सौभाग्यवश जे.एंड.के अकैडमी ऑफ आर्ट, कल्चरल एंड लैंग्वेजज़, जम्मू द्वारा आयोजित दो दिवसीय डोगरी सम्मेलन में मुझे बिना बुलाए जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। वह डोगरी जिसे मैंने अपने जीवन के कई सुनहरे दशक दिए हैं, दे रहा हूॅं और देता रहूॅंगा। सत्य यह भी है कि अकादमी ने मुझे बाल्यावस्था से ही डोगरी लेखक के नाते पंजीकृत किया हुआ है। परन्तु जब डोगरी भाषा के सम्पादकों ने सत्य और चुनौतीपूर्ण लिखने के आधार पर मेरा तिरस्कार किया, तो मैं हिंदी भाषा की ओर अग्रसर हुआ। वर्णनीय है कि उपरोक्त तिरस्कारपूर्ण परम्परा पूज्यनीय पूर्व सम्पादक श्री ओम गोस्वामी जी के समय से लेकर रुक रुककर आदरणीय सम्पादक डॉ. रत्न बसोत्रा जी और उनके सह सम्पादक आदरणीय श्री यशपाल निर्मल जी तक पहुंच गई थी। जिन्होंने मुझे नकारात्मक लेखक की उपाधि से सम्मानित कर सम्पूर्ण लेखक बिरादरी में मुझे अपमानित कर दिया था। उन्होंने ने मानवता की समस्त सीमाएं लांघकर "प्राण जाएं पर वचन न जाए" के अंतर्गत मुझे मंच पर भी अपमानित करते हुए यहां तक घोषणा कर दी थी कि कल्चरल अकादमी जम्मू के किसी भी कार्यक्रम में इंदु भूषण बाली दिखाई नहीं देना चाहिए।
हालॉंकि कड़वा सच यह है कि आदरणीय महाविद्वान सह सम्पादक श्री यशपाल निर्मल जी मुझे गुरु की संज्ञा देते नहीं थकते थे और वह भलीभांति परिचित थे कि इंदु भूषण बाली राष्ट्रभक्ति के पर्यायवाची शब्द हैं और भ्रष्टाचार के विरुद्ध क्रांतिकारी योद्धा की भॉंति संघर्षरत हैं। जिसके फलस्वरूप वह अपने परिवार से भी पिछले पॉंच वर्षों से वह अपने परिवार से भी अलग हो चुके हैं और संन्यासी का जीवनयापन कर रहे हैं। उसके बावजूद उनके समक्ष उन्हीं के कार्यालय में मुझे नकारात्मक लेखक उपाधि से विभूषित करना कैसे संभव हो सकता है?
जबकि विडंबना यह है कि कठिन सशक्त आर्थिक परिस्थितियों में उन्होंने मेरे ही मार्गदर्शन में समाचार पत्र विक्रेता के रूप में डोगरी की उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। उल्लेखनीय है कि जिस दिन उन्होंने डोगरी की परीक्षा देने जम्मू जाना होता था तो उस दिन ग्राहकों को मैं अकेला ही समाचार पत्र वितरित करता था। हालॉंकि अंतड़ियों की तपेदिक के कारण वह दिन अत्यधिक कष्टदायक होता था। परन्तु सौभाग्यवश श्री यशपाल निर्मल जी के उज्ज्वल भविष्य के समक्ष उपरोक्त कष्ट क्षणभंगुर था। क्योंकि मैं उनके भीतर छिपी असीम आलौकिक लेखन शक्तियों को स्पष्ट अनुभव कर रहा होता था और उनके सुनहरे भविष्य के आगमन की कामना कर रहा था। जो ज्यौड़ियां क्षेत्र में अभी तक किसी को भी भूला नहीं है। परन्तु उनके समक्ष उन्हीं के कार्यालय में मेरा इतना अपमान उनकी गुरु दक्षिणा पर दुर्भाग्यवश उठे कलंकित प्रश्नों को मानवीयता के ही नहीं बल्कि चरित्रात्मक कटघरे में अवश्य खड़ा करते हैं और पूछते हैं कि क्या यही सबकुछ पाने के लिए मैंने सुनहरे स्वप्न संजोए थे?
