सगे बड़े भाई अथवा भाभियॉं हों, पिताश्री हो, गुरु अथवा शिष्य हों, साधारण साहित्यकार अथवा साहित्य अकादमी या पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार हों, प्रोफेसर हों, जेकेएएस या आईएएस प्रशासनिक अधिकारी हों, चिकित्साल्य अथवा चिकित्सक हों अर्थात डॉक्टर हों, बिरादरी अध्यक्ष या समस्त सरकारी विभागों के विभागाध्यक्ष हों, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण हों या राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण हो, यहॉं तक कि माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के न्यायाधीश/न्यायमूर्ति हों अथवा भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश ही क्यों न हों, प्रश्नकर्ताओं द्वारा पूछे गए सरल से सरल प्रश्नों के उत्तर देने में उनके पुरुषार्थ के गुर्दे प्रायः लुप्त हो जाते सौभाग्यवश मैंने देखे हैं? मैंने उनका मूल्यांकन किया है कि उनका ज्ञान कहीं घास चरने चला जाता है? कैसे उनकी विद्वता की अर्थी निकल जाती है। वह कैसे जीवित होते हुए भी शवों में परिवर्तित हो जाते हैं? वह उत्तर देने के स्थान पर जेल भेजने अथवा मारने पीटने पर उतारू हो जाते हैं। मैं नहीं जान पाया हूॅं कि वे ऐसा क्यों और किस स्वार्थ के वशीभूत होकर करते हैं?
जिसका कड़वा सच यह है कि विजयदशमी हो या दीपावली आज तक मैं अपने उपरोक्त शोधार्थ प्रश्नों के न तो सार्थक उत्तर पा सका हूॅं और न ही अपनी संघर्षरत अंधकारमय इकासठ वर्ष की आयु में संबंधित सशक्त ज्ञान की प्राप्ति कर सका हूॅं। परन्तु दुर्भाग्यवश मेरे अपने पारिवारिक अनमोल जीवन की आहुतियों की प्रकाष्ठा यह है कि उक्त शोध के कारण मुझे अपने पैतृक विभाग के अनेकों भ्रष्टाचारी एवं क्रूर अधिकारियों की अमानवीय क्रूरता का न मात्र सामना करना पड़ा बल्कि उनकी असंवैधानिक असहनीय प्रताड़ना को भी मैंने सहन किया है। जिसके फलस्वरूप मुझे आठ बार मनोरोग चिकित्सालय के मनोरोग विशेषज्ञों के बोर्ड द्वारा मानसिक मूल्यांकन रूपी वैतरणी नदी को भी पार करना पड़ा है। उसके बावजूद माननीय न्यायालय से अड़सठ आदेश प्राप्त करने के उपरांत भी मेरे प्रश्नों की पिटारी आज भी खाली है। जबकि माननीय विद्वान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत विश्वगुरू की दौड़ में अग्रसर होकर ब्रह्मांड का मूल्यांकन करते हुए चॉंद पर तिरंगा फहराने का विश्व कीर्तिमान स्थापित कर चुका है।
इसके बावजूद उपरोक्त जीवनीय कष्टदायक शोध में विभागीय अधिकारियों से लेकर जम्मू और कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी, रेडियो स्टेशन एवं दूरदर्शन जम्मू द्वारा कला, संस्कृति एवं भाषा का सत्यानाश करने वाले सचिवों/निदेशकों के अनुचित व्यवहार के दंशों को भी मैंने झेला है। उसके बावजूद सरल एवं जनसाधारण प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले। हालॉंकि सौभाग्यवश उक्त शोध में मैंने जम्मू और कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू के असाहित्यिक प्रशासनिक सचिवों को न मात्र विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों को बल्कि भारत के प्रथम व्यक्ति अर्थात माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किए साहित्यकारों को ज्ञान बांटते अपनी खुली ऑंखों से देखा और कानों से सुना भी है। जिसे अमर्यादित एवं अशोभनीय कहना अतिश्योक्ति कदापि नहीं होगा।
ऐसे में प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं कि साहित्यिक अकादमियों के सचिव अपने प्रशासनिक मौलिक कर्तव्यों की पूर्ति में अयोग्य प्रमाणित होने पर भी सुयोग्य साहित्यकारों को ज्ञान बांटने का दुस्साहस क्यों और कैसे कर सकते हैं? वे अपने साहित्यकारों के राष्ट्रप्रेम से भरपूर साहित्य का तिरस्कार करते हुए बाहरी साहित्यकारों के साहित्य को जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी की सरकारी द्विमासिक पत्रिका शीराज़ा में प्राथमिकता कैसे प्रकाशित कर सकते हैं? इसके पीछे का रहस्यमय सत्य क्या है और साहित्य अकादमी एवं पद्मश्री पुरस्कार प्राप्तकर्ता इसका सशक्त विरोधी क्यों नही करते? आखिर इसके पीछे उनका अपना स्वार्थ क्या है? वे राष्ट्रहित में जिज्ञासु प्रश्नकर्ताओं के विरोधाभासी प्रश्नों का सार्वजनिक रूप से संवैधानिक उत्तर देकर उनकी जिज्ञासा को शॉंत क्यों नहीं कर देते?
अंततः ज्वलंत प्रश्नों का उठना तो स्वाभाविक ही माना जाएगा कि राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय सम्मानित प्रतिष्ठित साहित्यकारों के साथ असाहित्यिक प्रशासनिक सचिवों द्वारा किए जा रहे असंवैधानिक, अप्रतिष्ठित एवं अमर्यादित व्यवहार के बावजूद मंचसीन साहित्यकारों के साथ-साथ समस्त निर्भीक सशक्त होने का ढिंढोरा पीटने वाले साहित्यकारों के पुरुषार्थ के गुर्दे कहॉं लुप्त हो गए हैं? सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।