर्म कोई। संवैधानिक ही बा

72

ग़ज़ल

27 जुलाई 2023
0
0
0

कुछ भी सुलझाने के लिए सरकार है कि नहीं। मंदिर मस्जिद के फसाद का आधार है कि नहीं।। हर कोई मुझे दुत्कारा कर चला जाता है यूं ही। किसी को भी मुझसे आंशिक प्यार है कि नहीं।। स्वार्थ के घ

73

"उजड़ना" उज्ज्वल भविष्य का आधार ! (आलेख)

28 जुलाई 2023
0
0
0

मां के गर्भ से स्वतंत्रता पाकर मैं अत्यंत रोया था। जिसके उपरांत मेरा दावा है कि अपने जीवन चक्र में रोते हुए जीवनयापन करने का अनुभव मेरे से अधिक किसी को नहीं हो

74

ग़ज़ल

30 जुलाई 2023
3
3
2

मुंसिफ बताओ मेरा अपराध क्या है। जिस पर दिया दण्ड वह वाद क्या है।। किस आधार पर दी मानसिक पेंशन। खुल कर खुले में बताएं याद क्या है।। क्यों भूल रहे भारत और भारतीयता। मानवता न हो

75

संभवतः वह मेरी पीड़ाओं की गहराई माप रहे थे ! (आलेख)

1 अगस्त 2023
0
0
0

बीते कल अर्थात 31 जुलाई 2023 को मैं माननीय रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल श्री एस आर गांधी जी की न्यायालय में अपनी याचिकाओं पर सुनवाई हेतु उपस्थित हुआ था। जहां पर पहुंच

76

मैं कुर्सी के प्रति मौलिक कर्तव्यनिष्ठ हूॅं: अकादमी सचिव (आलेख)

3 अगस्त 2023
0
0
0

मै यूं तो प्रत्येक तिथि और दिन शुभ होता है। परन्तु दिनांक इकतीस जुलाई दो हजार तेईस दिन सोमवार मेरे लिए अत्यधिक शुभ प्रमाणित हुआ था। चूंकि उस दिन मुझे सर्वप्रथम

77

टूटे व्यक्तित्व ! (आलेख)

4 अगस्त 2023
0
0
0

चारों दिशाओं की ओर देखने से पता चल रहा है कि प्रत्येक व्यक्ति कहीं न कहीं या किसी न किसी रूप से टूटा हुआ अवश्य है। भले ही वह अपने रोग को कितना भी छुपा ले पर छु

78

"परस्त्री का हरण" (आलेख)

7 अगस्त 2023
0
0
0

मानव का मन और मस्तिष्क एकांत होकर ही एकाग्रचित्त होता है। जिसमें "सागर" गागर में सिमट जाता है और आसमान धरती पर आ जाता है। वही एकाग्रता काम, क्रोध, लोह, मोह और

79

अटल मृत्यु कभी भी दरवाजा खटखटा सकती है ! (आलेख)

7 अगस्त 2023
0
0
0

मृत्यु अटल है। परन्तु मुझे समझाया जा रहा है कि मैं जीना सीखूं। समझाने वालों ने समझाते-समझाते मेरे आत्मविश्वास पर कुठाराघात किया और मेरी बीवी बच्चों को मुझसे अल

80

उज्ज्वल भविष्य की ओर सुनहरे संकेत ! (आलेख)

11 अगस्त 2023
1
0
0

मेरे जीवन चक्र में सरकार द्वारा हर पल फांसी पर लटकाने का भय और निरंतर चिंता व्याप्त थी। जिसकी निरंतर सोच एवं हाई आल्टिच्यूट में नियुक्ति करने के कारण मैं अंतड़

81

साहित्यिक धरोहर "निर्दोष चौक" के प्रति हमारे मौलिक कर्तव्य! (आलेख)

14 अगस्त 2023
0
0
0

स सौभाग्यवश स्वतंत्रता की श्रंखला में हम भारतवासी भारत की स्वतंत्रता का 77वां स्वतंत्रता दिवस अत्यंत हर्षोल्लास से 15 अगस्त 2023 को मनाने जा रहे हैं। जिसके लिए

82

साप्ताहिक कहानी महोत्सव का प्रथम दिवस ! (आलेख)

20 अगस्त 2023
0
0
0

जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू को साधुवाद देते हुए मैं हार्दिक गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूॅं। जिसके आयोजकों ने सात दिवसीय बहुभाषी कनिष्ठ कहा

83

समस्या और शिकायत! (आलेख)

