परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण सृष्टि में सब कुछ परिवर्तनशील है। जिसमें मानव से लेकर मानवीय मूल्यों पर आधारित मानव की मानवता के दृष्टिकोण भी समय-समय पर बदलते परिवेश में बदलते देखे जाते हैं। जिसका प्रभाव विश्व की समस्त भाषाओं पर भी पड़ता है। जिनमें से हिन्दी भी एक भाषा है। जिसे भारतवासियों की प्रमुख भाषा माना जाता है। ऐसे बदलते परिवेश में हिन्दी भाषा का स्वरूप भी कैसे अछूता रह सकता है?
सर्वविदित है कि हम भारतीय वर्षों अंग्रेजों के अधीन रहे हैं और अधीनता अधीनस्थों की भाषा को ही नहीं बल्कि उनके स्वाभिमान एवं आत्मा को भी परिवर्तित कर जाती है। जिसके फलस्वरूप जो व्यक्ति चापलूसी एवं चाटुकारिता में निपुण थे, उन्होंने अंग्रेजों की भाषा के कुछ शब्दों को अपना लिया और भारतवासियों को धौंस दिखाने के लिए उन शब्दों का हिन्दी में प्रयोग करने लगे। इसी प्रकार इससे पहले मुगलों की भाषा को भी अपनाया जा चुका है और अपनी भाषा की शुद्धता को अशुद्ध किया है।
जम्मू और कश्मीर में तो हिन्दी का सत्यानाश यहॉं तक किया जा चुका है कि उर्दू भाषा को हिन्दी भाषा का स्वरूप दे दिया गया था और वही हमें पढ़ाया भी गया था। उदाहरणार्थ हमें हमारे पूजनीय शिक्षकों द्वारा भूमि, पृथ्वी और धरा के स्थान पर ज़मीन पढ़ाया गया था और सर्वविदित है कि ज़मीन हिन्दी का शब्द नहीं है।
अब बदलते परिवेश में परिवर्तन आया है और भारत की सरकारों ने भी इस ओर कुछ ध्यान दिया है। जिसका सीधा श्रेय निस्संदेह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके उपरांत भारतीय जनता पार्टी को जाता है। जिसका नेतृत्व वर्तमान माननीय विद्वान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं भारत की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी सफलतापूर्वक कर रहे हैं।
उल्लेखनीय यह भी है कि वर्तमान भारत सरकार ने सम्पूर्ण भारत में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी भाषा के प्रचार और प्रसार के साथ-साथ शुद्धता पर भी विशेष ध्यान दिया है। जिसमें हिंग्लिश भाषा का सम्पूर्ण वहिष्कार करते हुए भारतीय सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों की शुद्धता की भॉंति हिन्दी को भी शुद्ध किया जा रहा है और उसमें से अंग्रेजी/उर्दू को तिलांजलि देकर शुद्ध हिन्दी का प्रयोग किया जा रहा है।
वर्णनीय है कि इसका प्रभाव जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी द्वारा आयोजित हिन्दी संगोष्ठियों में भी देखा जा रहा है। जहॉं मात्र दोपहरी का भोजन करने के उद्देश्य में आए कतिपय विद्वान (प्रोफेसर) ही नहीं बल्कि हिन्दी भाषा के सम्पादक भी अब भाषा की शुद्धता का पालन करने लगे हैं। चूंकि उपस्थित विश्वविद्यालयों के हिन्दी विद्वान (आदरणीय प्रोफेसर) भी परिचित हो चुके हैं कि अब साधारण लेखक भी अत्यधिक जागरूक हो चुके हैं और विश्वविद्यालयों से आए प्रोफेसरों के लेखन पर भी ध्यान आकर्षित करते हैं।
जिससे अंततः शुद्धता के आधार पर जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी भाषा में अद्वितीय सुधार हुआ है और बदलते परिवेश में हिन्दी भाषा का स्वरूप सदृढ़ और सशक्त होकर निखरा भी है? सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।