जीवन एक भयंकर चुनौती है और लेखन कार्य उक्त भीष्म चुनौती का समाधान है। ध्यान रहे कि लेखन सामग्री समस्त जटिल समस्याओं में टमाटर का कार्य करती है और उक्त विकट व्यष्टिगत अथवा समष्टिगत परिस्थितियों को सुलझाने के साथ-साथ उन्हें स्वादिष्ट भी बना देती है। जिसके आधार पर पीड़ित प्राणी उपरोक्त असहनीय कष्टदायक घटनाओं के घटकों का आत्मिक आभारी बन जाता है।
क्योंकि कालांतर में पीड़ित व्यक्ति जिन बुलॅंदियों को छूने में सफल होता है वह अद्वितीय सफलताएं उपरोक्त क्रूर घटकों की अकाल्पनिक क्रूरता का ही परिणाम होता है जिसके बल पर साधारण जनमानस असाधारण रूप धारण कर लेते हैं और आत्मा से परमात्मा बन जाते हैं। जैसे कुॅंवर राम जी ने कालांतर में महाज्ञानी पंडित एवं सशक्त राजा रावण की प्रशिक्षित सेना से अपनी अप्रशिक्षित वानर सेना द्वारा सैन्य कार्रवाई करते हुए उसे उसी के देश में उसके अक्षम्य अपराध का मृत्युदंड देते हुए उसका सिर धड़ से अलग कर विजय प्राप्त की थी और अयोध्या नरेश के कुॅंवर राम जी से श्रीराम जी बन कर उभरे थे। जिसके लिए देवताओं ने उन पर पुष्प वर्षा करते हुए उन्हें सम्मानित किया था।
इसी प्रकार त्रेता युग के ग्वाले कृष्ण जी ने अपने सगे क्रूर मामा राक्षस राज "कंस" का वध कर श्रीकृष्ण की उपाधि प्राप्त की थी। जिन्हें ईश्वरीय अवतार आज भी माना जाता है। जबकि ईश्वरीय शक्ति सम्पन्न श्रीकृष्ण जी ने भी साधारण शिशुओं की भॉंति वृंदावन में गाएं चराते हुए मिट्टी व माखन खाया था। यह भी उल्लेखनीय है कि उन्हें समय की कसौटी पर खरा उतरने के लिए रण भूमि को छोड़कर भागना भी पड़ा था जिसके आधार पर उनके अनेकों नामों में से एक विख्यात नाम रणछोड़ भी है।
अंततः यह भी कटुसत्य है कि त्रेता युग में श्रीविष्णु जी अपने राम अवतार में असहनीय पीड़ाओं को झेलते हुए मर्यादा का प्रदर्शन करते हुए एक ओर मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए और दूसरी ओर द्वापर युग में श्रीकृष्ण अवतार में गोपियों के संग प्रेम की लीलाओं का भरपूर रसपान करते हुए प्रेम की बंसी बजाते हुए बंसी वाले भी कहलाए।
अतः धन्य हैं श्रीराम जी और धन्य-धन्य श्रीकृष्ण जी, जिनकी मर्यादा और मर्यादित बंसी की धुन पर प्राणियों का "रोम-रोम" आत्मिक आभारी होकर नतमस्तक हो जाता है। यही नहीं बल्कि पीड़ितों की "आत्मा" भी सार्वभौमिक संतुष्ट होकर कष्टदाई घटकों के आत्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी आभारी हो जाती है। बस ठीक वैसे ही भगत जी के कुशल सात्विक नेतृत्व में हरियाणा के फरीदाबाद में अपने गोत्र श्री पराशर ऋषि जी की "तपोस्थली" अरावली की पहाड़ियों के दर्शनों के उपरान्त मुझे भी अपने सुनसान पड़ चुके जीवन में पारिवारिक हरियाली, सुनहरी शीतल हवाओं एवं विजयी मनमोहक अनुभूतियों का अनुभव हो रहा है। जिससे पारिवारिक संबंध परिपक्व और परिवार में परिपक्वता सुनिश्चित हो रही है। ॐ शान्ति ॐ सम्माननीयों जय हिन्द
स्वरचित
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर