बासठ वर्ष तक की अपनी आलौकिक स्वर्णिम आयु में, अपने जीवन रूपी प्रयोगशाला में, अपनी असाधारण, अविश्वसनीय, अकल्पनीय, अद्वितीय एवं अद्भुत शक्तियों का प्रयोग करते हुए मैंने पाया है कि भारत देश से आजादी के अमृत महोत्सव के बावजूद "देशप्रेम नामक चिड़िया" निस्संदेह उड़ चुकी है जिसे मेरे देशप्रेम पूर्ण असाधारण एवं अद्वितीय प्रयोग सिद्ध कर रहे हैं कि माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी एवं माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी के अथक न्यायिक प्रयासों के बावजूद चारों ओर स्वार्थी एवं क्रूर अधिकारी, पत्रकार, लेखक, डॉक्टर, अधिवक्ता एवं न्यायाधीश अमानवीय तॉंडव कर रहे हैं।
जहॉं डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा लिखित देश का तथाकथित सशक्त लोकतांत्रिक संविधान घुटने टेकते हुए मरणासन्न अवस्था में पड़ा हुआ है। जिसका सम्पूर्ण सुरक्षात्मक उपचार एवं मानवीय मूल्यों पर आधारित संवेदनशील समाधान करवाने में देश के कुशल दार्शनिक और अध्यात्मिक लोकप्रिय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं लोह पुरुष गृहमंत्री श्री अमित शाह जी भी अपने लाख प्रयत्नों से पूर्णतया सफल नहीं हो पा रहे हैं। जिसके लिए समय की प्रचंड मॉंग है कि उन्हें देशवासियों के लिए लिखे गए संविधान को मरणासन्न अवस्था से उबारने हेतु अभी ओर सुअवसर प्रदान किया जाए। चूॅंकि स्वतंत्रता पूर्व देश और देशवासियों की ऐसी दुर्गति संभवतः ब्रिटिश सरकार के दो सो वर्षों में भी नहीं हुई होगी।
उल्लेखनीय है कि कॉंग्रेस नीत सरकार के कार्यकाल में भारतीय केबिनेट द्वारा संचालित "विशेष सेवा ब्यूरो" अर्थात एसएसबी विभाग द्वारा आयोजित विभागीय परीक्षा से उत्तीर्ण होने के उपरान्त नियुक्ति पत्र जारी कर जम्मू क्षेत्र के ज्यौड़ियॉं कार्यालय में मुझे 05 दिसम्बर 1990 को वरिष्ठ क्षेत्र सहायक (मेडिकल) नियुक्त किया था। जिसे वर्तमान में अब सशस्त्र सीमा बल के नाम से जाना जाता है। जिसके भ्रष्टाचारयुक्त तंत्र में लिप्त भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने भ्रष्टाचार में सहयोग न करने के दंडस्वरूप मुझे कहीं का नहीं छोड़ा और मुझे असंवैधानिक यातनाओं से प्रताड़ित किया गया था। जिसके फलस्वरूप मुझे अपनी सेवा काल में कई बार पागलखाने भेज गया। जहॉं मेरे राष्ट्रप्रेम को राष्ट्रद्रोह बताया गया था। सौभाग्यवश उसके बाद भी पागलखाने के विद्वान विशेषज्ञों ने सेवा के लिए उपयुक्त बताते हुए मुझे मानसिक रूप से स्वस्थ प्रमाणित किया था।
दुर्भाग्यवश भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा के अंतर्गत भ्रष्टाचार में असाधारण बौद्धिक क्षमता निपुण अधिकारी श्री करण सिंह जी (सहायक निदेशक व्यवस्था) ने अपनी शक्तियों का दुरपयोग करते हुए दुर्भावनापूर्ण अपने कुप्रयासों से मुझे राजस्थान और राजस्थान से गुजरात राज्य में स्थानांतरित कर दिया था। जहॉं इरविन अस्पताल के तपेदिक रोग विशेषज्ञों ने मेरी "अंतड़ियों के क्षय" रोग की पुष्टि की थी। परन्तु उक्त घोषणा के बावजूद भी मुझे जीवन के प्रथम मौलिक अधिकार अर्थात "खाना खाने से वंचित कर" मुझे अमानवीय यातनाएं देकर गुजरात राज्य की जिला जेल जामनगर में भेज दिया था। अंततः विभागीय असंवैधानिक एवं अलोकतांत्रिक अमानवीय क्रूरतम कृत्यों से अत्यधिक पीड़ित होकर मैं अपने अधिकारी को बता कर अपने पैतृक घर "ज्यौड़ियॉं" में आ गया था।