21 अगस्त 2023
0
0
0

समस्या और शिकायत ! (आलेख) जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू द्वारा आयोजित सात दिवसीय बहुभा

84

जम्मू और कश्मीर की हिंदी भाषा दिव्यांग क्यों? (आलेख)

22 अगस्त 2023
0
0
0

जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू द्वारा आयोजित सात दिवसीय बहुभाषी कनिष्ठ कहानी महोत्सव के आयोजन का आज चौथा दिन था। जो पंजाबी भाषा को सम

85

साप्ताहिक कहानी महोत्सव सौहार्दपूर्ण परिवर्तन का प्रतीक! (आलेख)

24 अगस्त 2023
1
0
0

साप्ताहिक कहानी महोत्सव सौहार्दपूर्ण परिवर्तन का प्रतीक ! (आलेख)

86

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा कैसे फूले-फले! (आलेख)

25 अगस्त 2023
0
0
0

हिंदी भाषा को अंतराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए मां भारती प्रायः अग्रसर रही है। जिसमें किसी को भी किसी भी दृष्टिकोण से आपत्ति नहीं है। चूंकि हिंदी भाषा का आर

87

हमसे बड़ा सौभाग्यशाली कौन? (आलेख)

26 अगस्त 2023
1
0
0

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुझे मानवता ने मारा, भाई बंधुओं ने घसीटा, मित्र वर्ग ने शत्रुता की और माननीय उच्च न्यायालय के तथाकथित माननीय विद्वान न्यायाधीश ने नि

88

राष्ट्रभक्ति का उन्माद! (आलेख)

31 अगस्त 2023
0
0
0

राष्ट्रभक्ति का उन्माद शतरंज की रानी की भांति सक्रिय होता है। वह कब किस ओर मुड जाए राष्ट्रभक्त को भी पता नहीं चलता। क्योंकि उन्माद के समस्त पर्यायवाची शब्द विच

89

अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस! (आलेख)

21 सितम्बर 2023
1
0
0

खाली दिमाग शैतान का घर होता है। यह कहावत संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके कर्ताधर्ताओं पर पूर्ण रूप से चरितार्थ होती है। क्योंकि वह प्रत्येक दिन को किसी न किसी विशे

90

अतुकान्त कविता

22 सितम्बर 2023
0
0
0

धैर्य की आवश्यकता ! (अतुकान्त कविता) ************ मेरा लक्ष्य बड़ा था संभवतः उसकी पूर्ति हेतु मन मस्तिष्कसहित समय भी अधिक लगना था। चूंकि विषैले विष का

91

चुनौतियों का सामना करना हमारा मौलिक कर्तव्य है। (आलेख)

25 सितम्बर 2023
0
0
0

यद्यपि हमारी सोच सकारात्मक है। वह मानवीय मूल्यों पर आधारित है। उसका दृष्टिकोण जनहितकारी है। जिसका दूरगामी परिणाम सामाजिक तंत्र को परिवर्तित करने वाला है

92

ग़ज़ल

28 सितम्बर 2023
0
0
0

जीता या हारा परन्तु संघर्ष चलता रहा। क्षण क्षण सौभाग्य का हर्ष बढ़ता रहा।। चंद्रमा पर विराजमान हैं अब भारतीय। आदित्य यान भी चंचल सरकता रहा।। मेरी औकात थी सो प्रयासरत रहा मैं।

93

ग़ज़ल

28 सितम्बर 2023
0
0
0

जीता या हारा परन्तु संघर्ष चलता रहा। क्षण क्षण सौभाग्य का हर्ष बढ़ता रहा।। चंद्रमा पर विराजमान हैं अब भारतीय। आदित्य यान भी चंचल सरकता रहा।। मेरी औकात थी सो प्रयासरत रहा मैं।

94

काल्पनिक साहित्य कायर कबूतर की भांति? (आलेख)

29 सितम्बर 2023
0
0
0

काल्पनिक साहित्य उस कायर कबूतर की भांति है जो बिल्ली को देखते ही अपनी ऑंखें बन्द कर लेता है और बिल्ली उसे आसानी से खा जाती है। इसी सिक्के के दूसरे पहलू का कड़व

95

अतुकान्त कविता

2 अक्टूबर 2023
0
0
0

मैं वास्तव मेंपागल ही तो थाजो समझता था निःसंदेह एवं निःसंकोच क्षेत्रीय भाषाई लेखकों केसाहित्य अकादमी पुरस्कार यापद्म भूषण पुरस्कार या पद्म विभूषण पुरस्कार या&n

