माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी मेरा न्यायिक मामला अर्थात विषय का न्यायिक स्वरूप यह है कि पूर्व न्यायाधीशों की भॉंति वर्तमान न्यायाधीश भी मुझे सम्पूर्ण न्याय देने में भ्रष्टतापूर्वक एवं विद्वेषपूर्वक भारतीय संविधान द्वारा दिए गए संवैधानिक मौलिक अधिकारों का विधिक रूप में विधिवत शोषण ही नहीं बल्कि न्यायिक बलात्कार कर रहे हैं और स्वयं को संविधान से ऊपर बताकर न्यायिक बलात्कार पर न्यायिक बलात्कार कर रहे हैं। जबकि देश की विभिन्न माननीय न्यायालयों के न्यायाधीश यह निर्णय दे रहे हैं कि बलात्कार "बलात्कार" ही होता है भले वह पीड़िता का पति ही क्यों न हो। जबकि दूसरी ओर माननीय न्यायालयें दाम्पत्य जीवन में दम्पत्ति में से किसी एक पक्ष द्वारा बिना ठोस आधार पर लम्बे समय तक यौन संबंध न बनाना क्रूरता मानती हैं।
जबकि माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी प्रकृति द्वारा निर्धारित 09 माह के समय को टाल कर यद्यपि वैश्विक माताऍं नव शिशुओं को जन्म देने की निर्धारित प्राकृतिक समय सीमा का उल्लघंन करतीं, तो इस समय मैं आपसे प्रश्न नहीं पूछ रहा होता और आप मेरे प्रश्नों के उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं होते। क्योंकि तिथियों में उलझाकर आज तक मेरी और आपकी परम पूजनीय माताओं ने हमें जन्म ही नहीं दिया होता। जैसे आज मैं न्याय प्राप्त नहीं कर सका और आप ईश्वरीय शक्तियों से सम्पन्न होते हुए भी मुझे न्याय दे नहीं सके।
ऐसी विचित्र एवं अद्वितीय परिस्थितियों के उपरोक्त ठोस आधारों पर माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी आपसे मेरा यह प्रश्न स्वाभाविक है कि जब बलात्कार "बलात्कार" ही है तो फिर मेरे साथ चिरकाल से माननीय विद्वान न्यायाधीशों द्वारा किया जा रहा वीभत्स पीड़ादायक "न्यायिक बलात्कार" बलात्कार क्यों नहीं माना जा रहा? मानवीय संवेदनाओं को क्यों नहीं समझा जा रहा? बिलकिस बानों के दोषियों जैसे मेरे अपराधियों को जेल में बंद क्यों नहीं किया जा रहा है? मेरी धीर गंभीर याचिकाओं पर त्वरित कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? गंभीरतापूर्वक बलात्कार की विभिन्न धाराओं के अन्तर्गत क्यों नहीं सुना जा रहा? जबकि मेरे मौलिक अधिकारों का हनन करते हुए सर्वप्रथम विभागीय क्रूर अधिकारियों मुझे प्रताड़ित करते हुए, उसके उपरान्त डॉ राम मनोहर लोहिया और सफदरजंग अस्पताल के मनोवैज्ञानिकों जारी प्रमाणपत्रों ने मेरी नौकरी छीनकर और अंततः माननीय न्यायाधीशों ने भी विभिन्न प्रकार से सामूहिक न्यायिक बलात्कार किया था और वर्तमान में भी आधुनिकता के आधार पर कर रहे हैं।
सर्वविदित है कि मेरे साथ पहला न्यायिक बलात्कार मेरी पतिव्रता धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली जी द्वारा मेरे विभाग के विरुद्ध माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय में पत्र लिखकर दायर याचिका अंक ओडब्ल्यूपी 968/96 की सुनवाई में सर्वश्री माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम.मीर जी ने भ्रष्टाचार में लिप्तता के आधार पर माननीय न्यायालय के खुले कक्ष में दिनॉंक 24 दिसंबर 1997 में किया था। जिसका प्रमाण उन्होंने स्वयं अपने दिनॉंक 09 फरवरी 1998 के निर्देश में स्पष्ट दर्शाया हुआ है। जिससे मेरा और मेरे परिवार का शरीर ही नहीं बल्कि अमर आत्मा भी रक्तरंजित हो चुकी है। जिसके उपचार के लिए हम आज भी उसी माननीय न्यायालय में धक्के खा रहे हैं और वर्तमान माननीय न्यायाधीशों की विडंबनापूर्ण प्रकाष्ठा यह है कि वह उन्हें बचाने की चेष्टा में आपराधिक क्रूर प्रतिवादियों को भी अंतिम और पूर्णतः अंतिम अवसर देते जा रहे हैं। जिसे असंवैधानिक करार देना अतिश्योक्ति कतई नहीं है।
