पराधीनता शासनकाल से चलते आ रहे असहनीय कलॅंकित भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए प्रकृति ने संभवतः मुझे चुन लिया था जिसके आधार पर मेरी और मेरे परिवार की बलि चढ़नी पूर्वत सुनिश्चित हो चुकी थी। अन्यथा मैं और मेरी सुकोमल पतिव्रता धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली इतने सशक्त नहीं थे कि हम भीषण युद्ध लड़ते। चूॅंकि हम तो साधारण जनमानसों की भॉंति साधारण दाम्पत्य जीवन जीना चाहते थे और पारिवारिक सुख भोगना चाहते थे।
सौभाग्यवश यह ईश्वर को स्वीकार नहीं था। इसलिए मात्र पचास रुपए के भ्रष्टाचार को चुनौती देते हुए मैं अपने भ्रष्ट अधिकारी आदरणीय श्री प्रदीप गुप्ता जी से उलझ गया था जिस उलझन ने लड़ाई का रूप धारण कर लिया और लड़ाई कब विकराल युद्ध में परिवर्तित हो गई थी, मुझे पता ही नहीं चला था। यद्यपि मुझे कुछ पता था तो बस इतना कि प्रताड़ना की पीड़ा से घबराकर मैंने चुप नहीं बैठना है। इसलिए मैंने कलम उठाई और सत्यता पर आधारित भीषण युद्ध में बिंदास कूद पड़ा था। क्योंकि बाल्यावस्था से ही मेरा "सत्यमेव जयते" पर अटूट विश्वास था और मैं भलीभॉंति जानता था कि अंततः जीत तो सत्य की ही होनी है। चूॅंकि "सत्यमेव जयते" को चारों दिशाओं में चार सिंहों द्वारा धर्म का प्रसार करते हुए महात्मा बुद्ध का प्रतीक दर्शाया हुआ है।
परन्तु कष्ट तो कष्ट ही होता है। इसलिए मेरे भ्रष्ट अधिकारियों ने सर्वसम्मति से सर्वप्रथम मुझे कष्ट देने की दुर्भावना से मेरी परिवीक्षा अवधि को समाप्त नहीं किया और न ही मेरी सेवा पुस्तिका में कोई कारण बताया था। चूॅंकि कारण बताना उनके वश में नहीं था। क्योंकि यह बात सार्वजनिक हो चुकी थी कि स्वतंत्र भारत में भी पराधीनता शासनकाल की मानसिकता के आधार पर भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारी परिवीक्षा अवधि को समाप्त करने हेतु धन से लेकर मॉं, बहन, बेटी अथवा धर्मपत्नी की पवित्रता भंग करने की स्पष्ट मॉंग करते थे।
मैं चुपचाप संघर्षरत रहा और भ्रष्ट अधिकारी मेरा मानसिक उपचार के आधार पर क्रूरता की सीमा भी लॉंग गए थे। जिसके विरोध में मैं कॉंग्रेसी नेता और अधिवक्ता आदरणीय श्री अशोक शर्मा जी की शरण में गया था। जिन्होंने मुझसे फीस के रूप में पॉंच हज़ार रुपए लिए और मेरे विभाग को उर्दू भाषा में एक नोटिस जारी किया था। जिसके उपरान्त उन्होंने अधिवक्ता अधिनियम 1961 का उल्लघंन करते हुए मेरी फाइल मेरे मुंह पर मार दी। जिसके उपरान्त मैं आदरणीय अधिवक्ता श्री के.एस. चिब जी की शरण में गया था। जिन्होंने सर्वप्रथम दो हज़ार रुपए लेकर मेरे विभाग को नोटिस भेजा और मेरी ओर से एक याचिका भी माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय में दाखिल की थी। परन्तु कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ था। चूॅंकि मेरे भ्रष्ट अधिकारी मेरे अधिवक्ताओं को अधिक धनराशि देकर अपने पक्ष में कर लेते थे। जबकि मैं मौलिक अधिकारों अर्थात रोटी व तपेदिक रोग के उपचार हेतु औषधि को क्रय भी नहीं कर पा रहा था।
ऐसी असहनीय विचित्र एवं अद्वितीय परिस्थितियों में मेरी सुकोमल पतिव्रता धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली जी ने अपनी दैवीय आलौकिक शक्ति का प्रदर्शन करते हुए विभिन्न संवैधानिक पदों पर आसीन महानुभावों को पंजीकृत पत्र लिखे, जिनमें से माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हुए उक्त प्रार्थनापत्र को याचिका मानते हुए माननीय एकल पीठ में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया था। उल्लेखनीय है उक्त याचिका अंक 968/96 में मेरे विभागीय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. जी को भी खरीद लिया था, जिन्होंने एमिकस क्यूरी के रूप में उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री डी.सी. रैना जी और उनकी सहायक विद्वान अधिवक्ता मोक्षा खजूरिया (वर्तमान समय में माननीय उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्रीमती मोक्षा खजूरिया काजमी) जी की उपस्थिति में समस्त पारदर्शी साक्ष्यों के होते हुए भी उक्त याचिका को रद्द कर दिया था। जो सत्यमेव जयते पर आधारित न्यायिक इतिहास का कलॅंकित अद्वितीय उदाहरण बन चुका है।