स्वप्नों के उधेड़बुन से निकलूं तो यथार्थ में आज दिनांक 13-10-2023 अकैडमी द्वारा आयोजित डोगरी भाषा के सम्मेलन का दूसरा दिन था। जिसके चाय विराम के समय में समय का सदुपयोग करते हुए मैं अकैडमी की नवनियुक्त हिंदी शीराज़ा की सम्पादक डॉ चंचल शर्मा जी से मिलने उनके कार्यालय पहुंचा। जहॉं उन्होंने मेरा स्वागत किया। जो मेरे लिए सौभाग्य का उदय था। उनसे लेखनीय चर्चा का बहुत अच्छा लग रहा था। हालॉंकि यह हमारी पहली बैठक थी। उनकी साधारण जनमानस चर्चा में ज्ञात हुआ कि जम्मू और कश्मीर सरकार की रणबीर प्रेस से तीन शीराज़ा प्रकाशित होकर आ चुके हैं। मैंने भी अनेकों आलेख, अतुकान्त और ग़ज़लें इत्यादि शुद्ध हिंदी भाषा में प्रेषित की हुई थीं। मनमस्तिष्क में उन्हें देखने की जिज्ञासा बढ़ी और मैंने डॉ चंचल शर्मा जी से क्षमा मांगकर उनसे विदा ले ली। मन में आशा थी कि संभवतः मेरे तुच्छ से सकारात्मकता में परिवर्तित लेखन को भी उक्त शीराज़ाओं में स्थान मिला होगा। चूंकि आशाओं पर ही जीवन टिका है। ऐसा ही अकैडमी के वर्तमान आदरणीय सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी प्रमुख सम्पादक के रूप में मानते हैं।
आज प्रातःकाल मैं यह देखकर दंग रह गया कि अगस्त-सितम्बर 2022 के 143 पृष्ठीय शीराज़ा में अधिकांश लेखन सामग्री बाहरी राज्यों के लेखकों की प्रकाशित की गई थी। जिसमें आलेखों की संख्या तीन है। जिनमें से सर्वप्रथम आलेख "हिंदी पत्रकारिता में 'हंस' का योगदान" पृष्ठ 06 पर प्रकाशित कर शीराज़ा का शुभारम्भ किया गया है। जिसके लेखक श्री कृष्ण वीर सिंह सिकरवार जी हैं। जिनका पता "आवास क्रमांक एच-3, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, एयरपोर्ट रोड, भोपाल -462033 (म0प्र0)" मोबाइल एवं ईमेल सहित दर्शाया गया है। इसके उपरांत पृष्ठ 24 पर दूसरे आलेख का श्रीगणेश श्री प्रवीण कुमार सहगल जी के रचित "सोशल मीडिया में हिंदी का बढ़ता वर्चस्व" से किया गया है। जिनका पता "प्रवीण कुमार सहगल डी - 1209 डबुआ कालोनी, फरीदाबाद - 121001 (हरियाणा)" दर्शाया गया है। तीसरा आलेख श्रीमती उर्मिला शर्मा जी "महिला कथाकारों के साहित्य में वृद्ध-विमर्श" का है। जिसे मोबाइल एवं पतारहित प्रकाशित किया गया है। संभवतः वह जम्मू से संबंधित हों।
अब बारी कहानियों की आती है। सौभाग्यवश वह भी तीन ही हैं। जिनमें से प्राथमिकता के आधार पर पृष्ठ 38 पर श्री सुदर्शन वशिष्ठ जी की कहानी "परिंदे" को प्रकाशित किया गया है। जिनका पता "अभिनंदन" कृष्ण निवास लोअर पंथा घाटी शिमला - 171009" लिखा हुआ है। दूसरी कहानी "कपास" का श्रेय रजनी शर्मा बस्तरीया जी को जाता है। जिनका पता "नगर निगम कालौनी, देशबंधु प्रेस के सामने, रायपुर (छ.ग.) पिन कोड- 492001" मोबाइल सहित बताया गया है। अब तीसरी कहानी की बात करें तो उस कहानी का शीर्षक "बजंटी को सुख" है। जिसे डॉ. रंजना जायसवाल जी ने लिखा हुआ है और उनका पता "लाल बाग कॉलोनी, छोटी बसही मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश, पिन कोड 231001" मोबाइल एवं ईमेल सहित प्रकाशित किया गया है।
