विश्व के जितने भी दिवस हैं जैसे विश्व क्षय रोग दिवस, विश्व पशु कल्याण दिवस, विश्व शिक्षक दिवस, विश्व वन्यजीव दिवस, विश्व महिला दिवस, विश्व उपभोक्ता दिवस, विश्व टीकाकरण दिवस, विश्व गौरैया दिवस, विश्व वानिकी दिवस, विश्व खुशहाली दिवस, विश्व मानवाधिकार दिवस, विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस, विश्व मासिक धर्म दिवस, विश्व जल दिवस, विश्व आदिवासी दिवस, विश्व स्वास्थ्य दिवस, विश्व हिंदी दिवस, विश्व मानव दिवस एवं विश्व पर्यावरण दिवस इत्यादि दिवस "भ्रष्टाचार के युग" में आयोजकों के लिए "कामधेनु" गाए से अधिक कुछ नहीं हैं।
हालांकि उपरोक्त दिवस मनाने का लक्ष्य होता है कि संबंधित दिवस के अंतर्गत आते मानवों और वन्यजीवों इत्यादि के अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा कर उन्हें सशक्त किया जाए। परन्तु होता यह है कि आयोजक वहां रंगरलियां मनाते हुए बादाम पिस्ता और काजू खाते हैं और मौजमस्ती कर अपने अपने घरों को चले जाते हैं। इससे अधिक कुछ भी नहीं होता है। जबकि भ्रष्टाचार की मलाई के आधार पर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया अपनी कवरेज पर इतने बड़े बड़े दावे कर जाते हैं कि पीड़ित सोचने पर बाध्य ही नहीं बल्कि विश्वास करने लगते हैं कि अब उसके अच्छे दिन आने वाले हैं। परन्तु सत्य में भुगतभोगियों को मनाए गए दिवस के आधार पर उन्हें कुछ भी लाभ प्राप्त नहीं होता। जबकि उक्त लोकोक्ति "बड़ हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर" पूरी तरह चरितार्थ हो जाती है। जिसके आधार पर विश्व स्तर के धन का दुरपयोग और सत्यानाश हो जाता है।
जबकि सामान्य और साधारण नागरिक पर्यावरण दिवस पर "वृक्ष" लगाते हैं और अपने अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हुए सुनहरे भविष्य की कल्पना करते हैं। परन्तु ध्यान रहे मात्र सामान्य और साधारण व्यक्ति ही उपरोक्त दिवसों के प्रति अपने व्यक्तित्व का परचम लहराते हैं। जिसके अंतर्गत विद्वान लोग उन्हें असाधारण अकल्पनीय अविश्वसनीय व्यक्तित्व की संज्ञा दे देते हैं। जिन्हें सरल भाषा में व्यक्ति विशेष अर्थात मानसिक रोगी अर्थात पागल कह दिया जाता है।
जिस पर विडंबना यह है कि भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश भी ध्यान नहीं देते और मौलिक कर्तव्यों की पूर्ति करने वालों के मौलिक अधिकार मिट्टी में मिल जाते हैं। जिससे उनका और उनके पारिवारिक सदस्यों का पूरा जीवन नरक बन जाता है। जिसकी सच्चाई यह है कि कानून के रक्षक पीड़ित नागरिकों की प्राथमिकी (एफआईआर) भी सरलता से पंजीकृत नहीं करते हैं।
अतः मेरा उक्त आलेख के माध्यम से उपरोक्त विश्व दिवसों के आयोजकों सहित भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी, माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से विनम्र आग्रह है कि वह "विश्व अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस" जो प्रत्येक वर्ष 17 जुलाई को विश्व स्तर पर मनाया जाता है के प्रति स्वतः संज्ञान लेते हुए विश्व सहित समस्त भारतीयों को सम्पूर्ण न्याय दिलाने पर बल दें। ॐ शांति ॐ