96

सजल

10 अक्टूबर 2023
0
0
0

सजल हो या ग़ज़ल क्या पड़ता है अंतर।मनन करो बदल जाए सम्पूर्ण भ्रष्ट तंत्र।। दमन पर अभिनंदन समारोह नहीं होते। परम पूज्य संतों के नहीं हैं बेअसर मंत्र।। भरम है सबको कि वे मारेंगे दूस

97

इक्कीसवीं सदी के डोगरी साहित्य में राष्ट्रीय भावना! (आलेख)

13 अक्टूबर 2023
0
0
0

सार्वभौमिक सत्य यह है कि जम्मू और कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू द्वारा आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में मुझे व्यक्तिगत रूप से तो नहीं परन्तु सर्वसाधार

98

चूंकि लेखक हत्यारे नहीं राष्ट्रनिर्माता होते हैं! (आलेख)

14 अक्टूबर 2023
0
0
0

जीवित रहते हुए कष्टदाई पीड़ाओं की यात्राओं से मुक्ति पाना सम्भवतः सम्भव नहीं होता है। परन्तु हृदयविदारक पूर्वकालीन कष्टदाई पीड़ाओं की यात्राओं के घावों पर वर्त

99

अपने मौलिक अधिकारों पर डाका कैसे सहन करूं? (आलेख)

16 अक्टूबर 2023
0
0
0

सौभाग्यवश जे.एंड.के अकैडमी ऑफ आर्ट, कल्चरल एंड लैंग्वेजज़, जम्मू द्वारा आयोजित दो दिवसीय डोगरी सम्मेलन में मुझे बिना बुलाए जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। वह डो

100

स्वार्थ के कुत्तेपन के कीटाणुओं से सदैव बचें ! (आलेख)

19 अक्टूबर 2023
0
0
0

निस्वार्थ जीवन निस्संदेह उत्तम होता है। भले ही वह जीवन सम्पूर्ण जीवन कष्टमय रहता है। परन्तु वह जीवन चारों दिशाओं में आलौकिक छटा बिखेरता है। उस जीवन के व्यक्तित

101

दुष्ट जुगाड़ियों के जुगाड़ों की पोल खुलेगी! (आलेख)

21 अक्टूबर 2023
0
0
0

दिनांक 21-10-2023 की महत्वपूर्ण सुबह के पॉंच बज गए हैं। नित्य कर्मों से निवृत्त होकर मैं लेखन कार्य में व्यस्त हूॅं। चूंकि सत्यमेव जयते के रणक्षेत्र में मेरा न

102

वसुधैव कुटुंबकम की परम्परा! आलेख

22 अक्टूबर 2023
1
1
1

मोहयाल बिरादरी के विद्वान सदस्यों सहित समस्त सर्वसाधारण सदस्यों के चेहरे उस समय खिल उठे, जब उन्हें जम्मू और कश्मीर मोहयाल सभा के माननीय विद्वान सचिव सहित पूजनी

103

कृपया स्थानीय वास्तविक लेखकों को बढ़ावा दें! (आलेख)

23 अक्टूबर 2023
0
0
0

लेखकों का स्वाभिमान उस समय तार-तार होकर प्रश्नचिन्हों के कटघरे में खड़ा हो जाता है। जब वे किसी साहित्य अकादमी की सरकारी पत्रिका के सह सम्पादकों/सम्पादकों/सांस्

104

सजल

23 अक्टूबर 2023
0
0
0

भूलो भूत को वर्तमान गले लगाओ। फूलो फलो व अपने स्वप्न सजाओ।। कैसे बताऊं कि आवश्यक था सब। मृत्यु से पूर्व भविष्य सुखद बनाओ।। खेलना कूदना अधिकार है तुम्हारा। फुदक के जाओ, शीघ्र ल

105

पुरुषार्थ के गुर्दे कहॉं लुप्त हो गए हैं? (आलेख)

24 अक्टूबर 2023
0
0
0

सगे बड़े भाई अथवा भाभियॉं हों, पिताश्री हो, गुरु अथवा शिष्य हों, साधारण साहित्यकार अथवा साहित्य अकादमी या पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार हों, प्रोफेस

106

बदलते परिवेश में पत्रकारिता की चुनौती : कारण और निवारण ! (आलेख)

27 अक्टूबर 2023
0
0
0

बदलते परिवेश में पत्रकारिता की चुनौती : कारण और निवारण ! &nbs

107

बदलते परिवेश में हिन्दी भाषा का स्वरूप? (आलेख)