जिसका यथार्थ यह है कि जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पंकज मिथल जी और न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्रीमती मोक्षा खजूरिया काजमी जी की खंडपीठ द्वारा दिनॉंक 31मार्च 2022 को पारित असंवैधानिक आदेश पर मैंने पुनर्विचार याचिका अंक 81/2022 दाखिल की थी। क्योंकि वह पूर्णतया दोषपूर्ण एवं विद्वेषपूर्वक थी जिसका एक यथार्थ यह है कि माननीय मोक्षा खजूरिया काजमी जी मेरी याचिका एलपीए अंक 139/2020 पर माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ताशी रब्सतान जी की भॉंति सुनवाई ही नहीं कर सकती थीं। चूॅंकि माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्रीमती मोक्षा खजूरिया काजमी जी मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली जी की याचिका अंक ओडब्ल्यूपी 968/96 और पुनर्विचार याचिका अंक रेस्ट (ओडब्ल्यूपी) 18/98 में विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता श्री डी.सी. रैना सहित विद्वान अधिवक्ता "मोक्षा खजूरिया" के रूप में इन्हीं तथ्यों पर हमें न्याय दिलाने हेतु हमारी ओर से उक्त माननीय न्यायालय में उपस्थित हो चुकी थीं और उपरोक्त न्यायिक बलात्कार की साक्षी बनकर हमें न्याय दिलाने में पूर्णतया असफल भी हो चुकी थीं। जिसके आधार पर उनका माननीय खंडपीठ में बैठना और निर्णय में याचिका को रद्द करना पूरी तरह असंवैधानिक है। इसी सिक्के के दूसरे पहलू में माननीय खंडपीठ द्वारा मेरी तत्कालीन याचिका जिसमें मैंने समय पर अपना वेतन मॉंगा था पर आधारित याचिका अंक एसडब्ल्यूपी 2605/1999 को संज्ञान में नहीं लेना मुख्य आधार था। जिसे अभी तक विचाराधीन रखा हुआ है। माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पंकज मिथल जी जानते थे कि वह असंवैधानिक निर्णय देकर गलती कर चुके हैं।
इसके अलावा उपरोक्त खंडपीठ के आदेशानुसार मैंने पुनः माननीय न्यायालय में सम्पूर्ण न्याय हेतु क्रमानुसार याचिका अंक डब्ल्यूपी (सी) 1647/2022, 1719/2022, 1757/2022, 1847/2022, 1848/2022, 2068/2022, 2087/2022 और 2088/2022 दाखिल कर सम्पूर्ण न्याय हेतु खंडपीठ के आदेश का निष्ठापूर्वक विधिवत पालन किया था। जिस पर विद्वान डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया श्री विशाल शर्मा जी ने भयंकर आपत्ति जताई और मुझे जेल भेजने की कतिपय वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीशों ने धमकियॉं दी थीं और अंततः मेरे संलग्न साक्ष्यों की गुणवत्ता के आधार पर मेरी उक्त सभी गुणात्मक याचिकाओं के गुणागुणों को स्वीकार करते हुए क्रूर प्रतिवादियों को आदेश पारित किए कि उक्त समस्त याचिकाओं पर आपत्तियॉं दाखिल करें।
