जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सदाचारी सचिव आदरणीय श्री भारत सिंह मन्हास जी का मैं हृदय तल से सम्मान करता हूॅं। परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि मैं उनके नाक के नीचे हो रहे भ्रष्टाचार पर ऊंगली न उठाऊं। चूंकि राष्ट्रहित में जागरूक नागरिक होने के आधार पर उपरोक्त प्रशासनिक महानुभाव जी से बिंदास प्रश्न पूछना एवं भ्रष्टाचार में लिप्त प्रत्येक बिंदु पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी सहित विश्वगुरू की ओर अग्रसर हो रहे अपने राष्ट्र के समक्ष सशक्त रूप से प्रस्तुत करना, मेरा मौलिक कर्तव्य ही नहीं बल्कि न्यायिक अधिकार भी है।
क्योंकि बाल्यकाल से मेरे जीवन का उद्देश्य ही संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों और मौलिक अधिकारों को सार्वजनिक करना है। हालॉंकि दुर्भाग्यवश कांग्रेस नीत सरकार में मेरे एसएसबी विभाग के तत्कालीन भ्रष्टाचारी एवं क्रूर अमानवीय वृत्ति के अधिकारियों ने मेरी राष्ट्रभक्ति को राष्ट्रद्रोह की संज्ञा देकर मुझे विभिन्न रूपों से प्रताड़ित किया था। जिससे वर्तमान भाजपा नीत भारत सरकार के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के सशक्त नेतृत्व में एसएसबी विभाग अब माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय की खंडपीठ में शपथपत्र दाखिल कर मुकर चुका है। परन्तु सौभाग्यवश संवैधानिक मौलिक अधिकारों पर आधारित मेरी अनेक याचिकाएं अभी भी माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में विचाराधीन हैं।
परन्तु यहॉं बात संदिग्ध साहित्यिक चक्रव्यूह में व्याप्त चरम भ्रष्टाचार पर की जा रही है जिसमें वर्णनीय है कि दशकों से जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी में "तू मेरी पीठ थपथपा प्रतिउत्तर में मैं आपकी पीठ थपथपाऊंगा" अर्थात आप मेरी पीठ खुजाओ मैं तुम्हारी पीठ खुजाऊंगा का भ्रष्ट खेल खेला जा रहा है और उक्त असंतोषजनक साहित्यिक चक्रव्यूह पर प्रश्न उठने स्वाभाविक भी हैं। ऐसे में सदाचारी प्रशासनिक अधिकारी आदरणीय श्री भारत सिंह मन्हास जी का मौलिक कर्तव्य बनता है कि वह अपने सचिव पद का निर्वहन सत्यनिष्ठा से करें और अपने खुले चक्षुओं द्वारा आयोजित कार्यक्रमों पर दृष्टि रखते हुए गहन अध्ययन करें।
मेरा दावा है कि आदरणीय सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी को सत्य के दर्शन इस बात पर हो जाएंगे कि स्वतंत्रता के उपरांत अभी तक जम्मू और कश्मीर के महान लेखकों में से समस्त विधाओं में प्रख्यात हिंदी भाषा के विद्वानों को कितने साहित्य अकादमी पुरस्कार मिले हैं और कितने साहित्यकारों ने हिंदी भाषा में विश्व कीर्तिमान स्थापित किए हैं?
जबकि हिंदी भाषा पर आधारित आयोजित अकादमी कार्यक्रमों में अकादमी के आदरणीय अधिकारी मंचासीन विद्वानों के नामों की घोषणा करते समय उनके नामों से पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार अथवा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित शब्दों का प्रयोग करते हैं जो वास्तव में अर्ध सत्य होता है। चूंकि उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार अथवा पद्मश्री पुरस्कार तो प्राप्त हुआ होता है परन्तु वह सम्मान हिंदी भाषा में नहीं बल्कि कश्मीरी या डोगरी भाषा में मिला होता है।
उल्लेखनीय यह है कि उक्त अर्ध सत्य से श्रोता भ्रमित होते हैं और उसी सिक्के का दूसरा दुर्भाग्यपूर्ण सत्य यह भी है कि मंचासीन विद्वान भी उसका सशक्त स्पष्टीकरण नहीं देते और चुपचाप मंच पर शोभायमान हो जाते हैं। यहॉं तक कि वह अपने अध्यक्षीय भाषण में भी उक्त सत्य पर अपना मुंह नहीं खोलते। हिन्दी भाषा का दुर्भाग्य यह भी है कि सत्यमेव जयते पर अभिनंदन करने वाले प्रशासनिक सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी भी अज्ञानतावश चुप्पी नहीं तोड़ते हैं। चूंकि उन्हें तो सरकार द्वारा निर्धारित प्रशासनिक सेवाओं के निष्ठापूर्वक दायित्व का निर्वहन नहीं निभाने पर भी पूरा वेतन मिल ही जाता है। जबकि वह स्वयं भी जानते हैं कि अर्ध सत्य बोलना और पूर्ण सत्य को छुपाना भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।
तो आदरणीय सदाचारी सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी कृपया स्पष्ट बताइए कि उपरोक्त सत्य को उजागर करते हुए माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी से न्याय मॉंग कर क्या मैंने अपराध किया है? क्या साहित्यिक चक्रव्यूह में असत्य अर्थात अर्ध सत्य को दर्शाना भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आता? क्या अकादमी द्वारा प्रदत्त मंच पर बुक अनेकों पत्रवाचकों द्वारा पढ़े जा रहे विभिन्न पत्रों में उपरोक्त सत्य पर मौन धारण करना भ्रष्टाचार नहीं है?
