माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 भारत के प्रत्येक नागरिक को वचन देता है कि वह अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु भारत की माननीय उच्चतम न्यायालय में अपने मौलिक अधिकारों को लागू करवाने हेतु याचिका दायर कर सकता है। जिसमें वह अपने मौलिक अधिकारों के हनन रूपी घावों का संवैधानिक उपचार करवा सकता है। कहने का अभिप्राय यह है कि अनुच्छेद 32 वह संवैधानिक मौलिक अधिकार है जिसके अंतर्गत संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त समस्त मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए सीधे भारत की माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर अपने अधिकारों की सुरक्षा हेतु मांग कर सकता है। परन्तु पीड़ित नागरिक माननीय उच्चतम न्यायालय में पहुंच पाएं इसका कोई वचन नहीं दिया गया। चूंकि गरीब पीड़ित नागरिक अधिवक्ताओं के भारीभरकम शुल्क के कारण माननीय उच्चतम न्यायालय में पहुंच ही नहीं पाता। ऐसे में आप ही बताएं गरीब एवं मध्यम वर्ग के पीड़ितों को अनुच्छेद 32 का क्या लाभ?
हालांकि इन अधिकारों को प्राप्त करने हेतु वही पीड़ित व्यक्ति माननीय उच्च न्यायालय में भी अनुच्छेद 226 के अंतर्गत याचिका दायर कर अपने संवैधानिक घावों का न्यायिक उपचार करवा सकता है। परन्तु दुर्भाग्यवश कॉलेजियम प्रणाली माननीय उच्च न्यायालयों को अभी तक ऐसे सुयोग्य, साहसी, होनहार, विवेकपूर्ण, विद्वान न्यायाधीश नहीं दे पाई जो साधारण से साधारण मामलों में भी याचिकाकर्ताओं को शीघ्रतापूर्वक निर्णय लेकर न्याय दे सकें। जिसके कारण देश द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के बावजूद वह याचिकाकर्ताओं को तिथि पर तिथि देते रहते हैं। जिसके चलते याचियों के मौलिक अधिकार दिन प्रतिदिन भ्रष्टाचार की चक्की में पिसते रहते हैं और उनका सम्पूर्ण जीवन ही नष्ट कर दिया जाता है। माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी जिनमें से एक ज्वलंत उदाहरण मैं स्वयं भी हूॅं। जो 1996 से लेकर अब तक माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में विभिन्न याचिकाओं के माध्यम से चुनौतियां देते-देते स्वयं एक चुनौती बन चुका हूॅं। जिसके कारण मेरी धर्मपत्नी सहित मेरे बच्चे भी मुझे त्याग कर अलग रहने पर विवश हैं।
जिसके लिए मैं दावे से कह सकता हूॅं कि उक्त दोष में माननीय उच्च न्यायालय के माननीय पूर्व न्यायाधीशों की अपार संवैधानिक गलतियां भी दोषी हैं। जिनकी गलतियों के कारण अब तक मैं न्याय से वंचित रहा हूॅं और उसपर मेरे सगे संबंधियों/रिश्तेदारों द्वारा मेरे बीवी बच्चों को मेरे न्यायिक संघर्ष के विरुद्ध उकसाना भी एक विशेष बिंदु है। जो मेरा और मेरे परिवार का उपहास उड़ाते हुए तीर्थ यात्राओं के नाम पर आनन्द प्राप्त करते हुए जीवनयापन कर रहे हैं। जबकि उक्त सच्चाई मेरी पढ़ीलिखी धर्मपत्नी और विद्वान बच्चों को भी समझ नहीं आ रही और वह अकेले ही नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