30 अक्टूबर 2023
0
0
0

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण सृष्टि में सब कुछ परिवर्तनशील है। जिसमें मानव से लेकर मानवीय मूल्यों पर आधारित मानव की मानवता के दृष्टिकोण

108

चेहरे की झुर्रियॉं (आलेख)

31 अक्टूबर 2023
0
0
0

तुम्हारे चेहरे की झुर्रियॉं चलचित्र की भॉंति मेरे मन मस्तिष्क पटल पर हमारे सम्पूर्ण जीवन की कष्टमय कहानियों का गुणगान कर रही हैं। प्रिय सोचकर बताना क्या उन कष्

109

भ्रष्टाचार पर कब भारी पड़ेगा सदाचार? (आलेख)

1 नवम्बर 2023
0
0
0

केंद्रीय सतर्कता आयोग (CENTRAL VIGILANCE COMMISSION) भी देश में है और उसके वर्तमान अध्यक्ष श्री पी.के. श्रीवास्तव जी उसका सशक्त नेतृत्व कर रहे हैं, के बारे में

110

भ्रष्टाचार त्यागें और सुकुन संग सद्गति प्राप्त करें! (आलेख)

3 नवम्बर 2023
0
0
0

करो भ्रष्टाचार और खाओ पैसा, जिसका कड़वा सच यह है कि पैसा आज तक कोई मॉं का लाल खा नहीं सका, उल्टा पैसे ने सबको खाया है। भले वह कुबेर का धन ही क्यों न हो? उल्लेख

111

सदैव रातों को रोने हेतु नितॉंत अकेले....! (आलेख)

7 नवम्बर 2023
0
0
0

विवाह एक दिव्य अनुभूति है, जो स्त्री और पुरुष की यौन इच्छापूर्ति का सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक अनुज्ञापत्र अर्थात लाइसेंस (LICENCE) है। जो प्रमाणित करता ह

112

आड़े तिरछे चित्र चित्रण में क्या हम.....? (आलेख)

9 नवम्बर 2023
1
0
1

सर्वविदित है कि जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू दो दिवसीय हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन नौ नवंबर दो हजार तेईस से लेकर दस नवंबर दो हजार तेईस त

113

अकादमी से प्रश्न पूछना मेरा मौलिक अधिकार! (आलेख)

10 नवम्बर 2023
0
0
0

ईश्वरीय कृपा से भारत के विभिन्न विभागों के भारतीय भ्रष्टाचार को दर्शाने एवं उसे जड़ से समाप्त करने हेतु बाल्यावस्था से खाई अपनी भीष्म सौगंध के प्रति अपने बासठव

114

क्या साहित्यिक चक्रव्यूह में अर्धसत्य को दर्शाना भ्रष्टाचार नहीं है? (आलेख)

13 नवम्बर 2023
0
0
0

जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सदाचारी सचिव आदरणीय श्री भारत सिंह मन्हास जी का मैं हृदय तल से सम्मान करता हूॅं। परन्तु इसका यह अर्थ

115

निष्पक्ष न्यायिक जॉंच की परम आवश्यकता है ! (आलेख)

15 नवम्बर 2023
0
0
0

जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी की हिन्दी द्विमासिक पत्रिका "शीराज़ा" विश्व की ऐसी पहली पत्रिका बनने जा रही है जो जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के

116

विश्वविद्यालय जम्मू के गिरते स्तर का उत्तरदेय कौन? (आलेख)

17 नवम्बर 2023
0
0
0

अष्टावक्र की दिव्यांगता पर हंसना महंगा पड़ सकता है। इतना तो समस्त ज्ञानी जानते हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश उक्त ज्ञान को प्राप्त नहीं करते और अंधकार को दूर करने के

117

मानव और मरघट के आवागमन से छुटकारा! (आलेख)

23 नवम्बर 2023
0
0
0

मानव और मरघट एक दूसरे के पूरक होते हैं जिसकी कड़वी सच्चाई यह है कि मानव शरीर को एक न एक दिन मरना अवश्य होता है और मृत्यु उपरांत मानवीय विधान यह है कि निष्प्राण

118

शनिदेव जी की अपार कृपा शनैः-शनैः ही होती है ! (आलेख)

23 नवम्बर 2023
0
0
0

मेरा भाग्य सूर्य के प्रकाश की भॉंति प्रकाशमान है, जिसमें मेरा अनमोल जीवन सार्थक हो गया है। मैंने बाल्यावस्था में संजोए अपने सुनहरे स्वप्न साकार कर लिए हैं। मेर

