अष्टावक्र की दिव्यांगता पर हंसना महंगा पड़ सकता है। इतना तो समस्त ज्ञानी जानते हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश उक्त ज्ञान को प्राप्त नहीं करते और अंधकार को दूर करने के स्थान पर प्रायः उसे बढ़ावा देने में विश्वास रखते हैं। दुर्भाग्यवश यही विश्वास उनके ज्ञान रूपी सूर्य को अस्त करने का आधार बनता है। क्योंकि सर्वविदित है कि अष्टावक्र विश्व के प्रथम ऐसे दिव्यांग व्यक्ति थे जिन्होंने सत्य को जैसा देखा वैसा ही कह दिया था। उनका मानना था कि सत्य शास्त्रों में नहीं लिखा है। चूंकि वह मात्र शारीरिक दिव्यांग थे परन्तु मन और मस्तिष्क के सशक्त हस्ताक्षर थे।
संभवतः मेरा भी यही चुनौतीपूर्ण पथ है जिसके आधार पर आज तक मैं तिरस्कृत होता आया हूॅं। चूंकि मैंने जो देखा, समझा और भुगता उसे वैसा ही शब्दों में कह दिया और राष्ट्र को समर्पित कर दिया जो मेरा मुख्य अपराध बन गया था। अन्यथा मैंने ऐसी कोई भूल नहीं की थी जिसका मुझे इतना बड़ा दंड दे दिया गया और मैं जीवित होते हुए भी मृत घोषित कर दिया गया था। यही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर का विद्वान होते हुए भी भारत सरकार मुझे पागल अर्थात दिव्यांग की पेंशन दे रही है। जबकि जम्मू और कश्मीर सरकार के मनोरोग विशेषज्ञों से लेकर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली के मनोरोग विशेषज्ञों ने मेरी बुद्धिमत्ता को दर्शाते हुए प्रमाण पत्र जारी कर रखे हैं।
ऐसे में प्रश्न स्वाभाविक है कि यह सब जानते हुए भी जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू और उसके आदरणीय तथाकथित विद्वान सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी सहित डोगरी एवं हिंदी भाषा के सम्पादक मुझसे सौतेला व्यवहार क्यों कर रहे हैं? वह क्यों नहीं चाहते हैं कि देश के सशक्त हस्ताक्षर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा लागू की गई पारदर्शिता से अकादमी भी विकास करे और जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के लेखक भी राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के विकास में अपना सराहनीय मूल्यवान योगदान करें?
उल्लेखनीय है कि जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के पास सहस्रों पंजीकृत लेखक हैं जिन्हें वे एक साथ कदापि आमंत्रित नहीं करते। चूंकि वह लेखक अकादमी की चारपाई के नीचे पैदा नहीं हुए और न ही वह अकादमी के द्वारा बार बार बुक किए गए चापलूसों की भॉंति अकादमी के भ्रष्टाचार पर चुप्पी साधते हैं। इसी आधार पर अकादमी के प्रमुख सम्पादक बाहरी राज्यों के लेखकों के आलेख शीराज़ा में प्राथमिकता से प्रकाशित करते हैं और माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी की परवाह न करते हुए भ्रष्टाचार फैला रहे हैं। यही कारण हैं कि जम्मू कश्मीर के असंख्य लेखकों को तिलॉंजलि देते हुए प्रत्येक कार्यक्रम में सरकारी विद्यालयों अथवा विश्वविद्यालय जम्मू के विद्यार्थियों/शोधार्थियों को आमंत्रित करते हैं। जहॉं एक ओर विद्यार्थियों/शोधार्थियों का मूल्यवान समय नष्ट होता है और दूसरी ओर पंजीकृत लेखकों का शोषण किया जाता है। अर्थात हम लेखकों का तो सत्यानाश हो चुका है पर विद्यार्थियों/शोधार्थियों के उज्ज्वल भविष्य को क्यों बर्बाद कर रहे हैं?
प्रश्न गंभीर ही नहीं बल्कि संवैधानिक भी है कि ऐसी प्रथम दिवसीय भीड़ एकत्रित कर अकादमी एवं अकादमी के सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी माननीय उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा जी, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी की ऑंखों में धूल झोंककर क्या प्रमाणित करना चाहते हैं? वे उपरोक्त माननीय महानुभावों की नाक के नीचे एक तो करेला उस पर नीम चढ़ा की कहावत को चरितार्थ करते हुए जम्मू विश्वविद्यालय और उनके वर्तमान सेवारत सहायक प्रोफेसरों को मात्र साढ़े तेरह सौ रुपए के अनुदान में बुक कर विश्वविख्यात विश्वविद्यालय जम्मू का स्तर क्यों गिरा रहे हैं? प्रश्न यह भी है कि अकादमी एवं विश्वविद्यालय जम्मू के गिरते स्तर का उत्तरदेय कौन है?