दूसरी ओर कड़वा सच यह भी है कि देश की माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी, सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी, एसएसबी विभाग के वर्तमान महानिदेशक जी, माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एन कोटेश्वर सिंह जी सहित समस्त संबंधित विद्वान न्यायाधीश एवं माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी आप भी हमारे मामले में कुंभकर्णी नींद से जाग नहीं रहे। जो यह सुनिश्चित ही नहीं बल्कि सिद्ध करता है कि मेरा और मेरे परिवार का अनमोल जीवन "सत्यमेव जयते" के अभाव में आप सब भी नष्ट कर रहे हैं। जबकि आप सब को मैंने कई प्रार्थना पत्र भेजे परंतु उसके बावजूद आप अपने मौलिक कर्तव्यों को भूलकर कुंभकर्णी नींद सो रहे हैं। जिसके कारण मैं और मेरा परिवार सदैव न्याय से वंचित रह जाता है। परन्तु राष्ट्रीय मौलिक कर्तव्यों की आहुतियां देते हुए गीता के उपदेश अनुसार कर्म करते जा रहा हूॅं।
माननीय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली के संरक्षक एवं उच्चतम न्यायालय के विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी भले ही भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 समस्त भारतीयों को लाभान्वित करने हेतु बनाया गया है। परन्तु यह मेरे जैसे असाधारण लेखक के लिए भी स्वर्णिम स्वप्न से अधिक कुछ भी नहीं है। जो धन के अभाव में प्रायः टूट जाता है और आपके संरक्षण में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली भी दांत दिखाते हुए निरंतर खिल्ली उड़ा रही है। चूंकि भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली को गरीबों के लिए न्यायिक उपचार उपलब्ध करवाने हेतु प्रतिवर्ष दिए जाने वाले अरबों रुपए संरक्षक ही डकार जाते हैं और हम प्रार्थनाएं करते करते युवक से वरिष्ठ नागरिक बन जाते हैं। परन्तु उक्त भ्रष्टाचार के चलते हमें न्याय नहीं मिलता।
जिस भ्रष्टाचार को दूर करने हेतु वर्तमान सरकार के सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में आप एक ऐसे हस्ताक्षर हो सकते हैं जिनपर विश्वास किया जा सकता है कि मात्र और मात्र माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी आप ही कार्यवाही कर शिकंजा कस सकने में सक्षम हैं। जिससे दुर्लभ से दुर्लभतम माना जा रहा न्याय नागरिकों को तुरन्त मिलेगा। जिसके आधार पर मुझ जैसों का भी स्वप्न साकार हो सकेगा और हमें भी न्याय मिल सकेगा। जिसमें न्याय सभी के लिए की उद्देश्यपूर्ति हेतु राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) नई दिल्ली अधिनियम 1987 की धारा 12 के अंतर्गत प्रत्येक पीड़ित पात्र व्यक्तियों को निःशुल्क विधिक सहायता/सेवाएं प्रदान करने की पुष्टि करते हुए नालसा की गरिमा भी बनी रहेगी। अर्थात आपके नाम के कीर्तिमान का डंका भी चारों दिशा-दिशाओं में फैलेगा। जिससे संविधान रचयिता डॉ भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा अनुच्छेद 32 को संविधान का "हृदय और आत्मा" संबोधन एवं सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद की संज्ञा देना अतिश्योक्ति नहीं बल्कि न्यायिक दृष्टिकोण से सुशोभित होगा। जिसे चरितार्थ करते हुए संभवतः आपका मान सम्मान भी बढेगा।
माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी उक्त आलेख के माध्यम से मेरा आपसे विनम्र आग्रह है कि उच्चतम न्यायालय में अनुच्छेद 32 के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा दी जा रही मुझे असंवैधानिक दिव्यांगता पेंशन पर प्रश्नचिन्हों की बौछार करते हुए अपने मौलिक अधिकारों के विभिन्न घावों के संवैधानिक उपचार हेतु माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के अंतर्गत अपनी विभिन्न याचिकाओं पर स्वयं याचिकाकर्ता के रूप में उपस्थित होने का सुअवसर प्रदान कर कृतार्थ करें। ताकि न्याय सदृढ़तापूर्वक जीवित रह सके। सम्माननीयों जय हिन्द