जब तक याचिकाकर्ता अपराधी को दण्डित करने के लिए कठोरता से आग्रह नहीं करते, तब तक माननीय न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश भी अपराधी को कठोर दण्ड से दण्डित नहीं करते हैं। उदाहरणार्थ क्रूरतम से क्रूरतम अपराधी को भी माननीय न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश अपनी इच्छा से मृत्यु दण्ड के स्थान पर उम्रकैद के दण्ड को प्राथमिकता देते हैं। क्योंकि वह नहीं चाहते कि किसी के भी प्राण उनकी कलम से जाएं। परन्तु जब याचिकाकर्ता अपराधी के लिए मृत्युदंड की पुरजोर मांग करता है तो माननीय न्यायाधीश अपराधी को मृत्युदंड देते हैं। जिसमें वह लिखते हैं कि याचिकाकर्ता और संवैधानिक न्याय की मांग के अंतर्गत मृत्युदंड दिया जाता है।
कहने का अभिप्राय यह है कि यदि याचिकाकर्ता निडरता से सामना करेंगे तो ही समस्या का सम्पूर्ण समाधान होगा। उल्लेखनीय है कि समस्या तो समस्या ही होती है। वह समस्या चाहे कश्मीर पुनर्वास से संबंधित हो, न्यायपालिका के संबंधित हो या कल्चरल अकादमी जम्मू से संबंधित हो। स्पष्ट है कि प्रत्येक ओर मनमर्जी तब तक चलती है, जब तक पीड़ित उसका सशक्त आत्मविश्वास से सामना नहीं करते। यह बात मैं दावे से इस आधार पर कहने में सक्षम हूॅं क्योंकि मैं 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध का विस्थापित, माननीय न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों से पीड़ित और कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू के वर्तमान मुख्य सम्पादक आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी की मनमानी अर्थात "मनमर्जी" से भी प्रताड़ित हूॅं। जिनके समाधान हेतु मैं निडरता से सामना करने की ठान चुका हूॅं।
सर्वविदित है कि युद्ध प्रायः हानिकारक होते हैं। परन्तु अपनी अस्मिता एवं मौलिक अधिकारों के लिए युगों-युगों से युक्त होते आ रहे हैं। जिसके लिए लोकप्रिय कहावत "प्राण जाए पर वचन न जाए" वर्षों से चली आ रही है। जिसके आधार पर कड़वा सच यह है कि मानव अपने आत्मसम्मान हेतु प्राणों को न्यौछावर करना श्रेष्ठ मानता है। अर्थात अपने व्यक्तित्व की सुरक्षा हेतु प्रत्येक व्यक्ति को हर समस्या के समाधान हेतु एक न एक दिन निडरता से सामना करना ही पड़ेगा।
जैसे कि जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू में आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी की मनमानी अर्थात मनमर्जी के चलते वर्तमान सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के कर कमलों से केंद्र सरकार द्वारा आरंभ किया गया "पारदर्शी भारत अभियान" घुटने टेक रहा है। जहां किसी भी कार्यक्रम को सार्वजनिक नहीं किया जा रहा। वह कार्यक्रम चाहे "कवि सम्मेलन" हो या "लेखक से मिलिए" कार्यक्रम हो यह तय है कि "मनमानी" आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी की ही चलेगी।
क्योंकि किसी भी कार्यक्रम का क्राइटेरिया अर्थात कसौटी अर्थात मापदंड निर्धारित नहीं किया गया है। जिसको बनाने का मौलिक कर्तव्य भी आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी एवं आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी का है। जिसकी रुपरेखा तैयार कर कल्चरल अकादमी जम्मू को अकादमी के अध्यक्ष अर्थात माननीय उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा जी से अनुमोदन अर्थात स्वीकृति प्राप्त करनी चाहिए और उसके उपरांत उक्त स्वीकृति को "पारदर्शी भारत अभियान" के अंतर्गत जन-जन तक पहुंचाने के लिए सार्वजनिक करना चाहिए। जिसे डॉ रत्न बसोत्रा जी कभी नहीं करते और न ही उन्हें माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का कोई डर है। हालांकि उपरोक्त जानकारी देना डॉ रत्न बसोत्रा जी का मौलिक कर्तव्य है और लेखक समुदाय का जानकारी प्राप्त करना मौलिक अधिकार है।
जिस अधिकार को प्राप्त करने के लिए मैं किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तन मन और धन से सशक्त खड़ा हूॅं। जिसके लिए भले ही उपरोक्त समस्याओं के सम्पूर्ण समाधान हेतु मुझे जेलयात्रा ही क्यों न करनी पड़े? क्योंकि आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी मुझे कवि सम्मेलन में बुक करने, मंचासीन करने और लेखक से मिलिए कार्यक्रम में मेरी समस्त विशेष उपलब्धियों को सिरे से खारिज करते हुए वंचित कर देते हैं और अपनी इच्छाओं को प्राथमिकता देते हैं। क्योंकि इन सब का कोई कायदा कानून नहीं है अर्थात "अंधा पीछे कुत्ता खाए" कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही है।
जिनपर शिकंजा कसने हेतु मेरा मानना है कि अपने संवैधानिक स्वाभिमान एवं प्रतिष्ठा हेतु मौलिक कर्तव्यों का दायित्वबोध हो या मौलिक अधिकारों को प्राप्त करने का प्रश्न हो "आहुतियां" देनी ही पड़ती हैं और जो "आहुतियां" देने से डर गया समझ लो वह मृत्यु से पहले जीवित रहते हुए ही मर गया। जबकि मरे हुओं में अर्थात चुप रहने वालों की सूची में मैं अपना नाम कदापि नहीं लिखवाना चाहता। चूंकि मृत्यु अटल है और खाली हाथ मृत्युलोक में आए थे और खाली हाथ ही जाना सुनिश्चित है।
अतः मेरी भीष्म प्रतिज्ञा है कि सामने आई प्रत्येक छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी समस्या के समाधान हेतु चुनौतीपूर्ण विरोध करते हुए जीवनभर निडरता से सामना करता रहूंगा। सम्माननीयों ॐ शांति ॐ