हालॉंकि असंख्य बेकार एवं निठल्ले कविजन अकादमी के निमंत्रण के लिए तरस रहे हैं और अकादमी की भ्रष्ट व्यवस्था इसका लाभ लेते हुए उनसे किनारा कर अपने ही चहेतों को अन्धों की भॉंति बार बार अपनों को रेवड़ियॉं बॉंट रही है। हालॉंकि कड़वा सच यह भी है कि विश्वविद्यालय जम्मू के उपरोक्त तथाकथित विद्वान प्रोफेसरों को लज्जा भी नहीं आती है कि एक ओर वह अपना और विश्वविद्यालयों के गिरते स्तर का रहस्योद्घाटन कर रहे हैं और दूसरी ओर हम जैसे निठल्ले लेखकों का मौलिक अधिकार भी छीन रहे हैं। चूंकि सर्वविदित है कि एक प्रोफेसर को विश्वविद्यालय जम्मू लाखों रुपए मासिक वेतन भत्ते देती है।
यही कारण है कि अकादमी की भ्रष्ट व्यवस्था उन्हीं चाटुकारों को मंचासीन करती है जो अपने संबोधन में अकादमी की समस्त बुराईयों को उल्लेखित करने के स्थान पर अच्छाइयों का गुणगान करें। यही कारण है कि अत्याधिक चाटुकार लेखक हिन्दी भाषा में पद्मश्री पुरस्कार तो क्या साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त नहीं कर सके। परन्तु सौभाग्यवश लेखकों के वन में शेरों की गर्जना अभी भी सुनाई पड़ती है। जिन्होंने प्रायः सत्यमेव जयते को सदैव प्रोत्साहित किया है और वर्तमान में भी साहसपूर्ण कर रहे हैं।
अतः देश के माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी से बिंदास मॉंग कर रहा हूॅं कि जम्मू कश्मीर अकादमी की उपरोक्त गतिविधियों की शोचनीय स्थितियों पर न्यायिक जॉंच सहित जम्मू और कश्मीर के चुनिंदा ही नहीं बल्कि समस्त कलमवीरों की तुरन्त बैठक बुलाई जाए और राष्ट्रहित में खुले मंच पर शास्त्रार्थ कराए जाएं। ताकि हिन्दी साहित्य की नवीन प्रवृतियों का सार्वजनिक उल्लेख हो सके और राष्ट्र के समक्ष जम्मू कश्मीर की हिन्दी के सच का रहस्योद्घाटन किया जा सके। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय लेखक व राष्ट्रीय पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।
Grievance Status for registration number : PRSEC/E/2023/0047843
Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
17/11/2023
Received By Ministry/Department
President's Secretariat
Grievance Description
विश्वविद्यालय जम्मू के गिरते स्तर का उत्तरदेय कौन आलेख अष्टावक्र की दिव्यांगता पर हंसना महंगा पड़ सकता है अष्टावक्र विश्व के प्रथम ऐसे दिव्यांग व्यक्ति थे जिन्होंने सत्य को जैसा देखा वैसा ही कह दिया था वह मन और मस्तिष्क के सशक्त हस्ताक्षर थे संभवतः इसीलिए मैं तिरस्कृत होता आया हूॅं चूंकि मैंने जो देखा समझा और भुगता उसे वैसा ही शब्दों में कह दिया और राष्ट्र को समर्पित कर दिया जो मेरा मुख्य अपराध बन गया था ऐसे में प्रश्न स्वाभाविक है कि यह सब जानते हुए भी जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू और उसके आदरणीय तथाकथित विद्वान सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी सहित डोगरी एवं हिंदी भाषा के सम्पादक मुझसे सौतेला व्यवहार क्यों कर रहे हैं वह क्यों नहीं चाहते हैं कि देश के सशक्त हस्ताक्षर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा लागू की गई पारदर्शिता से अकादमी भी विकास करे और जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के लेखक भी राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के विकास में अपना सराहनीय मूल्यवान योगदान करें उल्लेखनीय है कि जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के पास सहस्रों पंजीकृत लेखक हैं जिन्हें वे एक साथ कदापि आमंत्रित नहीं करते चूंकि वह लेखक अकादमी की चारपाई के नीचे पैदा