उल्लेखनीय है कि अक्तूबर -नवम्बर 2022 के 135 पृष्ठीय शीराज़ा में भी कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला है। जहॉं अश्विनी कुमार आलोक जी द्वारा रचित "मानसिक अतिक्रमण की ज़िद से अलग हो बाल साहित्य" आलेख को प्राथमिकता दी गई है। उनका संपर्क "प्रभा निकेतन, पत्रकार कालोनी,महनार, जिला - वैशाली (बिहार), पिन- 844506" मोबाइल सहित दर्शाया गया है। दूसरा स्थान पुनः श्री कृष्ण वीर सिंह सिकरवार जी को उनके आलेख "प्रेमचंद के ज्ञात-अज्ञात साहित्य की खोज का सिलसिला अभी भी जारी है" को दिया गया है। तीसरा स्थान अंकुश्री जी के आलेख "तुलसी का पर्यावरणीय महत्व" को दिया गया है। जिनका पता "प्रेस कॉलोनी, सिदरौल, नामकुम, रॉंची (झारखंड) 834010" मो0 एवं ईमेल सहित स्पष्ट लिखा हुआ है। इसी प्रकार कहानियों को भी क्रमशः पहली, दूसरी और तीसरी क्रमवार प्रकाशित की गई है। जिनमें पहली कहानी "भोर का उजास" डॉ. वेद मित्र शुक्ल जी द्वारा रचित प्रकाशित है। जिनका पता "एसोसिएट प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग, राजधानी महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110015" दो मोब. अंकों सहित प्रकाशित किया हुआ है। दूसरी कहानी "महायज्ञ" डॉ. अमिता दुबे द्वारा रचित प्रकाशित की गई है। जिनका पता "सम्प्रति प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 6 महात्मा गांधी मार्ग, हज़रतगंज, लखनऊ" चलभाष सं0 सहित प्रकाशित किया गया है। तीसरी कहानी "वैराग्य" श्री केशव मोहन पाण्डेय जी द्वारा रचित प्रकाशित हुई है। जिनका पता "राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली - 59" प्रकाशित है।
देखा जाए तो दिसम्बर 2022 - जनवरी 2023 के 136 पृष्ठीय शीराज़ा में भी आलेखों को तीन से बढ़ाकर पॉंच किया गया है और कहानियॉं तीन की तीन ही हैं। जबकि हमारे यहॉं कहानीकारों एवं आलेखकारों की भरमार है। आलेखों की चर्चा करें तो पहला स्थान पुनः श्री कृष्ण वीर सिंह सिकरवार जी द्वारा रचित "प्रेमचंद और निर्मला" को सुशोभित किया गया है। दूसरे स्थान पर डॉ. मुन्नू राय जी द्वारा रचित "जनकवि नागार्जुन का प्रतिरोधी स्वर" के रूप में प्रकाशित हुआ है। जिनका पता "डॉ. मन्नू राय सहायक शिक्षक राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय पिठौरी पोस्ट अधैला सिवान (बिहार) 841436" ईमेल और दूरभाष संख्या सहित प्रकाशित किया गया है। तीसरा आलेख डॉ. चंचल भसीन जी द्वारा रचित "बेनाम रिश्ते: मजबूत बंधन" प्रकाशित है। जिनका संक्षिप्त सा पता "45-ए, कृष्णा नगर जम्मू- 180016" बिना ईमेल और दूरभाष संख्या के प्रकाशित किया गया है। जिसे पढ़कर मन को असीम शॉंति एवं सुकून प्राप्त हुआ है कि सौभाग्यवश जम्मू की एक महिला भी प्रकाशित हुई हैं। जिन्हें मैं जानता और पहचानता हूॅं और वह अकादमी में आती भी हैं। चौथा स्थान श्री गौरीशंकर वैश्य विनम्र जी द्वारा रचित "तीर्थस्थलों का उद्भव और महत्व" प्रकाशित हुआ है। जिनका पता "गौरीशंकर वैश्य विनम्र 117 आदिलनगर, विकासनगर लखनऊ -226022" ईमेल एवं दूरभाष सहित प्रकाशित किया गया है। पॉंचवॉं स्थान श्री प्रवीण कुमार सहगल जी द्वारा रचित "जंगे आजादी के गुमनाम किरदार" प्रकाशित है। जिनका पता पहले भी पंजिकृत है। अब कहानियों पर चर्चा करें तो पहली कहानी श्री गोवर्धन यादव जी द्वारा रचित "बांझ" प्रकाशित हुई है। जिनका पता "103, कावेरी नगर, छिंदवाड़ा (म.प्र.) 480001" दूरभाष सहित प्रकाशित हुआ है। दूसरी कहानी "अंतिम निर्णय" श्री राजेंद्र परदेसी जी द्वारा रचित "अंतिम निर्णय" प्रकाशित की गई है। जिनका पता नहीं दिया गया। तीसरी कहानी रेनू श्रीवास्तव जी द्वारा रचित "प्रतीक्षा" प्रकाशित हुई है। जिनका पता "लता टायपिंग सेंटर जयस्तम्भ चौक शहडोल (म.प्र.) है।