119

सजल

23 नवम्बर 2023
0
0
0

सुकून राष्ट्र के प्रति राष्ट्रीयता जगाने से मिले। संतोष हमें मौलिक कर्तव्य निभाने से मिले।। तुम्हारे लिए मन मस्तिष्क में प्यार झलकता। परंतु सच यही है कि राहत दूर जाने से मिले।। फड़

120

अंततः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी क्यों? (आलेख)

24 नवम्बर 2023
0
0
0

जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के गिरते साहित्यिक स्तर पर अंकुश कब लगेगा? कब तक वह साहित्यिक चाटुकार लेखकों के कंधे पर सवार होकर अपनी डींगें हॉंकती

121

ऐसे लेखक सामाजिक एवं सांस्कृतिक कलंक ! (आलेख)

25 नवम्बर 2023
0
0
0

मॉं के गर्भ से ही मैं क्रोधी स्वभाव का नहीं हूॅं और न ही मॉं ने मुझे ऐसा लिखना सिखाया है। क्योंकि जब तक मेरी मॉं जीवित रहीं, वह मुझे धैर्य का पाठ यह कहते हुए प

122

मातृ शक्ति सदैव पूजनीय! (आलेख)

25 नवम्बर 2023
0
0
0

जो पत्नियॉं अपने पति परमेश्वर की सकारात्मक पहल का नकारात्मक उत्तर देती हैं, अपने घरों का त्याग कर अलग रहने लगती हैं, सांस्कृतिक एवं सांसारिक यौवन पथ को अनियंत्

123

राष्ट्रीय संविधान दिवस मनाने का क्या औचित्य है? (आलेख)

27 नवम्बर 2023
0
0
0

राष्ट्रीय संविधान दिवस मनाने का क्या औचित्य है? (आलेख) &

124

प्रतिष्ठित कीर्तिमान साहित्य पत्रिका को साधुवाद! (आलेख)

27 नवम्बर 2023
0
0
0

मध्यप्रदेश राज्य प्रशासन द्वारा दिनॉंक 20 नवंबर 2023 को पंजियन क्रमांक उद्यम-एमपी-14- 0009407 के अंतर्गत मान्यता प्राप्त "कीर्तिमान साहित्य पत्रिका" नामक प्रति

125

ग़ज़ल

28 नवम्बर 2023
0
0
0

ग़ज़ल/सजल !+++++++++हानि पहुॅंचाने वाला सदैव पराया नहीं होता। जो हानि पहुॅंचाए वो मॉं का जाया नहीं होता।। घर का भेदी लॅंका ढाए, सभी परिचित हैं कि।दानी व कपटी प्रायः भ्रम या माया

126

मृत्यु प्राकृतिक परिवर्तन पर अंतिम यात्रा अकेले क्यों? (आलेख)

28 नवम्बर 2023
0
0
0

आज सुबह सुबह सुनने को मिला था कि जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू के कोई भले अधिकारी मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शॉंति प्र

127

ग़ज़ल

30 नवम्बर 2023
0
0
0

साहित्य उनके बाप की सम्पत्ति नहीं है। और न ही किसी का दिया कोई दान है।। मेरी इच्छा है कि मैं शुद्ध हिंदी में लिखूॅं। आलेख या ग़ज़ल साहित्यिक वरदान है।। शोधकर्ताओं को भी होना पड़ेगा

128

ज्ञानपीठ तो क्या "पद्मश्री पुरस्कार" भी प्राप्त नहीं हुआ?

4 दिसम्बर 2023
0
0
0

जी हॉं, आपने उचित समझा है। मैं उन्हीं की बात कर रहा हूॅं जिन्होंने जीवनभर जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी की सेवा कर अपना स्वार्थसिद्ध किया, वह बताते

129

ज्ञानपीठ तो क्या "पद्मश्री पुरस्कार" भी प्राप्त नहीं हुआ? (आलेख)

4 दिसम्बर 2023
0
0
0

ज्ञानपीठ तो क्या "पद्म पुरस्कार" भी प्राप्त नहीं हुआ? (आलेख) &n

130

पट्टाधारी कुत्ते बहरूपियों से सदैव बचना अनिवार्य है! (आलेख)

5 दिसम्बर 2023
0
0
0

कहते हैं कि दूसरों के जीवन, घर अथवा देश में झॉंकना बुरी बात है। परन्तु वर्तमान युग तो पारदर्शी है। हमारा सम्पूर्ण भारत "पारदर्शी" है और "पारदर्शी भारत" के नाम

131

प्रज्ञान होने के बावजूद मेरा अपमान किया जा रहा है! (आलेख)