परन्तु प्रतिवादियों द्वारा आपत्तियों को दाखिल न करने पर माननीय वर्तमान न्यायाधीशों ने न्यायिक पग उठाने हेतु माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान जूडिशियल रजिस्ट्रार के पास भेजा। जिन्होंने मूल्यांकन कर माननीय न्यायालय द्वारा पहले ही अधिक समय दे देने का उल्लेख करते हुए पुनः माननीय न्यायालय में भेजी थीं। जिसके उपरान्त भी वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीश भारतीय दंड संहिता की धारा 219 का उल्लघंन करते हुए, बार-बार अंतिम और पूर्णतः अंतिम अवसर प्रदान करने के बावजूद, न्याय करने के स्थान पर दिनॉंक 30 दिसम्बर 2023 को, पुनः जूडिशियल रजिस्ट्रार के पास न्यायिक प्रक्रियात्मक पग उठाने हेतु भेज दिया है।
जिस पर कृपया माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी प्रार्थी द्वारा विनम्रतापूर्वक पूछे गए प्रश्न पर कृपया विनम्रतापूर्वक बताऍं कि 1994 से निरंतर निर्दोष कनिष्ठ कर्मचारी को विभागीय क्रूर भ्रष्टाचारी उच्च अधिकारियों द्वारा आपराधिक प्रताड़नाओं से परिपूर्ण याचिकाओं को कितनी बार अंतिम और पूर्णतः अंतिम अवसर देते हुए कितने सुअवसर एवं कितनी बार जूडिशियल रजिस्ट्रार से न्यायिक प्रक्रियाओं के लिए पग उठाने हेतु भेजना कितना संवैधानिक है ? जबकि तीन याचिकाओं पर आपत्तियॉं दाखिल भी हो चुकी हैं। इसी प्रकार भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी एवं माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी सादर बताऍं कि यह मेरे साथ सामूहिक न्यायिक बलात्कार नहीं तो और क्या है? सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर
Grievance Status for registration number : PRSEC/E/2024/0002170
Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
13/01/2024
Received By Ministry/Department
President's Secretariat
Grievance Description
माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी मेरा न्यायिक मामला अर्थात विषय का न्यायिक स्वरूप यह है कि पूर्व न्यायाधीशों की भॉंति वर्तमान न्यायाधीश भी सम्पूर्ण न्याय देने में भ्रष्टतापूर्वक एवं विद्वेषपूर्वक मुझे भारतीय संविधान द्वारा दिए गए संवैधानिक मौलिक अधिकारों का विधिक रूप में विधिवत शोषण ही नहीं बल्कि न्यायिक बलात्कार कर रहे हैं और स्वयं को संविधान से ऊपर बताकर न्यायिक बलात्कार पर न्यायिक बलात्कार कर रहे हैं जबकि देश की विभिन्न माननीय न्यायालयों के न्यायाधीश यह निर्णय दे रहे हैं कि बलात्कार बलात्कार ही होता है भले वह पीड़िता का पति ही क्यों न हो ऐसे में माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी से यह प्रश्न स्वाभाविक है कि जब बलात्कार बलात्कार ही है तो फिर मेरे साथ चिरकाल से माननीय न्यायाधीशों द्वारा किया जा रहा वीभत्स न्यायिक बलात्कार बलात्कार क्यों नहीं माना जा रहा जबकि मेरे माननीय न्यायाधीशों ने सामूहिक न्यायिक बलात्कार किया था और कर रहे हैं सर्वविदित है कि मेरे साथ पहला न्यायिक बलात्कार मेरी पतिव्रता धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली जी द्वारा मेरे विभाग के विरुद्ध माननीय जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में पत्र लिखकर दायर याचिका अंक ओडब्ल्यूपी 968 96 की सुनवाई में सर्वश्री माननीय न्यायाधीश श्री ए एम मीर जी ने दिनॉंक 24 दिसंबर 1997 में किया था जिससे मेरी और मेरे परिवार की आत्मा भी रक्तरंजित हो चुकी है और वर्तमान माननीय न्यायाधीश प्रतिवादियों को अंतिम और पूर्णतः