संविधान के अंतर्गत संवैधानिक गतिविधियों के अनुसार सरकारी नियमों का पालन करते हुए लाभान्वित होने की प्रसन्नता से भले ही मैंने दूसरों को घोड़े बेचकर सोने का परामर्श दिया था। परन्तु उसी सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि मैं अपने मौलिक कर्तव्यों की अपूर्ति के कारण रात भर सो नहीं पाया हूॅं। चूंकि अपने हाथों से एफआईआर पंजीकृत करने हेतु दी गई अत्यंत संवेदनशील प्रार्थनापत्र की पावती प्राप्त करने में मैं अक्षम रहा था। कहने का अभिप्राय यह है कि मुझे प्रार्थनापत्र देने की पावती नहीं मिली। जिसे पाना मेरा मौलिक अधिकार था। इसके अलावा इस बात का भी मेरे पास क्या प्रमाण है कि मैंने किसी विभाग को कोई प्रार्थनापत्र दिया है?
उल्लेखनीय है कि कई वर्षों के अंतराल पर पिछले कल एक साथ मुझे पुलिस चौकी ज्यौड़ियां, पुलिस थाना अखनूर और एसडीपीओ अखनूर कार्यालयों में जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। जहां अन्य घटनाक्रमों पर आधारित बिंदुओं के साथ साथ निरीक्षक हरजीत सिंह जी एवं एसडीपीओ मोहन लाल शर्मा जी से मौलिक कर्तव्यों पर क्षणिक ही सही परन्तु सौहार्दपूर्ण चर्चा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। जिस सौभाग्य में वार्तालाप के साथ साथ उनके द्वारा अतिथि सत्कार में बिस्कुट और चाय की चुस्कियों का आनन्द लेते हुए मैंने उन्हें अपनी नव प्रकाशित "मौलिक कर्तव्य और चुनौतियां" नामक पुस्तक भी दिखाई थी। जिस आवभगत के लिए हम उनके साथ साथ जम्मू और कश्मीर पुलिस विभाग के हृदय तल से आभारी हैं।
हालांकि समय के अभाव में मौलिक कर्तव्यों और मौलिक अधिकारों पर खुलकर बिंदास चर्चा नहीं हो पाई। जबकि इस विषय पर भरपूर मंथन करने की अत्यंत आवश्यकता है। चूंकि एक ओर हमारा देश "आजादी का अमृत महोत्सव" नामक राष्ट्रीय त्यौहार मना रहा है तो दूसरी ओर देश के नागरिकों को प्राथमिक सूचना रिपोर्ट पंजीकृत कराने हेतु दी गई प्रार्थनापत्र की पावती अर्थात रसीद मांगने पर भी नहीं दी जा रही है। जिसे कर्त्तव्यनिष्ठा पर आघात कहना अतिश्योक्ति नहीं है।
जबकि वर्तमान सरकार माननीय नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में चल रही है। जिनके लिए राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कहा जाता है कि "मोदी" हैं तो मुमकिन है। इसके बावजूद सत्य यह है कि वरिष्ठ नागरिकों एवं महिलाओं द्वारा ज्यौड़ियां/अखनूर पुलिस प्रशासन को दी गई प्रार्थनापत्र की पावती अर्थात रसीद प्राप्त करना भी मुमकिन नहीं है। यह मोदी सरकार एवं मोदी सरकार द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय त्यौहार "आजादी का अमृत महोत्सव" का खुल्लमखुल्ला घोर अपमान नहीं तो और क्या है?
उल्लेखनीय यह भी है कि पुलिस प्रशासन द्वारा चलाई जा रही उक्त कुरीति पर भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारियों सहित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयंसेवकों का राष्ट्रहित में मौलिक कर्तव्य बनता है कि वह इस बुराई पर स्वयं संज्ञान लें। चूंकि यह बुराई कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार द्वारा भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन देने के लिए वर्षों से चलाई जा रही है। जिसकी समाप्ति यदि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार में नहीं होगी तो फिर कब होगी?
जबकि पुलिस प्रशासन के मौलिक कर्तव्यों में एक मौलिक कर्तव्य यह भी है कि नागरिकों द्वारा दी गई लिखित प्रार्थनापत्र की पावती अर्थात रसीद उसी समय देकर नागरिकों के मौलिक अधिकारों की पूर्ति की जानी चाहिए। चूंकि दी गई प्रार्थनापत्र की पावती लेना नागरिकों के मौलिक अधिकार में आता है और पावती देना पुलिस चौकी अथवा थाने का मौलिक कर्तव्य बनता है। जिसके लिए मेरा संघर्ष जारी रहेगा और आवश्यकता पड़ी तो माननीय उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया जाएगा। ताकि उपरोक्त भ्रष्टाचार पर अंकुश ही नहीं बल्कि न्यायिक व्यवस्था में सरकारी अधिकारियों के निहित विवेक, बुद्धि और नागरिकों के प्रति निष्ठावान जवाबदेही तय हो सके।
अतः आलेख के माध्यम से आहत भावनाओं से राहत पाने हेतु महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी, माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के मुख्य प्रशासक माननीय उप राज्यपाल श्री मनोज सिन्हा जी से मेरी विनम्र प्रार्थना है कि पुलिस द्वारा चलाई जा रही उपरोक्त कुरीति को प्रभाव से तुरंत बंद कर प्रत्येक प्राथमिक सूचना रिपोर्ट की पावती देने की रीति का शुभारम्भ कर स्वतंत्र देश के स्वतंत्र देशवासियों को कृतार्थ करें। सम्माननीयों जय हिन्द