ईश्वरीय कृपा से भारत के विभिन्न विभागों के भारतीय भ्रष्टाचार को दर्शाने एवं उसे जड़ से समाप्त करने हेतु बाल्यावस्था से खाई अपनी भीष्म सौगंध के प्रति अपने बासठवें वर्ष में भी सुचारू रखे हुए हूॅं और उसके प्रति वर्तमान में भी पूर्णतया तन मन एवं धन से बचनबद्ध हूॅं। भले ही भ्रष्टाचार समाप्त करने की प्रबल राष्ट्रीय इच्छा में ही मेरा समूल नाश हो गया है। परन्तु मैं हार मानने बालों में से नहीं हूॅं। क्योंकि मैं कर्म में विश्वास रखते हुए अग्निपथ पर अग्रसर हो रहा हूॅं और मेरा पूर्ण विश्वास है कि मेरे अग्निपरीक्षा रूपी परिश्रम एवं निष्ठापूर्ण सत्कर्म कभी नष्ट नहीं होंगे और एक न एक दिन अवश्य राष्ट्र के समक्ष चट्टान की भांति प्रस्तुत होंगे।
उल्लेखनीय है कि मैं उपरोक्त युद्धाभ्यास विभिन्न निजी एवं सरकारी विभागीय मोर्चों पर कर रहा हूॅं और सौभाग्यवश शनैः शनैः सफलता भी प्राप्त कर रहा हूॅं। संभवतः इसमें भी कोई शंका अथवा दोराय नहीं है कि उक्त मोर्चाबंदी में मैंने अपने पारिवारिक सुखद जीवन को भी दांव पर लगा दिया और बर्बादियों की चरमसीमा पार कर ली है। इस अवस्था में पहूॅंच कर अब मेरे पास खोने को कुछ भी शेष नहीं है। जहॉं तक कि मुझे अब मान, सम्मान तो क्या मृत्यु से भी भय नहीं लग रहा है। चूंकि स्थूल शरीर नाशवान है और आत्मा अमर है।
उपरोक्त मोर्चाबंदी की वर्तमान कड़ी "जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी" जम्मू है जहॉं के वर्तमान आदरणीय सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी ने भ्रष्टाचारमुक्त भारत बनाने में मेरा उल्लेखनीय सहयोग किया था जिसके लिए मैं उन्हें हृदय तल से साधुवाद देते हुए आभारी भी हूॅं। परन्तु दुर्भाग्यवश अकादमी के व्यापक भ्रष्टाचार पर मेरे सदाचार की यात्रा में वे अधिक दूरी तय करने में सक्षम नहीं हुए और उन्होंने यह कहते हुए मुझसे किनारा कर लिया था कि "चूंकि आपने मुख्य सम्पादक की भूमिका पर बाहरी लेखकों के आलेख प्राथमिकता पर प्रकाशित करने में मेरे विरुद्ध भी माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को पत्र लिख दिया था जिसमें मैं भी उत्तरदेह हूॅं" इसलिए मैं आपके संघर्ष में आगामी सहयोग नहीं कर सकता हूॅं।
उल्लेखनीय यह भी है कि अभी तक उक्त समस्या का समाधान अकादमी के सांस्कृतिक अधिकारी आदरणीय डॉ शाह नवाज जी कर नहीं पाए और मेरी अन्य व्यथात्मक समस्याओं ने अनेकों प्रश्नों को जन्म दे दिया है, जैसे कि अकादमी की द्विमासिक पत्रिका शीराज़ा में लेखकों को सब्सिडी क्यों नहीं दी जा रही है? अकादमी में पढ़े जा रहे पत्रवाचकों द्वारा अपने पत्रों में मेरे राष्ट्र के प्रति समर्पित लेखन सहित मेरी प्रकाशित पुस्तकों का उल्लेख क्यों नहीं किया जा रहा? प्रश्न यह भी गंभीर है कि पहले तो पुस्तक प्रकाशित करने हेतु अकादमी ने मुझे कोई सब्सिडी नहीं दी हुई और न ही मुझसे मेरी स्वयं प्रकाशित पुस्तकें खरीदी ही जा रही हैं? ऐसे में जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी मेरी प्रकाशित शुद्ध हिंदी ग़ज़ल संग्रह "राष्ट्र के नाम संदेश" को अपने पढ़े जा रहे पत्रों में तिलांजलि केसे दे सकती है? जबकि इस पर मार्गदर्शन करने हेतु अकादमी के विद्वान सांस्कृतिक अधिकारी आदरणीय डॉ शाह नवाज जी ने सरकार को उत्तर देते हुए उक्त पुस्तक को पुरस्कार हेतु भेजे जाने की बात कही हुई है। ज्वलंत प्रश्नों में से एक प्रमुख प्रश्न यह भी है कि मैं समाचार पत्र बेचकर अर्जित धन से प्रकाशित पुस्तक अकादमी अथवा उनके पत्रवाचकों को निःशुल्क पुस्तकें दूॅं भी क्यों?
