भारतीय नागरिकों को भले ही देश का स्वामी माना जाता है। परन्तु इसमें सत्य कितना और मिथ्या कितना है? यह सब जानते हैं और कड़वे सच से भलीभॉंति परिचित भी हैं। चूॅंकि अभी सरकारी अधिकारियों के मन मस्तिष्क एवं अंग्रेजी भाषा में वही अंग्रेजों द्वारा रचित "फूट डालो और राज करो" की भावना विराजमान है। बात मात्र नौकरशाहों की ही नहीं है बल्कि सॅंवैधानिक पदों पर विराजमान और सीधा स्पष्ट कहूॅं तो कुछेक माननीय न्यायाधीशों को छोड़कर सभी न्यायाधीश विद्वान अधिवक्ताओं द्वारा बार-बार "माई लार्ड व मी लार्ड" कहने पर ही सन्तुष्ट होते हैं। भले ही भारतीय स्वतन्त्रता की पदयात्रा उन्नीस सौ सैंतालीस से चलती हुई दो हजार तेईस तक पहुॅंच चुकी है।
सर्वविदित है कि बड़े से बड़े विद्वान अधिवक्ता माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों से न्याय की भीख मॉंगते हैं जबकि न्याय प्राप्त करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है और प्रत्येक नागरिक को न्याय उपलब्ध कराना माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों का मौलिक कर्तव्य है, जिसे माननीय न्यायालय के माननीय न्यायाधीश पूरा नहीं करते और याचिकाकर्ताओं को तिथि पर तिथि देते हुए अपनी अयोग्यता को प्रमाणित करते हैं। चूॅंकि देश में माननीय न्यायाधीशों का चयन कालेजियम द्वारा होता है और मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक निर्वहन नहीं करने पर कोई सॅंवैधानिक दॅंड भी नहीं है।
यही कारण है कि देश के माननीय प्रधानमन्त्री एवं माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा प्रेषित समस्याओं पर भी अधिकारीगण कोई विशेष ध्यान नहीं देते हैं। जो वास्तव में माननीय प्रधानमन्त्री एवं माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी का स्पष्ट अपमान है। यह मैं इस आधार पर लिख रहा हूॅं क्योंकि मैं माननीय महामहिम राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. शॅंकर दयाल शर्मा जी से लेकर वर्तमान माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी तक निरन्तर लिख रहा हूॅं जिसमें कई सरकारें परिवर्तित हुईं। परन्तु दुर्भाग्यवश अभी भी मुझे न्याय के स्थान पर तिथि पर तिथि ही दी जा रही है और विडम्बना यह है कि भारत सरकार के गृह मन्त्रालय के अधीन मेरा एसएसबी विभाग अर्थात सशस्त्र सीमा बल माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय द्वारा बार-बार उत्तर देने हेतु पारित आदेशों का पालन भी नहीं कर रहा है।
जो स्पष्टतया माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय का अपमान है। सत्य यह भी है कि उक्त कमियों को दूर करने हेतु वर्तमान माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने नौकरशाहों से लेकर माननीय न्यायाधीशों को भी चेताया है कि भारतीय नागरिकों की समस्त समस्यायों का शीघ्र अतिशीघ्र समाधान कर निपटारा करें। जिसके फलस्वरूप अधिकॉंश समस्याओं को सुलझाने से पहले ही रद्द कर दिया जाता है और राष्ट्र को गुमराह किया जाता है। जो देश और देशवासियों के लिए शुभ सॅंकेत नहीं है।
ऐसे में प्रश्न स्वाभाविक है कि जब माननीय प्रधानमन्त्री जी एवं माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी मेरी अनेक याचिकाओं सहित देश के अन्य जागरूक नागरिकों की प्रेषित समस्याओं का सॅंवैधानिक निष्ठापूर्वक उपचार नहीं कर पा रहे, तो सर्वसाधारण नागरिकों का क्या हश्र होगा? ऐसे में विचारणीय है कि राष्ट्रीय सॅंविधान दिवस मनाने का भी क्या औचित्य है? माननीय सशक्त प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी उपरोक्त प्रश्न का सॅंवैधानिक उत्तर कौन देगा? कृपया हस्तक्षेप करते हुए मुझे न्याय दिलवाऍं। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन),
वरिष्ठ अन्तर्राष्ट्रीय लेखक व राष्ट्रीय पत्रकार, राष्ट्रीय चिन्तक, आरएसएस का स्वयॅंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता,
सॅंरक्षक प्रेस कोर कॉउन्सिल
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जनपद जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।