इन पर स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है कि उपरोक्त आलेखों और कहानियों के पते पढ़कर मैं सकारात्मकता कहॉं से लाऊं? चूंकि जे.एंड.के अकैडमी ऑफ आर्ट, कल्चरल एंड लैंग्वेजज़, जम्मू द्वारा आयोजित हिंदी कार्यक्रमों के मंचों पर आसीन होने वालों की नकारात्मक भीड़ में मैंने परम आदरणीया डॉ चंचल भसीन जी के अतिरिक्त उपरोक्त महानुभावों को कभी मंचासीन हुए नहीं देखा और संभवतः न ही कभी आयोजित हिंदी कार्यक्रमों में यह उपस्थित रहे हैं। कदाचित हिंदी लेखक सम्मेलनों में इन्हें कभी अकादमी ने आमंत्रित भी नहीं किया होगा। ताकि हम इनसे यह सीख पाते कि इनके क्षेत्र में हमारे लेखन को प्राथमिकता कैसे मिल सकती है? हमारे साहित्यकार इनसे श्रेष्ठ लिखने के बावजूद भी अपने ही प्रदेश की सरकारी पत्रिका में प्रकाशित होने से वंचित क्यों हैं। जिसके फलस्वरूप स्थानीय लेखकों का भी संवैधानिक मौलिक कर्तव्य बनता है कि वे उक्त प्रतियोगिता में भाग लेकर अपने साहस का परिचय दें। क्योंकि उक्त प्रश्नों पर जम्मू और कश्मीर के लेखकों का भविष्य टिका है। इसलिए जम्मू और कश्मीर के समस्त साहसिक (चाटुकार एवं चापलूसों को छोड़कर) लेखकों द्वारा बुलंद ध्वनि से आदरणीय विद्वान सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी से विनम्रतापूर्वक सादर उत्तर मांगना स्वाभाविक है कि उनके प्रतिभाशाली नेतृत्व में ऐसा अनर्थ क्यों हुआ है?
जिसका दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि राष्ट्रीय मौलिक कर्तव्यों पर आधारित मेरे राष्ट्रभक्तिपूर्ण आलेख बाहरी राज्यों के लेखकों के आलेखों से कहीं अधिक गुणवत्तायुक्त एवं श्रेष्ठ हैं। तो आदरणीय सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी आप ही बताएं कि मैं ऐसे पक्षपातपूर्ण रवैय को सहन कैसे करूं? मेरी राष्ट्रीयता मुझे प्रश्न पूछने पर विवश कर रही है। क्योंकि मेरी याचिका लेखन साधना मुझे स्पष्ट आदेश कर रही है कि मैं उपरोक्त भेदभावपूर्ण व्यवहार को माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में चुनौती देकर क्षेत्रीय लेखकों सहित स्वयं को सम्मानित करूं। चूंकि सर्वविदित है कि अत्याचार करने वालों से अधिक अत्याचार सहने वालों को दोषी माना जाता है। जिसकी उद्देश्यपूर्ति हेतु मैं संघर्षरत भी हूॅं।
अतः आदरणीय सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी मुझे मार्गदर्शन करें कि मैं ऐसा नहीं करने की सकारात्मकता कहॉं से लाऊं और सकारात्मक कैसे बनूं? अपने संवैधानिक मौलिक अधिकारों पर खुल्लमखुल्ले पड़ रहे डाके को अपनी खुली ऑंखों से देखकर कैसे चुप्पी साध लूॅं ? अपनी अद्भुत, अद्वितीय, अकल्पनीय एवं अविश्वसनीय लेखनीय ऊर्जा का गला कैसे घोंट दूॅं? अपने संवैधानिक स्वाभिमान को लगी ठेस से केसे बच पाऊं? अपनी अद्भुत याचिका लेखन विधा को सार्वजनिक निखारने का शुभ अवसर कैसे गवाऊं? मुझे सार्वभौमिक रूप से मार्गदर्शन करें कि मैं राष्ट्रहित में भारत सरकार द्वारा हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने के निर्धारित लक्ष्य अनुसार हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं विकास हेतु माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में अपने क्षेत्रीय मौलिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए स्वतः अथवा जनहित याचिका के रूप में चुनौती क्यों न दूॅं? सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।