जीवित रहते हुए कष्टदाई पीड़ाओं की यात्राओं से मुक्ति पाना सम्भवतः सम्भव नहीं होता है। परन्तु हृदयविदारक पूर्वकालीन कष्टदाई पीड़ाओं की यात्राओं के घावों पर वर्तमान प्रसन्नताओं की छाया रूपी औषधि का भरपूर लेप करना प्रायः सम्भव होता है। परन्तु उक्त सौभाग्य को प्राप्त करने हेतु पीड़ितों को अपने मनमस्तिष्क में घर कर चुके दुर्भाग्य का वध सुनिश्चित करते हुए उन्हें पूर्णतया भूलना भी होगा। क्योंकि पूर्वकालीन कष्टों से छुटकारा पाए बिना मानव वर्तमान समय का अपार आनंद उठा ही नहीं सकता और प्राकृतिक रूप से जीवन को सुखमय बनाने का आधार भी परिवर्तन ही होता है। ऐसे जैसे प्रकृति पतझड़ ऋतु को ऋतुराज वसंत में परिवर्तित कर ब्रह्मांड को सुगंधित कर देती है।
सर्वविदित है कि प्राणी सांसारिक जीव है और जीव का जीवन कला, संस्कृति और भाषा के बिना अधूरा होता है। चूंकि यह मात्र शब्द ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवीय मूल्यों पर आधारित सभ्यता और संवेदनाओं का आधारपूर्ण भण्डार हैं। जो कुबेर के धन भण्डार से भी कहीं अधिक मूल्यवान है और उपरोक्त मूल्यवान भण्डार राष्ट्र के विश्वशनीय बुद्धिजीवियों के अति संवेदनशील विद्वानों के हाथों में सुरक्षित होना चाहिए। क्योंकि कला, संस्कृति एवं भाषा के अस्त्र, शस्त्र और ब्रह्मास्त्र मात्र शब्द होते हैं। जो विस्फोटक ही नहीं बल्कि अत्याधिक घातक भी होते हैं।
वर्णनीय है कि महाभारत युद्ध का आगमन द्रौपदी के कड़वे शब्द से ही आरम्भ हुआ था और सत्य यह भी है कि श्रीकृष्ण जी के शब्दों से ही गीता उपदेश की उत्पत्ति हुई थी। जिसे राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के कला, संस्कृति एवं भाषा संबंधित अकादमियों के सांस्कृतिक अधिकारियों एवं आयोजकों को समझनी चाहिए। ताकि किसी विद्वान या विदुषी को मंच पर सार्वभौमिक रूप से कहना न पड़े कि उन्हें कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सांस्कृतिक अधिकारियों अथवा कर्मचारियों द्वारा अशोभनीय एवं असंसदीय शब्दों से अपमानित किया था। चूंकि उपरोक्त शब्दावली से घायल पीड़ित एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार मरता है और उसका दुर्भाग्य यह होता है कि उक्त घाव का स्वास्थ्य विशेषज्ञ उपचार भी नहीं कर सकते। चूंकि मनोचिकित्सकों के पास इक्कीसवीं सदी में भी प्रताड़ना का कोई सार्थक उपचार नहीं है।
अतः सभ्यता और संस्कृति से सम्बन्धित जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा से लेकर अंतरराष्ट्रीय अकादमियों में कार्यरत सांस्कृतिक अधिकारियों एवं कर्मचारियों को विशेष ध्यान देना चाहिए कि उनका सम्बन्ध चोर उचक्कों से नहीं बल्कि अत्यधिक संवेदनशील राष्ट्रीय व्यक्तित्व के स्वामियों से है। जिनके साथ दंडधरों (जल्लादों) समान किए गए क्रूरतापूर्ण दुर्व्यवहार को कदापि सहन नहीं किया जाएगा। चूंकि लेखक हत्यारे नहीं राष्ट्रनिर्माता होते हैं। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।