यद्यपि हमारी सोच सकारात्मक है। वह मानवीय मूल्यों पर आधारित है। उसका दृष्टिकोण जनहितकारी है। जिसका दूरगामी परिणाम सामाजिक तंत्र को परिवर्तित करने वाला है तो हमें उसके कारण आ रही समस्त दुर्गम समस्याओं अथवा ज्वलंत चुनौतियों से डरने के स्थान पर उनका सशक्त सामना करना चाहिए। वह समस्याएं लोकतांत्रिक, संवैधानिक, वैधानिक, पत्रकारिता संबंधित, निजी, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की हो सकती हैं। जिनमें आपको साधारण कारावास से लेकर मृत्युदंड भी दिया जाना संभव हो सकता है। तो भी आपको डरना नहीं चाहिए बल्कि उसका सशक्त सामना करना आपका मौलिक कर्तव्य बनता है। स्मरण रहे कि इस संसार में आज तक कोई भी प्राणी बचा नहीं है। जो जन्मा वह मरा अवश्य है। जो बना वह टूट भी गया। परन्तु यह भी ध्यान रहे कि आत्मा अमर है। जो कभी नहीं मरती और तब तक मृत्युलोक का भ्रमण करती रहती है जब तक वह ईश्वर द्वारा दिए गए कार्य को सम्पन्न नहीं कर लेती। इसलिए मानवीय ही नहीं बल्कि धार्मिक धारणा भी युगों युगों से जन्म मरण का पक्षधर रही है। अर्थात मृत्युलोक में आवागमन निरंतर जारी रहेगा। योनि अनुसार जन्म के लिए मां के गर्भ में विभिन्न रूपों में बार बार नर्क भोगना पड़ेगा और जीवनभर सुख व दुःख भोगकर अंत में मृत्यु का कष्ट भी झेलना ही पड़ेगा। परन्तु दिए गए कार्य को सम्पूर्ण करना ही पड़ेगा।
इसलिए जो लोग अपने कर्मों से बचने का प्रयास करते हैं वह स्पष्ट रूप से अपनी आत्मा और आत्मा के परमात्मा के साथ धोखा करते हैं और अपना लोक परलोक बिगाड़ लेते हैं। चूंकि ईश्वर सब कुछ स्वयं देखते हैं और ईश्वरीय न्याय में साक्ष्य भी नहीं मांगे जाते। उल्लेखनीय है वहां घूस, अनुशंसा और चाटुकारिता भी नहीं चलती। वहां यहां वाले रूपए भी वर्जित हैं। इसलिए अपने मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना ही हमारे पास एकमात्र विकल्प है। जिसे हर हाल में करना ही पड़ेगा। चाहे हंसकर करें या रोकर करें अंततः करना ही पड़ेगा। इसलिए हमें अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन हंसकर ही करना चाहिए।
जिनके करने से हमें लोक में ही नहीं बल्कि परलोक में भी यश प्राप्त होता है। जिससे हमें सुकून मिलता है। सर्वविदित है सुकून का सम्बन्ध आत्मा से होता है और यह तब मिलता है जब हम ईश्वर द्वारा दिए गए कार्य को करते हैं। जिसे परमार्थ भी कहते हैं। जो स्वार्थ का विलोम शब्द है और आत्मा को कष्टों से मुक्ति पाने में सक्षम होता है। जिसके द्वारा मानव का पुरुषार्थ भी नष्ट हो जाता है और निद्रा समाप्त हो जाती है। यही कारण है तथाकथित संभ्रांत व्यक्तित्व रात को मदिरापान कर या औषधि खाकर सोते हैं और लोगों की गाली गलौज अलग से सहन करते हैं।
दूसरी ओर अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक करने वाले घोड़े बेचकर सोते हैं और देर सवेर उन्हें सम्मान भी मिलता है। जो अनुपम ही नहीं बल्कि अनमोल होता है। इसलिए हमें अपनी सकारात्मक सोच एवं निर्धारित सर्वोच्च लक्ष्य को पूरा करने के लिए किसी भी प्रकार के डर से डरना नहीं चाहिए बल्कि उस चुनौती का सशक्त मनोबल से सामना करते हुए उसपर विजयश्री प्राप्त करनी चाहिए। क्योंकि जीवन की चुनौतियों का सामना करना ही हमारा मौलिक कर्तव्य है और जीवन जीने का मूल आधार भी है। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।