सत्यमेव जयते को कलॅंकित करने में मेरे अंतिम प्रिय विद्वान अधिवक्ता श्री एम.के. भारद्वाज और उनके सहयोगी विद्वान अधिवक्ता श्री अजय अबरोल जी ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और अधिवक्ताओं पर मेरे पवित्र भरोसे की हत्या कर दी। चूॅंकि उपरोक्त हत्यारों ने मेरे अधमरे शरीर को गिद्धों की भॉंति नोचा हुआ है। जिनके उदाहरण वर्तमान समय में माननीय न्यायालय के विचाराधीन हैं और वर्तमान माननीय न्यायाधीश उन गिद्धों को बचाने के लिए मेरे साथ सामूहिक न्यायिक बलात्कार कर रहे हैं।
परन्तु माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी, माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी और लोकतांत्रिक लोकप्रिय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी आपके शासनकाल में "आजादी के अमृत महोत्सव" के संग चलती मेरी न्यायिक यात्रा में वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीशों द्वारा न्यायिक प्रक्रिया में अब तक 71 आदेश पारित करने के बावजूद मुझे सम्पूर्ण न्याय की दूर-दूर तक कोई न्यायिक किरण दिखाई नहीं दे रही है। बस मेरे साथ वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीशों द्वारा न्यायिक कबड्डी खेली जा रही है। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
डॉ इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर
Grievance Status for registration number : PRSEC/E/2024/0003031
Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
21/01/2024
Received By Ministry/Department
President's Secretariat
Grievance Description
पराधीनता शासनकाल से चलते आ रहे कलॅंकित भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए प्रकृति ने संभवतः मुझे चुन लिया था और मेरी व मेरे परिवार की बलि चढ़नी ही थी अन्यथा मैं और मेरी सुकोमल पतिव्रता धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली इतने सशक्त नहीं थे कि हम भीषण युद्ध लड़ते चूॅंकि हम तो साधारण दाम्पत्य जीवन जीना चाहते थे और पारिवारिक सुख भोगना चाहते थे सौभाग्यवश यह ईश्वर को स्वीकार नहीं था इसलिए मात्र पचास रुपए के भ्रष्टाचार को चुनौती देते हुए मैं अपने भ्रष्ट अधिकारी श्री प्रदीप गुप्ता से उलझ गया था जो कब विकराल युद्ध में परिवर्तित हो गई मुझे पता ही नहीं चला था मुझे इतना पता है कि पीड़ा से घबराकर चुप नहीं बैठना है इसलिए मैंने कलम उठाई और सत्यता पर आधारित भीषण युद्ध में बिंदास कूद पड़ा था क्योंकि सत्यमेव जयते पर अटूट विश्वास था और मैं जानता था कि अंततः जीत सत्य की होनी है चूॅंकि सत्यमेव जयते महात्मा बुद्ध का प्रतीक है परन्तु कष्ट तो कष्ट होता है इसलिए भ्रष्ट अधिकारियों ने सर्वसम्मति से कष्ट देने की दुर्भावना से मेरी परिवीक्षा अवधि को समाप्त नहीं किया और न ही मेरी सेवा पुस्तिका में कोई कारण बताया चूॅंकि सार्वजनिक हो चुका थी कि स्वतंत्र भारत में भी पराधीनता की मानसिकता के आधार पर भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारी परिवीक्षा अवधि को समाप्त करने हेतु धन से लेकर मॉं बहन बेटी अथवा धर्मपत्नी की पवित्रता भंग करने की मॉंग करते थे मैं चुपचाप संघर्षरत रहा और भ्रष्ट अधिकारी मेरा मानसिक उपचार के आधार पर क्रूरता की सीमा भी लॉंग गए थे जिसके विरोध में मैं कॉंग्रेसी नेता और अधिवक्ता श्री अशोक शर्मा के पास गया जिन्होंने मुझसे फीस के रूप में पॉंच हज़ार रुपए लिए और मेरे विभाग को उर्दू भाषा में नोटिस जारी किया जिसके उपरान्त उन्होंने अधिवक्ता अधिनियम 1961 का उल्लघंन करते हुए मेरी फाइल मेरे मुंह पर मार दी जिसके उपरान्त मैं अधिवक्ता श्री के.