5 दिसम्बर 2023
0
0
0

संवैधानिक न्यायिक तुला में मेरी आत्मा को परमात्मा के संग तुलते हुए इकासठ वर्ष हो चुके हैं और इन इकासठ वर्षों में मैंने जो किया, सहा और पाया उसकी रूपरेखा अर्थात

132

ग़ज़ल

7 दिसम्बर 2023
0
0
0

मेरा रुका प्रत्येक काम श्रीराम कर देंगे।हार कर बजरंगी जीत मेरे नाम कर देंगे।।पीछा छुड़ा कर भागे गा कब तक यश। ठोककर सीना बर्बाद, बदनाम कर देंगे।। सेवा करने वालों को ही मिलता है मेवा। सार

133

मैं सुख संपदा सम्पन्न हूॅं। (आलेख)

8 दिसम्बर 2023
1
0
0

गत दिवस अर्थात दिनॉंक 07 दिसंबर 2023 को मैंने घर से दिल्ली की ओर कूच कर दिया था और जम्मू से लुधियाना जंक्शन तक लोहपथामिनी के साधारण टिकट से अपने मित्रों के पास

134

पराशर धाम की सुखद यात्रा ! (आलेख)

14 दिसम्बर 2023
0
0
0

इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड के विशेष निमंत्रण पर हरियाणा राज्य के फरीदाबाद शहर में आए हुए कई दिवस व्यतीत हो चुके हैं और वर्ल्ड रिकॉर्ड यूनिवर्सिटी से भी आज मेरी छुट्

135

तो हम कलयुग में किस कलयुगी खेत की मूली हैं? (आलेख)

23 दिसम्बर 2023
0
0
0

सम्पूर्ण संसार को कुटुम्ब मानते हुए हमें एकॉंत में अंतर्ध्यान होकर विचार करना चाहिए कि यह सुंदर समाज, सामाजिक बंधन, भाई बंधुत्व, स्त्री-पुरुष, पुत्र पौत्र यहॉं

136

उत्पत्ति, अंत और अंतिम यात्रा! (आलेख)

24 दिसम्बर 2023
0
0
0

विज्ञान कहता है कि मानव सृष्टि का आधार नर और नारी है। इसलिए शास्त्रों में भी नर को नारायण और नारी को नारायणी कहा गया है। कहने का अभिप्राय यह है कि हम सब अपनी-अ

137

वीरगति और पागलपन ! (आलेख)

25 दिसम्बर 2023
0
0
0

वीरगति "पागलपन' का पर्यायवाची है अर्थात दोनों का अर्थ समान ही है। क्योंकि पागलपन के बिना वीरगति प्राप्त करना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव होता है। जिसका उदहारण यु

138

क्षमा प्रार्थी होना या क्षमा करना "बड़प्पन" होता है ! (आलेख)

26 दिसम्बर 2023
1
0
0

मृत्यु का कब, कहॉं और कैसे सामना अर्थात आगमन हो जाए, कोई भी नहीं जानता और न ही आज तक कोई भविष्य की गर्भ को झॉंक सका है? परन्तु मृत्यु अटल सत्य है। जिसे ज्ञान,

139

कष्टदाई घटकों का आत्मिक एवं अध्यात्मिक आभारी हूॅं ! (आलेख)

27 दिसम्बर 2023
0
0
0

जीवन एक भयंकर चुनौती है और लेखन कार्य उक्त भीष्म चुनौती का समाधान है। ध्यान रहे कि लेखन सामग्री समस्त जटिल समस्याओं में टमाटर का कार्य करती है और उक्त विकट व्य

140

न्यायपालिका और न्याय अर्थात धीमा विष! (आलेख)

28 दिसम्बर 2023
0
0
0

बाल्यकाल में दादी मॉं झूठे शॅंख की कहानी सुनाया करती थीं जो एक अशर्फी मॉंगने पर दो अशर्फियॉं देने का आश्वासन देता था और इस खेल को कभी समाप्त नहीं करता था। परन्

141

मुझे और मेरे देश को विश्व स्तर पर कलॅंकित क्यों किया जा रहा है? (आलेख)

29 दिसम्बर 2023
0
0
0

भ्रष्टाचारयुक्त से लेकर भ्रष्टाचारमुक्त भारत का दावा करने वाली केंद्रीय मोदी सरकार के अधीनस्थ गृहमंत्रालय के माननीय मंत्री श्री अमित शाह जी के सशक्त नेतृत्व मे

142

जजों की न्यायिक मनमानी, नपुंसकता, आतंकीय दादागिरी कब तक ? (आलेख)