सौभाग्यवश मेरी पतिव्रता जुझारू धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली ने मेरे जीवन की दिव्य ज्योति को प्रकाशमान रखते हुए माननीय महामहिम राष्ट्रपति, माननीय प्रधानमंत्री एवं माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय जम्मू के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एम. रामकृष्ण जी को पत्र लिखकर सम्पूर्ण न्याय की मॉंग की थी। जिस पर माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एम. रामकृष्ण जी ने अपनी संवैधानिक शक्तियों का सदुपयोग करते हुए औडब्ल्यूपी अंक 968/1996 सुशीला बाली वर्सीज यू.ओ.आई और अन्य के रूप में न्याय हेतु एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया था और उक्त पीठ के माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. मीर जी ने हम दम्पत्ति को संलग्न साक्ष्यों के आधार पर पीड़ित मानकर गंभीर संज्ञान लेते हुए दिनॉंक 29 नवंबर 1996 को एसएसबी के महानिदेशक को कड़ा आदेश देते हुए नोटिस जारी किया था कि शिकायत में लगाए गए आरोपों के संबंध में विस्तृत तथ्य विवरण दाखिल करें और रजिस्ट्री को भी आदेश दिया था कि शिकायत की जेरेक्स प्रतियॉं तैयार कर एक प्रति श्री डी.सी. रैना और प्रतिवादी को देकर मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध करें।
परन्तु दुर्भाग्यवश उक्त माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. मीर जी, विद्वान अधिवक्ता श्री डी.सी. रैना जी एवं उनकी सहायक विद्वान अधिवक्ता कुमारी मोक्षा खजूरिया जी के भ्रष्टाचार में लिप्तता के कारण आज तक मुझे न्याय नहीं मिला है और पागल की पेंशन दी जा रही है। क्योंकि उन्होंने जम्मू के सरकारी विद्वान मनोचिकित्सकों व इरविन अस्पताल के क्षय रोग विशेषज्ञों के प्रमाणपत्रों को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ाते हुए अपनी मूर्खता के आधार पर मुझे ही पागल घोषित कर दिया था। जिसका उदहारण विश्व में नहीं है। हालॉंकि न्यायिक खोज में सर्वप्रथम मैंने कॉन्ग्रेसी नेता एवं विद्वान अधिवक्ता श्री अशोक शर्मा जी को अपना केस सोंपा था जो मात्र एक नोटिस भेजकर मेरे पॉंच हज़ार रुपए डकार गए थे। जिनके बाद मैंने विद्वान अधिवक्ता श्री के.एस. चिब जी एवं विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एम.के. भारद्वाज जी व उनके सहायक श्री अजय अबरोल जी को न्यायिक शुल्क देने पर भी मैं विजय प्राप्त नहीं कर पाया था और अब प्रकाष्ठा की सीमा यह है कि कॉंग्रेस द्वारा फैलाए भ्रष्टाचार को समाप्त करने का दावा करने वाली आदरणीय मोदी सरकार द्वारा नियुक्त डिप्टी सालिसिटर जनरल ऑफ इण्डिया श्री विशाल शर्मा जी और उनके सहायक श्री सुमंत सूद जी कॉंग्रेस नीत सरकार के भ्रष्टाचार का पक्ष लेकर माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं गृहमंत्री श्री अमित शाह जी को उनके द्वारा चलाए जा रहे भ्रष्टाचारमुक्त भारत अभियान के कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। क्योंकि उनकी सरकार के अधीनस्थ विकलांगजन सशक्तिकरण न्यायालय ने भी मुझे मानसिक स्वस्थ घोषित किया हुआ है।
ऐसे में प्रश्न यह है कि भारत सरकार का एसएसबी विभाग, डॉ राम मनोहर लोहिया और सफदरजंग अस्पताल के प्रतिवादियों द्वारा मेरी आठ न्यायिक याचिकाओं में से पॉंच याचिकाओं पर उत्तर दाखिल न कर भारत सरकार द्वारा नियुक्त डिप्टी सालिसिटर जनरल ऑफ इण्डिया श्री विशाल शर्मा जी और उनके सहायक श्री सुमंत सूद जी क्या सिद्ध करना चाहते हैं? इसके अलावा प्रश्न यह भी गंभीर है कि वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीश भी प्रतिवादियों की ओर से उपस्थित उपरोक्त अधिवक्ताओं को बार-बार अंतिम सुअवसर प्रदान करते हुए बार-बार रजिस्ट्रार जूडिशियल के पास न्यायिक पग उठाकर क्या सिद्ध करना चाहते हैं और कब तक मानसिक स्वस्थ होते हुए भी मुझे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर "पागल की पेंशन" देकर अपमानित करना चाहते हैं?
अतः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी एवं माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी क्या यह सब असंवैधानिक प्रक्रियाएं उपरोक्त विद्वान अधिवक्ताओं की विद्वता और माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय को कलॅंकित कर चुके पूर्व भ्रष्टाचारी विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. मीर जी को बचाने के अथक प्रयास मात्र हैं?
