आंदोलन चाहे पहलवानों के हों या सामाजिक, सांस्कृति, आर्थिक और राजनीतिक संगठनों के हों। परन्तु आंदोलन तो आंदोलन ही होते हैं। जिन आंदोलनों में पीड़ितों की सर्वोच्च मांग "न्याय" की ही होती है। भले ही वह आंदोलनकारी माननीय न्यायालयों के माननीय कतिपय न्यायाधीशों से क्षुब्द पीड़ित-प्रताड़ित और उत्पीड़न मामलों में न्यायालय के कतिपय भ्रष्ट एवं क्रूर न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध न्यायिक कर्मचारी ही क्यों न हों? जिनमें आंदोलनकारी सामूहिक कार्रवाई करते हुए व्यापक स्तर पर फैलीं कुरीतियों पर आधारित अपनी समस्याओं के समाधान का प्रयास करते हैं। जिसे लोकतांत्रिक व्यवस्था सुधार का आधार माना जाता है।
संभवतः पहलवान भी विभिन्न बिन्दुओं को लेकर गंभीरतापूर्वक अपनी योग्यता के आधार पर विभिन्न रूपों में विभिन्न मंचों पर आंदोलन कर रहे हैं। जिनमें आंदोलनकारी सामूहिक रूप से देश के लिए जीते गए पदकों को गंगा जमुना और सरस्वती में बहाने के लिए तैयार हो जाते हैं। जैसे वह पदक भारत के लिए न होकर उनके निजी हों। हालांकि उन्हीं पदकों के आधार पर उन्हें बड़ी धनराशि के साथ साथ भारत का गौरव मानते हुए भारत सरकार ने उन्हें सरकारी नौकरी भी दी हुई है। जिन्हें आंदोलनकारी पहलवान कदापि नहीं त्यागते हैं। जिसे आंदोलनकारी पहलवान अपनी उपलब्धि मानते हैं। हालांकि यह सत्य नहीं है।
बात जब उपलब्धियों की करें तो बात मौलिक अधिकारों की सुरक्षा पर भी चलती है। जिनमें निजता का भी एक विशेष महत्व होता है। जिस महत्व को देखते हुए सर्वविदित है कि निजता और चरित्र पर किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता है। जिसके आधार पर निजता और चरित्र की सुरक्षा हेतु आंदोलन करना पीड़ितों का मौलिक कर्तव्य बन जाता है। ताकि व्यवस्था में सुधारात्मक परिवर्तन लाया जा सके।
अतः सुधारात्मक परिवर्तन के लिए न्यायालय में चुनौती भी दी जा सकती है। चूंकि पहलवानों के पास शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शक्ति भी है। जिसके आधार पर वे सड़कों पर उतरने के स्थान पर अपने सशक्त साक्ष्यों की आधारशिला पर माननीय उच्चतम न्यायालय का दरवाजा सम्पूर्ण न्याय के लिए खटखटा सकते थे। परन्तु दुर्भाग्यवश आंदोलनकारी पहलवान माननीय सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मात्र प्राथमिकी (एफआईआर) पंजीकृत करने की गुहार लगाते हैं। परन्तु न्याय मांगने पर बल नहीं देते। जबकि न्याय की मांग सर्वोपरि ही नहीं बल्कि चुनौतीपूर्ण होनी चाहिए। जिससे अपराधी का बचना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव हो जाए। ॐ शांति ॐ