31 दिसम्बर 2023
0
0
0

तरूण भारतीय न्यायपालिका में माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीशों अर्थात जजों की न्यायिक मनमानी, नपुंसकता, आतंकी

143

मेरा युद्ध बुरों की बुराईयों के विरुद्ध है! (आलेख)

1 जनवरी 2024
0
0
0

राष्ट्रहित में बुरों की बुराईयों को समाप्त करने हेतु मुझे निरंतर लड़ना है जो बाल्यावस्था से निर्धारित दृढ़ संकल्पित मुख्य उद्देश्य परिवर्तित होकर वर्तमान में अ

144

सब कुछ पाने हेतु सब कुछ त्यागना अनिवार्य होता है! (आलेख)

3 जनवरी 2024
0
0
0

वासना से उपासना की ओर ले जाने का दावा करने वाले समकालीन ढोंगियों के ढोंग प्रायः एक न एक दिन सार्वभौमिक प्रकट हो ही जाते हैं और उल्लेखनीय यह भी है कि ऐसे ढोंगिय

145

ग़ज़ल

4 जनवरी 2024
0
0
0

ओ प्रिया ठिठुरती ठंड में तेरा बुलाना याद है।और मेरा सौभाग्यवश आना न आना याद है।। वो भला कैसे छोड़ सकता हूॅं मौज मस्ती मैं। पर जीवन भर कोल्हू का बैल बनाना याद है।। भूलो कल की कड़वी बातें

146

राष्ट्रीय साहित्य में माननीय न्यायाधीशों पर टिप्पणियॉं ! (आलेख)

5 जनवरी 2024
0
0
0

जम्मू और कश्मीर के कतिपय मॅंचीय लेखकों का मानना है कि माननीय न्यायालय और माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों की धूर्त मनमानियों पर न्यायिक तार्किक टि

147

न्यायाधीश निर्लज्जता की मर्यादित सीमाऍं लॉंघ चुके हैं! (आलेख)

6 जनवरी 2024
0
0
0

न्यायाधीश निर्धारित निर्लज्जता की मर्यादित स माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी भारतीय न्यायपालिका के माननीय न्यायालय माननीय थे, माननीय हैं और

148

देशप्रेम पूर्ण मेरे अद्वितीय प्रयोग सिद्ध कर रहे हैं कि! (आलेख)

8 जनवरी 2024
0
0
0

बासठ वर्ष तक की अपनी आलौकिक स्वर्णिम आयु में, अपने जीवन रूपी प्रयोगशाला में, अपनी असाधारण, अविश्वसनीय, अकल्पनीय, अद्वितीय एवं अद्भुत शक्तियों का प्रयोग करते हु

149

प्रकृति की प्रत्येक सुबह सुनहरे पल लेकर आती है। (आलेख)

10 जनवरी 2024
0
0
0

यद्यपि हम स्वस्थ मन और मस्तिष्क से विचार करें तो प्रकृति की प्रत्येक सुबह ब्रह्मांड के समस्त जीवों के लिए अनमोल सुनहरे पल लेकर आती है और उन आलौकिक पलों से प्रत

150

ग़ज़ल

11 जनवरी 2024
0
0
0

कर्म का मोल न कोई चुकाना चाहे। धर्म पर रक्त हर कोई बहाना चाहे।। मेरी तो पहचान ही राष्ट्रीय तिरंगा है। शर्म तो उसे है जो भी मिटाना चाहे।। कुछ रुक जाओ सॉंस उखड़ गई है। परंतु शूर

151

प्रसन्नता एक आलौकिक औषधि है! (आलेख)

11 जनवरी 2024
0
0
0

जी हॉं, प्रसन्नता एक आलौकिक औषधि है जिसका निःशुल्क सेवन सदैव लाभप्रद होता है। क्योंकि इसके सेवन से प्रायः मानव का शारीरिक, मानसिक, आत्मिक और यहॉं तक कि अध्यात्

152

नियति के आलौकिक खेल अद्भुत व अद्वितीय होते हैं! (आलेख)

12 जनवरी 2024
0
0
0

नियति के आलौकिक खेल अद्भुत व अद्वितीय होते हैं ! (आलेख) &n

153

अंतिम और पूर्णतः अंतिम अवसर के बाद कितने सुअवसर ? (आलेख)

13 जनवरी 2024
0
0
0

माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी मेरा न्यायिक मामला अर्थात विषय का न्यायिक स्वरूप यह है कि पूर्व न्यायाधीशों की भॉंति वर्तमान न्यायाधीश भी म