एस. चिब जी की शरण में गया था जिन्होंने दो हज़ार रुपए लेकर मेरे विभाग को नोटिस भेजा और मेरी ओर से एक याचिका माननीय जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में दाखिल की थी परन्तु कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ चूॅंकि भ्रष्ट अधिकारी मेरे अधिवक्ताओं को अधिक धनराशि देकर अपने पक्ष में कर लेते थे जबकि मैं मौलिक अधिकारों अर्थात रोटी व तपेदिक रोग के उपचार हेतु औषधि को क्रय भी नहीं कर पा रहा था ऐसी परिस्थितियों में मेरी धर्मपत्नी सुशीला बाली ने अपनी दैवीय शक्ति का प्रदर्शन कर विभिन्न संवैधानिक पदों पर आसीनों को पंजीकृत पत्र लिखे जिनमें से माननीय जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हुए उक्त प्रार्थनापत्र को याचिका मानते हुए माननीय एकल पीठ में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया था उक्त याचिका अंक 968 96 में मेरे विभागीय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. जी को भी खरीद लिया था जिन्होंने एमिकस क्यूरी के रूप में उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री डी.सी. रैना जी और उनकी सहायक विद्वान अधिवक्ता मोक्षा खजूरिया वर्तमान समय में माननीय उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्रीमती काजमी जी की उपस्थिति में समस्त साक्ष्यों के होते हुए भी उक्त याचिका को रद्द कर दिया था जो सत्यमेव जयते पर आधारित न्यायिक इतिहास का कलॅंकित उदाहरण है जिसे कलॅंकित करने में मेरे अंतिम प्रिय विद्वान अधिवक्ता श्री एम.के. भारद्वाज और उनके सहयोगी विद्वान अधिवक्ता श्री अजय अबरोल जी ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और अधिवक्ताओं पर मेरे पवित्र भरोसे की हत्या कर दी चूॅंकि उपरोक्त हत्यारों ने मेरे अधमरे शरीर को गिद्धों की भॉंति नोचा है। जिनके उदाहरण माननीय न्यायालय के विचाराधीन हैं और वर्तमान माननीय न्यायाधीश उन गिद्धों को बचाने हेतु मेरे साथ सामूहिक न्यायिक बलात्कार कर रहे हैं परन्तु माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी, माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायमूर्ति श्री डी.वाई. चंद्रचूड़ जी और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी आपके शासनकाल में आजादी के अमृत महोत्सव के संग चलती मेरी न्यायिक यात्रा में वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीशों द्वारा न्यायिक प्रक्रिया में अब तक 71 आदेश पारित करने के बावजूद मुझे सम्पूर्ण न्याय की दूर दूर तक कोई न्यायिक किरण दिखाई नहीं दे रही है। बस न्यायिक कबड्डी खेली जा रही है सम्माननीयों जय हिन्द प्रार्थी डॉ इंदु भूषण बाली ज्यौड़ियॉं
Current Status
Grievance received
Date of Action
21/01/2024
Officer Concerns To
Forwarded to
President's Secretariat
Officer Name
Organisation name
President's Secretariat
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Contact Number
Grievance Status for registration number : PMOPG/E/2024/0016030
Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
21/01/2024
Received By Ministry/Department
Prime Ministers Office
Grievance Description
आजादी के अमृत महोत्सव के संग चलती मेरी न्यायिक यात्रा आलेख
पराधीनता शासनकाल से चलते आ रहे कलॅंकित भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए प्रकृति ने संभवतः मुझे चुन लिया था और मेरी व मेरे परिवार की बलि चढ़नी ही थी अन्यथा मैं और मेरी सुकोमल पतिव्रता धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली इतने सशक्त नहीं थे कि हम भीषण युद्ध लड़ते चूॅंकि हम तो साधारण दाम्पत्य जीवन जीना चाहते थे और पारिवारिक सुख भोगना चाहते थे सौभाग्यवश यह ईश्वर को स्वीकार नहीं था इसलिए मात्र पचास रुपए के भ्रष्टाचार को चुनौती देते हुए मैं अपने भ्रष्ट अधिकारी श्री प्रदीप गुप्ता से उलझ गया था जो कब विकराल युद्ध में परिवर्तित हो गई मुझे पता ही नहीं चला था मुझे इतना पता है कि पीड़ा से घबराकर चुप नहीं बैठना है इसलिए मैंने कलम उठाई और सत्यता पर आधारित भीषण युद्ध में बिंदास कूद पड़ा था क्योंकि सत्यमेव जयते पर अटूट विश्वास था और मैं जानता था कि अंततः जीत सत्य की होनी है चूॅंकि सत्यमेव जयते महात्मा बुद्ध का प्रतीक है परन्तु कष्ट तो कष्ट होता है इसलिए