नहीं हुए और न ही वह अकादमी के द्वारा बार बार बुक किए गए चापलूसों की भॉंति अकादमी के भ्रष्टाचार पर चुप्पी साधते हैं इसी आधार पर अकादमी के प्रमुख सम्पादक बाहरी राज्यों के लेखकों के आलेख शीराज़ा में प्राथमिकता से प्रकाशित करते हैं और माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी की परवाह न करते हुए भ्रष्टाचार फैला रहे हैं यही कारण हैं कि जम्मू कश्मीर के असंख्य लेखकों को तिलॉंजलि देते हुए प्रत्येक कार्यक्रम में सरकारी विद्यालयों अथवा विश्वविद्यालय जम्मू के विद्यार्थियों शोधार्थियों को आमंत्रित करते हैं जहॉं एक ओर विद्यार्थियों व शोधार्थियों का मूल्यवान समय नष्ट होता है और दूसरी ओर पंजीकृत लेखकों का शोषण किया जाता है प्रश्न गंभीर ही नहीं बल्कि संवैधानिक भी है कि ऐसी प्रथम दिवसीय भीड़ एकत्रित कर अकादमी एवं अकादमी के सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी माननीय उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा जी माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी की ऑंखों में धूल झोंककर क्या प्रमाणित करना चाहते हैं वे उपरोक्त माननीय महानुभावों की नाक के नीचे एक तो करेला उस पर नीम चढ़ा की कहावत को चरितार्थ करते हुए जम्मू विश्वविद्यालय और उनके वर्तमान सेवारत सहायक प्रोफेसरों को मात्र साढ़े तेरह सौ रुपए के अनुदान में बुक कर विश्वविख्यात विश्वविद्यालय जम्मू का स्तर क्यों गिरा रहे हैं प्रश्न यह भी है कि अकादमी एवं विश्वविद्यालय जम्मू के गिरते स्तर का उत्तरदेय कौन है हालॉंकि असंख्य बेकार एवं निठल्ले कविजन अकादमी के निमंत्रण के लिए तरस रहे हैं और अकादमी की भ्रष्ट व्यवस्था इसका लाभ लेते हुए उनसे किनारा कर अपने ही चहेतों को अन्धों की भॉंति बार बार अपनों को रेवड़ियॉं बॉंट रही है हालॉंकि कड़वा सच यह भी है कि विश्वविद्यालय जम्मू के उपरोक्त तथाकथित विद्वान प्रोफेसरों को लज्जा भी नहीं आती है कि एक ओर वह अपना और विश्वविद्यालयों के गिरते स्तर का रहस्योद्घाटन कर रहे हैं और दूसरी ओर हम जैसे निठल्ले लेखकों का मौलिक अधिकार भी छीन रहे हैं चूंकि सर्वविदित है कि एक प्रोफेसर को विश्वविद्यालय जम्मू लाखों रुपए मासिक वेतन भत्ते देती है यही कारण है कि अकादमी की भ्रष्ट व्यवस्था उन्हीं चाटुकारों को मंचासीन करती है जो अपने संबोधन में अकादमी की समस्त बुराईयों को उल्लेखित करने के स्थान पर अच्छाइयों का गुणगान करें यही कारण है कि अत्याधिक चाटुकार लेखक हिन्दी भाषा में पद्मश्री पुरस्कार तो क्या साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त नहीं कर सके परन्तु सौभाग्यवश लेखकों के वन में शेरों की गर्जना अभी भी सुनाई पड़ती है अतः देश के माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी से बिंदास मॉंग कर रहा हूॅं कि जम्मू कश्मीर अकादमी की उपरोक्त गतिविधियों की शोचनीय स्थितियों पर न्यायिक जॉंच सहित जम्मू और कश्मीर के समस्त कलमवीरों की तुरन्त बैठक बुलाई जाए और राष्ट्रहित में खुले मंच पर शास्त्रार्थ कराए जाएं ताकि हिन्दी साहित्य की नवीन प्रवृतियों का सार्वजनिक उल्लेख हो सके और राष्ट्र के समक्ष जम्मू कश्मीर की हिन्दी के सच का रहस्योद्घाटन किया जा सके सम्माननीयों जय हिन्द प्रार्थी इंदु भूषण बाली वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय लेखक
Current Status
Grievance received
Date of Action
17/11/2023
Officer Concerns To
Forwarded to
President's Secretariat
Officer Name
Organisation name
President's Secretariat
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