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय लेखक व राष्ट्रीय पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।
Grievance Status for registration number : PRSEC/E/2023/0047423
Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
13/11/2023
Received By Ministry/Department
President's Secretariat
Grievance Description
क्या साहित्यिक चक्रव्यूह में अर्धसत्य को दर्शाना भ्रष्टाचार नहीं है आलेख जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सदाचारी सचिव आदरणीय श्री भारत सिंह मन्हास जी का मैं हृदय तल से सम्मान करता हूॅं परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि मैं उनके नाक के नीचे हो रहे भ्रष्टाचार पर ऊंगली न उठाऊं चूंकि राष्ट्रहित में जागरूक नागरिक होने के आधार पर उपरोक्त प्रशासनिक महानुभाव जी से बिंदास प्रश्न पूछना एवं भ्रष्टाचार में लिप्त प्रत्येक बिंदु पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी सहित विश्वगुरू की ओर अग्रसर हो रहे अपने राष्ट्र के समक्ष सशक्त रूप से प्रस्तुत करना मेरा मौलिक कर्तव्य ही नहीं बल्कि न्यायिक अधिकार भी है क्योंकि बाल्यकाल से मेरे जीवन का उद्देश्य ही संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों और मौलिक अधिकारों को सार्वजनिक करना है हालॉंकि दुर्भाग्यवश कांग्रेस नीत सरकार में मेरे एसएसबी विभाग के तत्कालीन भ्रष्टाचारी एवं क्रूर अमानवीय वृत्ति के अधिकारियों ने मेरी राष्ट्रभक्ति को राष्ट्रद्रोह की संज्ञा देकर मुझे विभिन्न रूपों से प्रताड़ित किया था जिससे वर्तमान भाजपा नीत भारत सरकार के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के सशक्त नेतृत्व में अब एसएसबी विभाग माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय की खंडपीठ में शपथपत्र दाखिल कर मुकर चुका है परन्तु सौभाग्यवश विभिन्न मौलिक अधिकारों पर आधारित मेरी विभिन्न याचिकाएं अभी भी माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में विचाराधीन हैं परन्तु यहॉं बात संदिग्ध साहित्यिक चक्रव्यूह में व्याप्त चरम भ्रष्टाचार पर की जा रही है जिसमें वर्णनीय है कि दशकों से जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी में तू मेरी पीठ थपथपा प्रतिउत्तर में मैं आपकी पीठ थपथपाऊंगा का भ्रष्ट खेल खेला जा रहा है और उक्त असंतोषजनक साहित्यिक चक्रव्यूह पर प्रश्न उठने स्वाभाविक भी हैं ऐसे में सदाचारी प्रशासनिक अधिकारी आदरणीय श्री भारत सिंह मन्हास जी का मौलिक कर्तव्य बनता है कि वह अपने सचिव पद का निर्वहन सत्यनिष्ठा से करें और अपने खुले चक्षुओं द्वारा आयोजित कार्यक्रमों पर दृष्टि रखते हुए गहन अध्ययन करें मेरा दावा है कि आदरणीय सचिव जी को सत्य के दर्शन इस बात पर हो जाएंगे कि स्वतंत्रता के उपरांत अभी तक जम्मू और कश्मीर के महान लेखकों में से समस्त विधाओं में प्रख्यात हिंदी भाषा के विद्वानों को कितने साहित्य अकादमी पुरस्कार मिले हैं और कितने साहित्यकारों ने हिंदी भाषा में विश्व कीर्तिमान स्थापित किए हैं जबकि हिंदी भाषा पर आधारित आयोजित अकादमी कार्यक्रमों में अकादमी के आदरणीय अधिकारी मंचासीन विद्वानों के नामों से पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार अथवा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित शब्दों का प्रयोग करते हैं जो वास्तव में अर्ध सत्य होता है चूंकि उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार अथवा पद्मश्री पुरस्कार तो प्राप्त हुआ होता है परन्तु वह सम्मान हिंदी भाषा में नहीं बल्कि कश्मीरी या डोगरी भाषा में मिला होता है उल्लेखनीय है कि उक्त अर्ध सत्य से श्रोता भ्रमित होते हैं और उसी सिक्के का दूसरा दुर्भाग्यपूर्ण सत्य यह भी है कि मंचासीन विद्वान भी उसका सशक्त स्पष्टीकरण नहीं देते और चुपचाप मंच पर शोभायमान हो जाते हैं यहॉं तक कि वह अपने अध्यक्षीय भाषण में भी उक्त सत्य पर अपना मुंह नहीं खोलते हिन्दी भाषा का दुर्भाग्य यह भी है कि सत्यमेव जयते पर अभिनंदन करने वाले सचिव जी भी अज्ञानतावश चुप्पी नहीं तोड़ते हैं चूंकि उन्हें तो प्रशासनिक सेवाओं का निष्ठापूर्वक दायित्व नहीं निभाने पर भी पूरा वेतन मिल जाता है जबकि वह स्वयं जानते हैं कि अर्ध सत्य बोलना और पूर्ण सत्य को छुपाना भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है तो आदरणीय सदाचारी सचिव श्री भारत सिंह मन्हास जी कृपया स्पष्ट बताइए कि उपरोक्त सत्य को उजागर करते हुए माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी से न्याय मॉंग कर क्या मैंने अपराध किया है क्या साहित्यिक चक्रव्यूह में असत्य अर्थात अर्ध सत्य को दर्शाना भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आता क्या अकादमी द्वारा प्रदत्त मंच पर बुक पत्रवाचकों द्वारा पढ़े जा रहे पत्रों में उपरोक्त सत्य पर मौन धारण करना भ्रष्टाचार नहीं है प्रार्थी इंदु भूषण बाली वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय लेखक व भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
Current Status
Grievance received
Date of Action
13/11/2023
Officer Concerns To
Forwarded to
President's Secretariat
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