प्रार्थी
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर
Grievance Status for registration number : PRSEC/E/2024/0001480
Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
08/01/2024
Received By Ministry/Department
President's Secretariat
Grievance Description
देशप्रेम पूर्ण मेरे अद्वितीय प्रयोग सिद्ध कर रहे हैं कि आलेख बासठ वर्ष तक की अपनी आलौकिक स्वर्णिम आयु में अपने जीवन रूपी प्रयोगशाला में अपनी असाधारण का प्रयोग करते हुए मैंने पाया है कि भारत देश से आजादी के अमृत महोत्सव के बावजूद देशप्रेम नामक चिड़िया निस्संदेह उड़ चुकी है जिसे मेरे देशप्रेम पूर्ण असाधारण एवं अद्वितीय प्रयोग सिद्ध कर रहे हैं कि माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी एवं माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी के अथक न्यायिक प्रयासों के बावजूद चारों ओर स्वार्थी एवं क्रूर अधिकारी लेखक डॉक्टर अधिवक्ता एवं न्यायाधीश अमानवीय तॉंडव कर रहे हैं जहॉं डॉ भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा लिखित देश का तथाकथित सशक्त लोकतांत्रिक संविधान घुटने टेकते हुए मरणासन्न अवस्था में पड़ा हुआ है जिसका सम्पूर्ण सुरक्षात्मक उपचार एवं मानवीय मूल्यों पर आधारित संवेदनशील समाधान करवाने में देश के कुशल दार्शनिक और अध्यात्मिक लोकप्रिय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं लोह पुरुष गृहमंत्री श्री अमित शाह जी भी अपने लाख प्रयत्नों से पूर्णतया सफल नहीं हो पा रहे हैं। जिसके लिए समय की प्रचंड मॉंग है कि उन्हें देशवासियों के लिए लिखे गए संविधान को मरणासन्न अवस्था से उबारने हेतु अभी ओर सुअवसर प्रदान किया जाए चूॅंकि स्वतंत्रता पूर्व देश और देशवासियों की ऐसी दुर्गति संभवतः ब्रिटिश सरकार के दो सो वर्षों में भी नहीं हुई होगी उल्लेखनीय है कि कॉंग्रेस नीत सरकार के कार्यकाल में भारतीय केबिनेट द्वारा संचालित विशेष सेवा ब्यूरो अर्थात एसएसबी विभाग द्वारा आयोजित विभागीय परीक्षा से उत्तीर्ण होने के उपरान्त नियुक्ति पत्र जारी कर जम्मू क्षेत्र के ज्यौड़ियॉं कार्यालय में मुझे 05 दिसम्बर 1990 को वरिष्ठ क्षेत्र सहायक मेडिकल नियुक्त किया था जिसे वर्तमान में सशस्त्र सीमा बल के नाम से जाना जाता है जिसके भ्रष्टाचारयुक्त तंत्र में लिप्त भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने भ्रष्टाचार में सहयोग न करने के दंडस्वरूप मुझे कहीं का नहीं छोड़ा और मुझे असंवैधानिक यातनाओं से प्रताड़ित किया गया था जिसके फलस्वरूप मुझे अपनी सेवा काल में कई बार पागलखाने भेज गया जहॉं मेरे राष्ट्रप्रेम को राष्ट्रद्रोह बताया गया था सौभाग्यवश उसके बाद भी पागलखाने के विद्वान विशेषज्ञों ने सेवा के लिए उपयुक्त बताते हुए मुझे मानसिक रूप से स्वस्थ प्रमाणित किया था सौभाग्यवश मेरी जुझारू धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली ने मेरे जीवन की दिव्य ज्योति को प्रकाशमान रखते हुए माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय जम्मू के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एम रामकृष्ण जी को पत्र लिखकर सम्पूर्ण न्याय की मॉंग की थी जिस पर माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एम रामकृष्ण जी ने अपनी संवैधानिक शक्तियों का सदुपयोग करते हुए औडब्ल्यूपी अंक 968 1996 सुशीला बाली वर्सीज सरकार विकलांगजन सशक्तिकरण न्यायालय ने ही मुझे मानसिक स्वस्थ घोषित किया हुआ है ऐसे में प्रश्न यह है कि एसएसबी विभाग डॉ राम मनोहर लोहिया और सफदरजंग अस्पताल के प्रतिवादियों द्वारा मेरी आठ न्यायिक याचिकाओं में से पॉंच याचिकाओं पर उत्तर दाखिल न कर भारत सरकार द्वारा नियुक्त डिप्टी सालिसिटर जनरल ऑफ इण्डिया श्री विशाल शर्मा जी और उनके सहायक श्री सुमंत सूद जी सहित वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीश भी प्रतिवादियों की ओर से उपस्थित उपरोक्त अधिवक्ताओं को बार बार अंतिम सुअवसर प्रदान करते हुए बार बार रजिस्ट्रार जूडिशियल के पास न्यायिक पग उठाकर क्या सिद्ध करना चाहते हैं और कब तक मानसिक स्वस्थ होते हुए भी मुझे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पागल की पेंशन देकर अपमानित करना चाहते हैं अतः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी एवं माननीय न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी कब तक प्रार्थी डॉ इंदु भूषण बाली ज्यौड़ियॉं जम्मू
Current Status
Grievance received
Date of Action
08/01/2024
Officer Concerns To
Forwarded to
President's Secretariat
Officer Name
Organisation name
President's Secretariat
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