भ्रष्ट अधिकारियों ने सर्वसम्मति से कष्ट देने की दुर्भावना से मेरी परिवीक्षा अवधि को समाप्त नहीं किया और न ही मेरी सेवा पुस्तिका में कोई कारण बताया चूॅंकि सार्वजनिक हो चुका थी कि स्वतंत्र भारत में भी पराधीनता की मानसिकता के आधार पर भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारी परिवीक्षा अवधि को समाप्त करने हेतु धन से लेकर मॉं बहन बेटी अथवा धर्मपत्नी की पवित्रता भंग करने की मॉंग करते थे मैं चुपचाप संघर्षरत रहा और भ्रष्ट अधिकारी मेरा मानसिक उपचार के आधार पर क्रूरता की सीमा भी लॉंग गए थे जिसके विरोध में मैं कॉंग्रेसी नेता और अधिवक्ता श्री अशोक शर्मा के पास गया जिन्होंने मुझसे फीस के रूप में पॉंच हज़ार रुपए लिए और मेरे विभाग को उर्दू भाषा में नोटिस जारी किया जिसके उपरान्त उन्होंने अधिवक्ता अधिनियम 1961 का उल्लघंन करते हुए मेरी फाइल मेरे मुंह पर मार दी जिसके उपरान्त मैं अधिवक्ता श्री के.एस. चिब जी की शरण में गया था जिन्होंने दो हज़ार रुपए लेकर मेरे विभाग को नोटिस भेजा और मेरी ओर से एक याचिका माननीय जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में दाखिल की थी परन्तु कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ चूॅंकि भ्रष्ट अधिकारी मेरे अधिवक्ताओं को अधिक धनराशि देकर अपने पक्ष में कर लेते थे जबकि मैं मौलिक अधिकारों अर्थात रोटी व तपेदिक रोग के उपचार हेतु औषधि को क्रय भी नहीं कर पा रहा था ऐसी परिस्थितियों में मेरी धर्मपत्नी सुशीला बाली ने अपनी दैवीय शक्ति का प्रदर्शन कर विभिन्न संवैधानिक पदों पर आसीनों को पंजीकृत पत्र लिखे जिनमें से माननीय जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हुए उक्त प्रार्थनापत्र को याचिका मानते हुए माननीय एकल पीठ में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया था उक्त याचिका अंक 968 96 में मेरे विभागीय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. जी को भी खरीद लिया था जिन्होंने एमिकस क्यूरी के रूप में उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री डी.सी. रैना जी और उनकी सहायक विद्वान अधिवक्ता मोक्षा खजूरिया वर्तमान समय में माननीय उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्रीमती काजमी जी की उपस्थिति में समस्त साक्ष्यों के होते हुए भी उक्त याचिका को रद्द कर दिया था जो सत्यमेव जयते पर आधारित न्यायिक इतिहास का कलॅंकित उदाहरण है जिसे कलॅंकित करने में मेरे अंतिम प्रिय विद्वान अधिवक्ता श्री एम.के. भारद्वाज और उनके सहयोगी विद्वान अधिवक्ता श्री अजय अबरोल जी ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और अधिवक्ताओं पर मेरे पवित्र भरोसे की हत्या कर दी चूॅंकि उपरोक्त हत्यारों ने मेरे अधमरे शरीर को गिद्धों की भॉंति नोचा है। जिनके उदाहरण माननीय न्यायालय के विचाराधीन हैं और वर्तमान माननीय न्यायाधीश उन गिद्धों को बचाने हेतु मेरे साथ सामूहिक न्यायिक बलात्कार कर रहे हैं परन्तु माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी, माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायमूर्ति श्री डी.वाई. चंद्रचूड़ जी और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी आपके शासनकाल में आजादी के अमृत महोत्सव के संग चलती मेरी न्यायिक यात्रा में वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीशों द्वारा न्यायिक प्रक्रिया में अब तक 71 आदेश पारित करने के बावजूद मुझे सम्पूर्ण न्याय की दूर दूर तक कोई न्यायिक किरण दिखाई नहीं दे रही है। बस न्यायिक कबड्डी खेली जा रही है सम्माननीयों जय हिन्द प्रार्थी डॉ इंदु भूषण बाली ज्यौड़ियॉं
Current Status
Under process
Date of Action
21/01/2024
Officer Concerns To
Officer Name
Shri Manoj Kumar Dwivedi (Comm Secretary GAD)
Organisation name
Union Territory of Jammu and Kashmir
Contact Address
Room No. 318-19 Govt of JK, Civil Sectt., Srinagar
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gad-jk@nic.in
Contact Number
01912570018