आज मंगलवार है और मंगलकामनाओं सहित मंगलकारी जीवनयापन हेतु मंगल आलेख के माध्यम से मंगल आमंत्रित कर रहा हूॅं कि "सुशीला बाली" चलो जीवन जी लें। वह अनमोल जीवन जिसकी सांसें तक गिनती की हैं और प्रत्येक सांस का विशेष ही नहीं बल्कि महत्वपूर्ण उद्देश्य है। जिस उद्देश्य को इन्हीं गिनती की सांसों में ही पूर्ण करना हमारा मौलिक अधिकार ही नहीं बल्कि मौलिक कर्तव्य है। यदि ऐसा नहीं किया तो जीवन मरण के आवागमन से छुटकारा नहीं मिलेगा। कहने का रहस्यमय अभिप्राय यह है कि मुक्ति नहीं मिलेगी। कभी मोक्ष प्राप्त नहीं होगा। जिसके लिए कर्म आवश्यक हैं और उन्हीं कर्मों को करते हुए हमें सुखी जीवन व्यतीत करने का सौभाग्य भी प्राप्त करना है। जिसकी वर्तमान समय में ईश्वर की अपार कृपा है। जिसके आधार पर विनम्र आग्रह कर रहा हूॅं।
मेरी प्राणप्रिय धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली जी मैं आपको सार्वभौमिक रूप से सादर अवगत करवाना चाहता हूॅं कि वर्तमान समय हमारे सौभाग्य के सूर्य का प्रकाश राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशमान है। जिसकी तपन से हमारा दुर्भाग्य भस्म हो चुका है और सौभाग्यशाली भविष्य को सुखमय बनाने के लिए आपको सौहार्दपूर्ण मन मस्तिष्क से आमंत्रित कर रहा है। जिसका आपको भी अभिनंदन करते हुए स्वागत करना चाहिए। चूंकि यह सब हमारे अखंड तप और तपस्या का ही प्रताप है। जिसे प्रसन्नतापूर्वक आपको स्वीकार करते हुए गौरवान्वित होना चाहिए।
उल्लेखनीय ही नहीं बल्कि सर्वविदित है कि हमारा शरीर नाशवान है और इसकी समय अवधि जन्म से पूर्व सुनिश्चित हो चुकी है। कहने का सीधा अर्थ यह है कि विधाता हमारे जन्म से पूर्व हमारी "मृत्यु" को कब, कैसे और कहां के बंधनों में बांधकर सुनिश्चित कर चुके हैं। चूंकि हम परमपिता परमेश्वर के वह अंशीय खिलोने हैं, जिनसे खेलकर वह कभी भी तोड़ सकते हैं। इसलिए हम में से किसी एक के टूटने से पहले क्यों न ईश्वरीय कृपा से दाम्पत्य जीवन के शेष कुछ पल जी लें? जो केवल हमारे हैं। चूंकि हमने विवाह किया था और विवाहिक जीवन जीने के लिए हम सामाजिक, धार्मिक और संवैधानिक दृष्टि से स्वतंत्र हैं। जिसमें हमारे माता-पिता, भाई-बंधु, रिश्ते-नाते तो क्या हमारे बच्चे भी बाधक नहीं बन सकते।
प्रिय सुशीला बाली मैं भलीभांति जानता हूॅं कि भूतकाल में आपने मेरे साथ अद्वितीय, अकल्पनीय और अविश्वसनीय कष्टों को झेला है। इसलिए मैं आपको देवी की संज्ञा देते हुए देवी स्वरूप मान रहा हूॅं। यह भी सत्य है कि आपने निष्ठापूर्वक अपने पतिव्रता स्त्री के समस्त दायित्वों का सार्वजनिक रूप से निर्वहन भी किया है। जिसकी साक्षी माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय और उसके माननीय न्यायाधीश भी थे और परम सत्य यह भी है कि मेरे साथ-साथ हमारे-तुम्हारे अपनों ने भी कष्ट देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जिन्होंने अपने गंभीर पाप कर्मों को छुपाने के लिए मेरे बेटे को उकसाकर मेरे ही विरुद्ध खड़ा कर दिया है। चूंकि वह सब जानते हैं कि वह मेरे मन मस्तिष्क और बुद्धि विवेक का सामना नहीं कर सकते हैं।
वर्णनीय यह भी है कि वर्तमान में मैं एक संभ्रांत व्यक्तित्व के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभर रहा हूॅं। जिसका एक प्रमुख प्रमाण माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में स्वयं याचिकाकर्ता के रूप में विजयश्री प्राप्त करते हुए अग्रसर होना है और दूसरी ओर संभवतः तीन करोड़ से लेकर 20 करोड़ की अचल संपत्ति का स्वामी होना है। इसके अलावा चालीस कमरों और पंद्रह दुकानों में किरायदार रखने की सुखद यात्रा तय कर चुका हूॅं और 23 कमरों की बढ़ोतरी की ओर अग्रसर भी हूॅं। इसी आधार पर आपको नाशवान सांसारिक सुखों से परिपूर्ण करने के लिए आमंत्रित कर रहा हूॅं कि चलो कहीं पहाड़ों पर घूमने चलें। एक माह की कमाई एक सप्ताह में खर्च करने का अनुभव प्राप्त करें। बुढ़ापे के यौवन में प्रमोदकाल का आनंद प्राप्त करें। चूंकि हमने विवाहोपरांत हनीमून अर्थात प्रमोदकाल का सुनहरा स्वर्णिम समय विभिन्न आर्थिक विवशताओं के कारण गंवा दिया था। जिसकी क्षतिपूर्ति सद्भावनापूर्ण तीर्थयात्रा के रूप में पूर्ण कर सकते हैं। दोनों में से किसी एक की या दोनों की ही हड्डियां गंगा में प्रवाहित होने से पहले जीवित रहते हुए साक्षात गंगा मईया के दर्शनों हेतु दोनों जा सकते हैं। यह सौभाग्यवश मेरा आदेश नहीं बल्कि विनम्र सौहार्दपूर्ण परामर्श है। जिसे मानना या नहीं मानना तुम्हारा क्षेत्राधिकार है। जिसमें रिश्ते-नाते को छोड़ बच्चों का हस्तक्षेप भी मान्य नहीं है। चूंकि आईना झूठ नहीं बोलता।
उपरोक्त शब्दों की आधारशिला पर देवी तुल्य धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली जी ईश्वरीय कृपा बनाए रखने हेतु मुझे बताएं कि देश के किस स्थान पर या देश से बाहर किस देश में भ्रमण करने की तीव्र इच्छा है? ताकि हमारा भविष्य सुखमय व्यतीत हो सके। मेरा यह भी मानना है कि उक्त शुभ संदेश में बुआ दाती सत्याप्ति का सतीत्वपूर्ण आशीर्वाद सम्मिलित है। जिसके उल्लंघनकर्ता स्वयं उसके प्रकोप से पीड़ित और सहयोगी लाभान्वित होंगे।
अतः मेरा विनम्र अनुरोध है कि पिछली समस्त भूली बिसरी, खट्टी मीठी एवं कड़वी सच्चाइयों को डरावना स्वप्न मानकर भूल जाएं और संभ्रांत व्यक्तित्व जीवनशैली का प्रसन्नतापूर्वक झूमते हुए जीवन व्यतीत करने का अद्वितीय सौभाग्य प्राप्त करें। जय हिन्द। सम्माननीयों शनिदेव जी की जय हो। ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।