यौवन में सदैव सुखमय जीवन व्यतीत करने हेतु काम के देव "कामदेव" का वध आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। चूंकि जब तक कामदेव चंचल, सजग, सक्रिय एवं प्रभावी रहेंगे तब तक यह मान लेना कि काम, क्रोध, लोह, मोह और अंहकार समाप्त हो जाएंगे, संभव ही नहीं है। सम्भवतः उक्त विचार मूल भ्रम एवं मिथ्या रूपी हैं। ऐसे जैसे मानवता के शत्रु सरकारी भ्रष्ट अधिकारियों और उनके कतिपय सहयोगी मनोचिकित्सकों ने मुझे मानसिक रोगी की संज्ञा देकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर मानवता को कलंकित किया था और अब वे माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में पिछले नौ माह से उत्तर नहीं दे पा रहे हैं। जबकि प्राकृतिक सत्य यह है कि नौ माह में प्रकृति नव शिशु को जन्म देकर "मातृत्व" का दायित्व निभाना आरंभ कर देती है। कुछ भी कर लें छल, बल, बुद्धि एवं विवेक से "मिथ्या" को "सत्य" कतई प्रमाणित नहीं किया जा सकता। हालांकि ईश्वर के अवतार श्रीकृष्ण जी ने भी अपनी बुआ के पक्ष में कर्ण के जन्म के सत्य को छुपाने का अथक प्रयास किया था। परन्तु सत्य पांडुपुत्रों के समक्ष ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि सहित ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो गया था। सार्वभौमिक स्पष्ट हुआ था कि कुंती ने कर्ण को कुंवारी अवस्था में जन्म दिया था। जिसके कारण लोक लज्जा से बचने हेतु उसने उसे नदी में प्रवाहित कर दिया था। उसके उपरांत एक झूठ और बोला गया था कि कुंती ने कर्ण को कर्ण द्वार से उत्पन्न किया था। यह सिद्ध करने के लिए कि उनकी लाडली बुआ का कर्ण के जन्म के कारण शीलभंग नहीं हुआ था। जिसे विज्ञानिक दृष्टि से भी सत्य नहीं माना जा सकता। चूंकि युगों युगों से जन्म "जननी" द्वारा उसके प्रजनन अंग द्वारा ही दिया जा रहा है। सम्पूर्ण प्राणियों का जन्म मादा प्रजनन अंग द्वारा ही संभव है। हमारे धर्मग्रंथों में भी चौरासी लाख योनियों का खुला उल्लेख है। जिनमें सृष्टि में पाए जाने वाले जीव-जंतु, जलचर, थलचर और नभचर प्राणी होते हैं। भले ही वर्तमान समय में विज्ञानिक अंडाणु के साथ शुक्राणु को नली में निषेचित कर प्रजनन प्रक्रिया में सफल हुए हैं।
परन्तु सत्य यह भी है कि युगों युगों से पति-पत्नी संतान उत्पत्ति का प्राकृतिक आधार रहे हैं। जिनका एक दूसरे में आकर्षण का आधार भी "काम" अर्थात "कामदेव" ही माने जाते हैं। इसी आधार पर नर-नारी को एक दूसरे का पूरक माना जाता है और धर्मपत्नी को अर्धांगिनी कहा जाता है। जिसके कारण दोनों ही उत्पन्न किए गए बच्चों के उत्तरदायी होते हैं। जिनके कंधों पर सवार होकर भविष्य फलता फूलता है।
एक यथार्थ यह भी है कि "कामदेव" के वध से प्रेम के गुरुत्वाकर्षण में अभूतपूर्व कटौती आएगी और कलह से छुटकारा मिल जाएगा। कलह जो दुखों का मुख्य कारण होता है। उदाहरणार्थ द्रौपदी यदि दुर्योधन को "अंधे का पुत्र अंधा" न कहती और अपनी जीभ को नियंत्रित रखती तो महाभारत के युद्ध का अस्तित्व न होता। इसी प्रकार रावण की बहन शूर्पणखा यदि कामुक न होती तो रावण के कुल का नाश न होता और रामायण का स्वरूप दूसरा होता। अर्थात कामदेव कहीं न कहीं युद्धों के आधार भी रहे हैं। जिनके फलस्वरूप कामातुर होकर ही महा विद्वान सोलह कला संपन्न लंकापति रावण ने माता सीता का हरण किया था और चारपाई के खूंटे से बंधे काल की हत्या नहीं कर सका था। जिसके दण्डस्वरूप रावण का सत्यानाश हो गया था। जबकि कामदेव को प्रेम का देवता माना जाता है। जिसे गीता के उपदेशानुसार मात्र ब्रह्मज्ञान के अभ्यास और वैराग्य से ही वश में किया जा सकता है
हालांकि मेरा शोध कहता है कि कामदेव ही प्रेम का शत्रु है। जिसका वध कर सुखमय जीवन व्यतीत किया जा सकता है। जैसे परमपिता परमेश्वर देवों के देव महादेव ने अपने तीसरे नेत्र द्वारा कामदेव को भस्म कर भी दिया था। परन्तु देवी रति के आग्रह पर सृष्टि के विकास हेतु क्षमा भी कर दिया था।
अंततः कहने का अभिप्राय यह है कि कामदेव के वध से मानव "काम" से मुक्ति पाएगा। जब काम से मुक्ति मिलेगी तो वह "क्रोध" नहीं करेगा। जब क्रोध से मुक्ति मिलेगी तो "लोभ" पैदा ही नहीं होगा। लोभ उत्पन्न नहीं होगा तो "मोह" से भी छुटकारा मिलेगा। जैसे ही काम, क्रोध, लोह, मोह, से मुक्ति मिलेगी तो "अंहकार" की क्या औकात है कि वह मानव पर विजयश्री प्राप्त कर परिवारों के मधुर संबंधों को अशक्त करते हुए दाम्पत्य जीवन में विष घोल सके? सम्माननीयों ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।