आज राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस है। जो प्रख्यात भारतीय चिकित्सक, शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ डॉ बिधान चंद्र रॉय की जयंती के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष 01 जुलाई को मनाया जाता है। सर्वविदित है कि डॉक्टर्स डे अर्थात चिकित्सक दिवस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न तिथियों पर मनाया जाता है। उपरोक्त राष्ट्रीय दिवस उन चिकित्सकों की श्रेष्ठतम प्रदर्शनों से ओतप्रोत भूमिका को चिन्हित करता है जो यह सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास करते हैं कि रोगी का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहे। जिसके लिए उक्त दिवस स्वास्थ्य कर्मचारियों/अधिकारियों के सशक्त परिश्रम और समर्पण हेतु धूमधाम से मनाया जाता है।
परन्तु दुर्भाग्यवश मेरा अनुभव इससे भिन्न ही नहीं बल्कि अत्यधिक खट्टा-मीठा है। चूंकि मेरे जीवन में मेरे मस्तिष्क का मेडिकल परीक्षण नौ बार हुआ है। जिसमें पहली बार मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा गहन जांच के उपरांत मुझे शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ प्रमाणित किया गया था। जिसके आधार पर मेरे पैतृक विभाग एसएसबी ने मुझे सेवा हेतु स्वीकृत किया था। उसके उपरांत दूसरी बार मुझे सेना के मेडिकल बोर्ड ने हाई आल्टिच्यूट अनफिट कर मुझे छः माह के लिए कैटागिरी सी (CEE) घोषित कर दिया था। उसके बाद तीसरी बार मुझे राजौरी जिला के मेडिकल बोर्ड ने स्वस्थ पाया।
परन्तु एक अस्थाई चिकित्सालय के चिकित्सक की घूसखोरी ने मेरे चौथे मेडिकल बोर्ड के द्वार खोल दिए। जिसके आधार पर मेरा चौथा मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। जिसमें मुझे प्रताड़ित बताते हुए सम्पूर्ण मानसिक स्वस्थ घोषित किया गया था। जिससे चिढ़कर मेरे विभागीय क्रूर अधिकारियों ने मुझपर राष्ट्रद्रोह का झूठा आधारहीन आरोप भी लगाया था। जिससे विभाग अब शपथपत्र दाखिल कर मुकर गया है।
उल्लेखनीय है कि प्रताड़ना और शोषण से मुक्ति पाने हेतु एवं तपेदिक रोग निवारक औषधि प्राप्त करने हेतु मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली ने माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय की शरण ली थी। जहां माननीय भ्रष्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए एम मीर जी ने मुझे पागल घोषित करते हुए विभाग को मेरे मानसिक उपचार करवाने का आदेश देकर मेरे पांचवें मानसिक परीक्षण का रास्ता साफ कर दिया था।
जिसके अंतर्गत पुंछ जिले के डॉक्टरों ने भी माननीय न्यायाधीश की भॉंति मेरी तपेदिक का क्षणिक उल्लेख भी नहीं करते हुए पांचवे मेडिकल बोर्ड ने मेरा छठा मानसिक परीक्षण करवाने का परामर्श दे दिया। छठे मानसिक बोर्ड द्वारा मुझे देश के सर्वोच्च चिकित्सालय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली या पीजीआई चिकित्सालय चण्डीगढ़ में मानसिक परीक्षण का आदेश सुना दिया था। जिसमें मेरा वेतन तक विभाग ने बंद कर रखा था। जिसके बाद मुझे मृत्यु की शैय्या पर लेटे देख मुझे लम्बी छुट्टी पर भेज दिया था। जिसमें मैंने पुनः अपने मौलिक अधिकारों की दुहाई देते हुए माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी। परन्तु पुनः माननीय न्यायालय मुझे वेतन देना भूल गई और मुझे तुरन्त एम्स या पीजीआई चिकित्सालय में परीक्षण हेतु आठवें मेडिकल बोर्ड हेतु विभाग को आदेश दे दिया था। हालांकि तब तक मुझे डॉ. राम मनोहर लोहिया चिकित्सालय के भ्रष्ट डॉक्टरों द्वारा सातवें मेडिकल बोर्ड में मानसिक रोगी घोषित करने पर मुझे नौकरी से बर्खास्त किया जा चुका था।
अब आठवां बोर्ड सफदरजंग हॉस्पिटल में हुआ। जहां वरिष्ठ डॉक्टर राजेश रस्तोगी जी ने मेरी नौकरी बचाने की बोली लगाते हुए मेरे से हजारों रुपयों की मांग कर दी थी। जिसकी पूर्ति न कर पाने पर उन्होंने मुझे गंभीर मनोरोगी बताया था। जिसके कारण मेरी पुनः नौकरी छीन ली गई। जिसका मेरे विभागीय अधिकारियों ने सम्पूर्ण ठीकरा उक्त डॉक्टरों पर फोड़ा था। क्योंकि उन्हीं डॉक्टरों ने अपने मौलिक कर्तव्यों का ही नहीं बल्कि रोगियों को बचाने हेतु ली गई हिपोक्रैटिक शपथ (HIPPOCRATIC OATH) का भी उल्लंघन किया था। जो भविष्य में भारतीय चिकित्सा प्रणाली की सभ्यता और संस्कृति को कलंकित करेगा।
सौभाग्य से माननीय दिव्यांगजन न्यायालय ने मुझे नौवें मानसिक दिव्यांगता परीक्षण हेतु एम्स दिल्ली में भेजा था। जहां पर भी मुझे एक माह के उपरांत न तो दिव्यांग पाया गया और ना ही परीक्षण में मानसिक रोगी पाया गया था अर्थात उन्होंने सम्पूर्णतः मुझे मानसिक स्वस्थ घोषित किया था। जिसके बाद आज भी मुझे मानसिक दिव्यांगता पेंशन देकर राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जा रहा है। जिसके जिम्मेदार डॉक्टरों को ठहराना अतिश्योक्ति नहीं है।
अतः होनहार विवेकपूर्ण विद्वान ईमानदार डॉक्टरों से मेरा विनम्र आग्रह है कि वह राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस के दृष्टिकोण से सुशोभित करने हेतु ऐसे डॉक्टरों का भंडाफोड़ करें, जो समस्त भलेमानस डॉक्टरों को भी कलंकित करने से बाज नहीं आते।