अब माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी मैं अकादमी द्वारा आयोजित दो दिवसीय हिंदी साहित्य सम्मेलन में, राइटर्स क्लब में स्थित के.एल. सहगल सभागार में उपस्थित होते हुए भी उपरोक्त पढ़ जा रहे पत्रों में मेरा नाम उल्लेख न करने पर चुप्पी कैसे साध सकता था और यह पूछे बिना कैसे रह सकता था कि अकादमी अपने मौलिक कर्तव्यों में चूक क्यों कर रही है? वह अपने पत्रवाचकों को पुस्तकें उपलब्ध क्यों नहीं करवा रही है? क्या यह अकादमी अथवा पत्रवाचक का प्रमुख दायित्व नहीं है कि वह अपने दायित्वों का पूर्ण निर्वहन करें और सरकार को झूठे ऑंकड़े प्रेषित न करें? हालॉंकि अकादमी के आदरणीय सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी स्वयं मानते हैं कि अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक नहीं करना और दूसरों के अधिकारों पर चुप्पी साधना "भ्रष्टाचार" की सूची में आता है।
स्पष्ट शब्दों में कहूॅं तो "राष्ट्र के नाम संदेश" जम्मू कश्मीर में शुद्ध हिंदी भाषा में लिखा गया पहला ग़ज़ल संग्रह है जिसे "सजल" भी कहना अतिश्योक्ति नहीं है। जिसे शुद्धता के आधार पर साजिश के अंतर्गत छुपाना और मुझे राष्ट्रीय विख्यात लेखकों की सूची में नहीं दर्शाना अकादमी का निर्धारित मुख्य द्वेषपूर्ण कलंकित लक्ष्य है। हालॉंकि सौभाग्यवश भ्रष्टाचार पर सबसे लम्बी ग़ज़ल लिखने का भी मैंने विश्व कीर्तिमान स्थापित किया हुआ है। जिसके बावजूद कल्चरल अकादमी मुझे अपने कार्यक्रम में अधिकांशतः बुक नहीं करती और न ही मंचासीन करती है। जबकि विश्व में कई साहित्यिक अकादमियॉं और उक्त अकादमियों द्वारा दिए गए अनेक साहित्यिक पुरस्कार विजेताओं सहित उल्लेखनीय असंख्य प्रोफेसर विश्व में विद्यमान हैं।
अतः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी कृपया मेरी असंवैधानिक समस्याओं को सुलझाते हुए मुझे मार्गदर्शन करें कि अकादमी के उक्त व्याप्त भ्रष्टाचार पर मेरा सदाचार कब प्रभावी होगा? जबकि सत्यमेव जयते के आधार पर प्रश्न पूछना मेरा जन्मसिद्ध अर्थात मौलिक अधिकार है और उन राष्ट्रीय प्रश्नों पर उत्तर देना अकादमी एवं अकादमी के विद्वान अधिकारियों का संवैधानिक मौलिक कर्तव्य है। इसलिए माननीय महोदया कृपया मेरी मूल समस्याओं का निवारण कर राष्ट्र को कृतार्थ करें। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय लेखक व राष्ट्रीय पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।
Grievance Status for registration number : PRSEC/E/2023/0047154
Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
10/11/2023
Received By Ministry/Department
President's Secretariat
Grievance Description
भारतीय भ्रष्टाचार को दर्शाने एवं उसे जड़ से समाप्त करने हेतु बाल्यावस्था से खाई अपनी भीष्म सौगंध के प्रति अपने बासठवें वर्ष में भी सुचारू रखे हुए हूॅं भले ही मेरा समूल नाश हो गया है मैं कर्म में विश्वास रखते हुए और निष्ठापूर्ण सत्कर्म कभी नष्ट नहीं होंगे और उल्लेखनीय है कि मैं उपरोक्त युद्धाभ्यास विभिन्न निजी एवं सरकारी विभागीय मोर्चों पर कर रहा हूॅं और सौभाग्यवश शनैः शनैः सफलता भी प्राप्त कर रहा हूॅं इसमें भी कोई शंका अथवा दोराय नहीं है अब मेरे पास खोने को कुछ भी शेष नहीं है जहॉं तक कि मुझे अब मान सम्मान तो क्या मृत्यु से भी भय नहीं लग रहा है चूंकि स्थूल शरीर नाशवान है और आत्मा अमर है उपरोक्त मोर्चाबंदी की वर्तमान कड़ी कल्चरल अकादमी है जहॉं के वर्तमान आदरणीय सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी ने भ्रष्टाचारमुक्त भारत बनाने में मेरा उल्लेखनीय सहयोग किया था जिसके लिए मैं उन्हें हृदय तल से साधुवाद देते हुए आभारी भी हूॅं परन्तु दुर्भाग्यवश अकादमी के व्यापक भ्रष्टाचार पर मेरे सदाचार की यात्रा में वे अधिक दूरी तय करने में सक्षम नहीं हुए और उन्होंने यह कहते हुए मुझसे किनारा कर लिया था कि चूंकि आपने मुख्य सम्पादक की भूमिका पर बाहरी लेखकों के आलेख प्राथमिकता पर प्रकाशित करने में मेरे विरुद्ध भी माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी को पत्र लिख दिया था जिसमें मैं भी उत्तरदेह हूॅं इसलिए मैं आपके संघर्ष में आगामी सहयोग नहीं कर सकता हूॅं उल्लेखनीय यह भी है कि अभी तक उक्त समस्या का समाधान अकादमी के सांस्कृतिक अधिकारी आदरणीय डॉ शाह नवाज जी कर नहीं पाए और मेरी अन्य व्यथात्मक समस्याओं ने अनेकों प्रश्नों को जन्म दे दिया है जैसे कि अकादमी की द्विमासिक पत्रिका शीराज़ा में लेखकों को सब्सिडी क्यों नहीं दी जा रही है अकादमी में पढ़े जा रहे पत्रवाचकों द्वारा अपने पत्रों में मेरे राष्ट्र के प्रति समर्पित लेखन सहित मेरी प्रकाशित पुस्तकों का उल्लेख क्यों नहीं किया जा रहा प्रश्न यह भी गंभीर है कि पहले तो पुस्तक प्रकाशित करने हेतु अकादमी ने मुझे कोई सब्सिडी नहीं दी हुई और न ही मुझसे मेरी स्वयं प्रकाशित पुस्तकें खरीदी ही जा रही हैं ऐसे में जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी मेरी प्रकाशित शुद्ध हिंदी ग़ज़ल संग्रह राष्ट्र के नाम संदेश को अपने पढ़े जा रहे पत्रों में तिलांजलि केसे दे सकती है जबकि इस पर मार्गदर्शन करने हेतु अकादमी के विद्वान सांस्कृतिक अधिकारी आदरणीय डॉ शाह नवाज जी ने सरकार को उत्तर देते हुए उक्त पुस्तक को पुरस्कार हेतु भेजे जाने की बात कही हुई है ज्वलंत प्रश्नों में से एक प्रमुख प्रश्न यह भी है कि मैं समाचार पत्र बेचकर अर्जित धन से प्रकाशित पुस्तक अकादमी अथवा उनके पत्रवाचकों को निःशुल्क पुस्तकें दूॅं भी क्यों अब माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी मैं अकादमी द्वारा आयोजित दो दिवसीय हिंदी साहित्य सम्मेलन में राइटर्स क्लब में स्थित के एल सहगल सभागार में उपस्थित होते हुए भी उपरोक्त पढ़े जा रहे पत्रों में मेरा नाम उल्लेख न करने पर चुप्पी कैसे साध सकता था और यह पूछे बिना कैसे रह सकता था कि अकादमी अपने मौलिक कर्तव्यों में चूक क्यों कर रही है वह अपने पत्रवाचकों को पुस्तकें उपलब्ध क्यों नहीं करवा रही है क्या यह अकादमी अथवा पत्रवाचक का प्रमुख दायित्व नहीं है कि वह अपने दायित्वों का पूर्ण निर्वहन करें और सरकार को झूठे ऑंकड़े प्रेषित न करें हालॉंकि अकादमी के आदरणीय सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी स्वयं मानते हैं कि अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक नहीं करना और दूसरों के अधिकारों पर चुप्पी साधना भ्रष्टाचार की सूची में आता है स्पष्ट शब्दों में कहूॅं तो राष्ट्र के नाम संदेश जम्मू कश्मीर में शुद्ध हिंदी भाषा में लिखा गया पहला ग़ज़ल संग्रह है जिसे सजल भी कहना अतिश्योक्ति नहीं है जिसे शुद्धता के आधार पर साजिश के अंतर्गत छुपाना और मुझे राष्ट्रीय विख्यात लेखकों की सूची में नहीं दर्शाना अकादमी का मुख्य द्वेषपूर्ण लक्ष्य है हालॉंकि सौभाग्यवश भ्रष्टाचार पर सबसे लम्बी ग़ज़ल लिखने का भी मैंने विश्व कीर्तिमान स्थापित किया हुआ है जिसके बावजूद कल्चरल अकादमी मुझे अपने कार्यक्रम में अधिकांशतः बुक नहीं करती और न ही मंचासीन करती है माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी प्रश्न पूछना मेरा जन्मसिद्ध अर्थात मौलिक अधिकार है और उन राष्ट्रीय प्रश्नों पर उत्तर देना अकादमी एवं अकादमी के विद्वान अधिकारियों का संवैधानिक मौलिक कर्तव्य है इसलिए माननीय महोदया कृपया मेरी मूल समस्याओं का निवारण कर राष्ट्र को कृतार्थ करें
Current Status
Under process
Date of Action
10/11/2023
Officer Concerns To
Officer Name
Shri Manoj Kumar Dwivedi (Comm Secretary GAD)
Organisation name
Union Territory of Jammu and Kashmir
Contact Address
Room No. 318-19 Govt of JK, Civil Sectt., Srinagar
Email Address
Contact Number
01912570018
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The response was: 552 5.2.2 The email account that you tried to reach is over quota and inactive. Please direct the recipient to https://support.google.com/ |
---------- Forwarded message ----------
From: Indu Bhushan Bali <baliindubhushan@gmail.com>
To: "J&K Academy of Art, Culture and Languages Jammu" <jkaacljmu@gmail.com>, Amar Ujala <amarujalajmu@gmail.com>, aro-chd.edu@nic.in, Avinash Chopra <chopra.avinash@gmail.com>, adg@bprd.nic.in, "Abhishek832003@gmail.com Aa" <abhishek832003@gmail.com>, Bipin Bihari <samkaleenbs@sahitya-akademi.g
Cc:
Bcc:
Date: Fri, 10 Nov 2023 12:21:28 +0530
Subject:
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