अंतिम अवसर देते जा रहे हैं जिसका यथार्थ यह है कि माननीय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री पंकज मिथल जी और न्यायाधीश श्रीमती मोक्षा खजूरिया काजमी जी की खंडपीठ द्वारा 31मार्च 2022 को पारित आदेश पर पुनर्विचार याचिका अंक 81 2022 दाखिल की थी क्योंकि वह दोषपूर्ण एवं विद्वेषपूर्वक थी क्योंकि माननीय मोक्षा खजूरिया काजमी जी मेरी याचिका एलपीए अंक 139 2020 पर माननीय न्यायाधीश श्री ताशी रब्सतान जी की भॉंति सुनवाई ही नहीं कर सकती थीं चूॅंकि माननीय न्यायाधीश श्रीमती मोक्षा खजूरिया काजमी जी मेरी धर्मपत्नी जी की याचिका 968 96 और पुनर्विचार याचिका 18 98 में विद्वान अधिवक्ता श्री डी सी रैना सहित विद्वान अधिवक्ता मोक्षा खजूरिया जी इन्हीं तथ्यों पर न्याय हेतु हमारी ओर से उक्त माननीय न्यायालय में उपस्थित हो चुकी थीं जिसके आधार पर उनका माननीय खंडपीठ में बैठना और निर्णय देना ही असंवैधानिक है दूसरे पहलू में माननीय खंडपीठ ने मेरी याचिका अंक एसडब्ल्यूपी 2605 1999 को संज्ञान में नहीं लेना मुख्य आधार था जिसे अभी तक विचाराधीन रखा है उपरोक्त खंडपीठ के आदेशानुसार मैंने पुनः माननीय न्यायालय में सम्पूर्ण न्याय हेतु क्रमानुसार याचिका अंक डब्ल्यूपी सी 1647 1719 1757 1847 1848 2068 2087 और 2088 दाखिल कर सम्पूर्ण न्याय हेतु खंडपीठ के आदेश का विधिवत पालन किया था जिस पर विद्वान डि सॉ जनरल श्री विशाल शर्मा जी ने आपत्ति जताई और मुझे जेल भेजने की कतिपय वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीशों ने धमकियॉं दी थीं और मेरे साक्ष्यों की गुणवत्ता के आधार पर मेरी उक्त सभी याचिकाओं को स्वीकार कर क्रूर प्रतिवादियों को आदेश किए कि उक्त समस्त याचिकाओं पर आपत्तियॉं दाखिल करें परन्तु प्रतिवादियों द्वारा आपत्तियों को दाखिल न करने पर माननीय वर्तमान न्यायाधीशों ने न्यायिक पग उठाने हेतु माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान जूडिशियल रजिस्ट्रार के पास भेजा जिन्होंने मूल्यांकन कर विधिक समय सीमा समाप्त होने का उल्लेख करते हुए पुनः माननीय न्यायालय में भेजी थी जिसके उपरान्त भी वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीश भारतीय दंड संहिता की धारा 219 का उल्लघंन करते हुए बार बार अंतिम अवसर प्रदान करने के बावजूद 30 दिसम्बर 2023 को पुनः जू रि के पास न्यायिक प्रक्रियात्मक पग उठाने हेतु भेज दिया जिस पर माननीय श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी कृपया बताऍं कि 1994 से निरंतर निर्दोष कनिष्ठ कर्मचारी को विभागीय क्रूर भ्रष्टाचारी उच्च अधिकारियों द्वारा आपराधिक प्रताड़नाओं से परिपूर्ण याचिकाओं को कितनी बार अंतिम अवसर एवं कितनी बार जूडिशियल रजिस्ट्रार से न्यायिक प्रक्रियाओं के लिए पग उठाना संवैधानिक है जबकि तीन याचिकाओं पर आपत्तियॉं दाखिल भी हो चुकी हैं इसी प्रकार माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी एवं माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी यह मेरे साथ सामूहिक न्यायिक बलात्कार नहीं तो और क्या है सम्माननीयों जय हिन्द प्रार्थी डॉ इंदु भूषण बाली ज्यौड़ियॉं जम्मू
Current Status
Grievance received
Date of Action
13/01/2024
Officer Concerns To
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