154

कालचक्र ही दर्शाता है व्यक्ति का अस्तित्व और व्यक्तित्व ! (आलेख)

14 जनवरी 2024
0
0
0

समय चलायमान है और प्रकृति परिवर्तनशील होती है। दोनों ही जीवन का आधार होते हैं जिनसे कर्मों की उत्पत्ति होती है और कर्म ही पूजा होते हैं। चूॅंकि कर्म भाग्यविधात

155

माननीय न्यायाधीश मुझे पूर्णतः बर्बाद करने पर उतारू क्यों? (आलेख)

15 जनवरी 2024
0
0
0

मेरे जीवनभर के न्यायिक शोध में पाया गया है कि "न्याय में देरी" करना माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के विभिन्न माननीय विद्वान न्यायाधीशों की वि

156

सॉंस्कृतिक दृष्टि से मौलिक कर्तव्यों की विधिक विभिन्नताऍं ! (आलेख)

16 जनवरी 2024
0
0
0

सर्वविदित है कि भारत सरकार के युग परिवर्तक पुरुष माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी भारत के प्रथम व्यक्ति अर्थात माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्र

157

स्थानीय लेखकों के रक्षक ही भक्षक क्यों हैं? (आलेख)

18 जनवरी 2024
0
0
0

माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी, माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी एवं माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द

158

ग़ज़ल !

19 जनवरी 2024
0
0
0

नींद चैन की सो जाओ प्रभु श्रीराम आए हैं। जलाऍं हम खुशी के दीप राजाराम आए हैं।। बहुत बढ़िया है दिन का उजाला आज भी। प्रकाश पर्व दिवाली अयोध्या धाम आए हैं।। परन्तु रावण भी कोई कम नहीं

159

सर्वप्रथम सुनें, देखें और ध्यानपूर्वक लिखें!

19 जनवरी 2024
0
0
0

मानव जीवन एक शोधात्मक प्रश्न पत्र होता है जिसका सीधा असर कर्मों पर आधारित होता है और चलचित्र की भॉंति प्रतिपल अपने गंतव्य की ओर अग्रसर होता रहता है। ध्यान रहे

160

जेल और मृत्यु के डर से आगे की बढ़त!

19 जनवरी 2024
0
0
0

जेल और मृत्यु के डर से आगे की बढ़त रूपी जीत साधारण व्यक्ति के असाधारण दार्शनिक व्यक्तित्व को दर्शाती है जो उक्त असंतोषजनक विद्वान व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता को

161

आजादी के अमृत महोत्सव के संग चलती मेरी न्यायिक यात्रा! (आलेख)

21 जनवरी 2024
0
0
0

पराधीनता शासनकाल से चलते आ रहे असहनीय कलॅंकित भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए प्रकृति ने संभवतः मुझे चुन लिया था जिसके आधार पर मेरी और मेरे परिवार की बल

162

चुम्बन और चुम्बन की चुम्बकीय शक्ति! (आलेख)

23 जनवरी 2024
0
0
0

मन में बसे अथाह पवित्र प्रेम के प्रकटीकरण का माध्यम चुम्बन बनता है जो प्रत्येक संबंध की पवित्रता को बनाए रखने में सक्षम होता है। चूॅंकि चुम्बन का क्षेत्रफल मात

163

श्री रमेश अरोड़ा जी का कार्यक्रम पूर्णतया सफल रहा! (आलेख)

24 जनवरी 2024
0
0
0

श्री रमेश अरोड़ा जी का कार्यक्रम पूर्णतया सफल रहा !

164

गणतंत्र दिवस 2024 ! (आलेख)

24 जनवरी 2024
0
0
0

अद्भुत ही नहीं बल्कि अद्वितीय रहस्योद्घाटन हो रहे हैं कि राष्ट्र के माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी और माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्

165

एकात्म मानववाद

25 सितम्बर 2024
2
0
0

एकात्म मानववाद ! (विश्लेषणात्मक आलेख)परिचय :- एकात्म मानववाद भारतीय दर्शन और राजनीतिक विचारधारा का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है, जिसे भारतीय जनसॅंघ के सॅंस्थापक पॅंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने 1965

166

राष्ट्रीय सॅंविधान दिवस मनाने का क्या औचित्य है? (आलेख)

26 नवम्बर 2024
2
0
0

भारतीय नागरिकों को भले ही देश का स्वामी माना जाता है। परन्तु इसमें सत्य कितना और मिथ्या कितना है? यह सब जानते हैं और कड़वे सच से भलीभॉंति परिचित भी हैं। चूॅंकि अभी स

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए