नियति के आलौकिक खेल अद्भुत व अद्वितीय होते हैं !
(आलेख)
जब नियति के आलौकिक खेल अद्भुत व अद्वितीय होते हैं तो मैं भी नियति का ही एक तुच्छ सा प्राणी मात्र हूॅं जो विधाता की विधि द्वारा आलेखित एक अल्प सा अलौकिक प्रसंग हूॅं और अपने अनेकों पूर्व जन्मों के कर्मों, कुकर्मों और सुकर्मो का फल भोग रहा था और अब भी धैर्यपूर्वक भोग रहा हूॅं। सत्य तो यह है कि सुनिश्चित अभी यह भी नहीं है कि मुझे आगे कब तक कर्मों के भोग लगाने होंगे? चूॅंकि भविष्य की गर्भ का मूल्यांकन करने में आज तक ज्ञान, प्रज्ञान और विज्ञान भी सफल नहीं हो सका है।
जैसे मेरी यथार्थ पर आधारित मंगलमय पैनी पकड़ पर सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, मनोविज्ञान के मनोवैज्ञानिकों सहित माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों की विद्वता घास चरने जा चुकी है और उनकी भ्रष्टाचार में लिप्त निर्लज्जता के फलस्वरूप मेरा अनमोल जीवन कलॅंकित होकर कौड़ियों के भाव बिकते हुए परिवार सहित सम्पूर्ण नष्ट हो रहा है। जिस पर उपरोक्त न्यायालय के वर्तमान माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री नोंगमेईकापम कोटेश्वर सिंह जी एवं भारत के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी की इतनी भी औकात नहीं है कि वह "अंधेर नगरी चौपट राजा" के दृष्टिकोण को लात मारकर द्वापर युग के हस्तिनापुर राजसिंहासन पर बैठे "अंधे राजा धृतराष्ट्र जी" की भूमिका का अनुसरण न करें। क्योंकि उन्हें संविधान ने ईश्वरीय शक्तियों से मालामाल कर रखा है। जिसके आधार पर उन्हें कृत्रिम प्रदर्शन त्याग कर संविधान के प्रति अपने पारदर्शी मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करना चाहिए। विशेषकर माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री नोंगमेईकापम कोटेश्वर सिंह जी को चाहिए कि वह अल्प विलम्ब भी न करते हुए मेरी लम्बित पड़ी पुनर्विचार याचिका अंक 81/2022 की विधिवत सुनवाई कर यथाशीघ्र सुलझाऍं। ताकि मैं और मेरा परिवार संवैधानिक फल का स्वाद चख सकें।
क्योंकि सौभाग्यवश संविधान पर मेरा अटल विश्वास है कि मेरे संचित एवं प्रारब्ध शुभ कर्मों के जागृत होते ही मेरा उद्धार अवश्य सुनिश्चित होगा और कोई भी मेरे साथ संवैधानिक विश्वासघात नहीं कर सकेगा। चूॅंकि भारत सरकार का सॅंचालन योगियों के कर कमलों में है, जिन्होंने अपना सर्वस्व राष्ट्र के प्रति समर्पित कर रखा है। उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं राष्ट्र की माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी भी उन विभूतियों में से एक हैं। उल्लेखनीय है कि भारत के प्रथम व्यक्ति के आधार पर माननीय महामहिम श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी संवैधानिक सर्वोच्च पद के सिंहासन पर राष्ट्रपति के रूप में विराजमान हैं। जो मेरे लिखे आलेखों पर विचार करने के लिए भारत एवं भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर सरकार को अग्रेषित कर रहे हैं। यह उनका दायित्व भी बनता है कि वह उक्त आलेखों को माननीय उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय में विधिक कार्यवाही हेतु भी भेजती हैं।
ऐसे में मेरी असाधारण, अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय एवं अद्वितीय योग्यता को अधिक देर तक संवैधानिक न्यायिक भ्रष्टाचार की लीपापोती की चरम प्रकाष्ठा के आधार पर माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीश कुटिलता एवं दुर्भावनावश टाल नहीं सकते और न ही मेरी याचिकाओं के साक्ष्यों की गुणवत्ता के गुणागुणों को निरस्त करने में सक्षम हैं। इसलिए इन विकराल परिस्थितियों में अब वे कुटिलता के अंतर्गत जानबूझकर देरी भी नहीं कर सकते हैं।
चूॅंकि वे नहीं चाहेंगे कि उनके न्यायिक भ्रष्टाचार के साथ-साथ न्यायिक आतंकवाद भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सार्वभौमिक स्पष्ट दिखाई दे। जिससे सम्पूर्ण भारत की न्यायपालिका के अस्तित्व के साथ-साथ भारतीयों की भारतीयता और माननीय न्यायाधीशों का स्वाभिमान भी खतरे में पड़कर अंतरराष्ट्रीय न्यायिक कटघरे में खड़ा हो जाए। क्योंकि दोनों की निष्ठा, निष्पक्षता और प्रभुता महत्वपूर्ण है। महत्वपूर्ण सत्यता की कसौटी पर यह भी सिद्ध हो चुका है कि सत्तारूढ़ भाजपा नीत सरकार के सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के केबिनेट द्वारा सशक्त किए गए दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिनियम 1995 के नियम 1996 को संशोधित करने के बावजूद उसकी धारा 47 का उल्लंघन करने का दुस्साहस माननीय न्यायाधीश भी नहीं कर सकते हैं। क्योंकि माननीय उच्चतम न्यायालय भी उक्त अधिनियम को मानते हुए कई निर्णय दे चुकी है।
अतः अन्ततः माननीय न्यायाधीशों का कलॅंकित खेल नियति के आलौकिक, अद्भुत एवं अद्वितीय खेल की भॉंति अब अधिक समय तक नहीं चलेगा और न्यायपालिका की गरिमा एवं अपने स्वाभिमान की सुरक्षा हेतु एक न एक दिन यही माननीय विद्वान न्यायाधीश अपनी अंतरात्मा की चीखों के बल पर मुझे "धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का" के मुहावरे से ऊपर उठकर ससम्मान सम्पूर्ण न्याय देंगे। ताकि गंगा मईया में अपनी अस्थियॉं विसर्जित होने से पूर्व मैं भी जीवन के अंतिम पड़ाव पर अपनी पतिव्रता अर्धांगिनी श्रीमती सुशीला बाली के साथ सपरिवार वृंदावन में जाकर शॉंति से श्रीकृष्ण जी की मंत्रमुग्ध बंसी सुन सकूॅं। ॐ शान्ति ॐ। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर
Grievance Status for registration number : PRSEC/E/2024/0002035
Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
12/01/2024
Received By Ministry/Department
President's Secretariat
Grievance Description
नियति के आलौकिक खेल अद्भुत व अद्वितीय होते हैं आलेख जब नियति के आलौकिक खेल अद्भुत व अद्वितीय होते हैं तो मैं भी नियति का ही एक तुच्छ सा प्राणी मात्र हूॅं जो विधाता की विधि द्वारा आलेखित एक अल्प सा अलौकिक प्रसंग हूॅं और अपने अनेकों पूर्व जन्मों के कर्मों कुकर्मों और सुकर्मो का फल भोग रहा था और मुझे कब तक कर्मों के भोग लगाने होंगे चूॅंकि भविष्य की गर्भ का मूल्यांकन करने में आज तक ज्ञान प्रज्ञान और विज्ञान भी सफल नहीं हो सका है जैसे मेरी यथार्थ पर आधारित मंगलमय पैनी पकड़ पर सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक मनोविज्ञान के मनोवैज्ञानिकों सहित माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों की विद्वता घास चरने जा चुकी है और उनकी भ्रष्टाचार में लिप्त निर्लज्जता के फलस्वरूप मेरा अनमोल जीवन कलॅंकित होकर कौड़ियों के भाव बिकते हुए परिवार सहित सम्पूर्ण नष्ट हो रहा है जिस पर उपरोक्त न्यायालय के वर्तमान माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री नोंगमेईकापम कोटेश्वर सिंह जी एवं भारत के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी की इतनी भी औकात नहीं है कि वह अंधेर नगरी चौपट राजा और द्वापर युग के हस्तिनापुर राजसिंहासन पर बैठे अंधे राजा धृतराष्ट्र जी की भूमिका का अनुसरण न करें क्योंकि उन्हें संविधान ने ईश्वरीय शक्तियों से मालामाल कर रखा है जिसके आधार पर उन्हें कृत्रिम प्रदर्शन त्याग कर संविधान के प्रति अपने पारदर्शी मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करना चाहिए विशेषकर माननीय मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री नोंगमेईकापम कोटेश्वर सिंह जी को चाहिए कि वह अल्प विलम्ब भी न करते हुए मेरी लम्बित पड़ी पुनर्विचार याचिका अंक 81 2022 की विधिवत सुनवाई कर यथाशीघ्र सुलझाऍं ताकि मैं और मेरा परिवार संवैधानिक फल का स्वाद चख सकें क्योंकि सौभाग्यवश संविधान पर मेरा अटल विश्वास है कि मेरे संचित एवं प्रारब्ध शुभ कर्मों के जागृत होते ही मेरा उद्धार अवश्य होगा और कोई भी मेरे साथ संवैधानिक विश्वासघात नहीं कर सकेगा चूॅंकि भारत सरकार का सॅंचालन योगियों के कर कमलों में है जिन्होंने अपना सर्वस्व राष्ट्र के प्रति समर्पित कर रखा है उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं राष्ट्र की माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी भी उन विभूतियों में से एक हैं जो मेरे लिखे आलेखों को केंद्र व जम्मू और कश्मीर सरकार को अग्रेषित कर रहे हैं वह उक्त आलेखों को माननीय उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय में विधिक कार्यवाही हेतु भी भेजती हैं ऐसे में मेरी असाधारण अद्भुत अविश्वसनीय अकल्पनीय एवं अद्वितीय योग्यता को अधिक देर तक संवैधानिक न्यायिक भ्रष्टाचार की लीपापोती की चरम प्रकाष्ठा के आधार पर माननीय जम्मू उच्च न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीश कुटिलता एवं दुर्भावनावश टाल नहीं सकते और न ही मेरी याचिकाओं के साक्ष्यों की गुणवत्ता के गुणागुणों को निरस्त करने में सक्षम हैं इसलिए इन विकराल परिस्थितियों में अब वे जानबूझकर देरी भी नहीं कर सकते हैं चूॅंकि वे नहीं चाहेंगे कि उनके न्यायिक भ्रष्टाचार के साथ साथ न्यायिक आतंकवाद भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सार्वभौमिक स्पष्ट दिखाई दे जिससे न्यायपालिका क का अस्तित्व भारतीयता और माननीय न्यायाधीशों का स्वाभिमान भी खतरे में पड़कर अंतरराष्ट्रीय न्यायिक कटघरे में खड़ा हो जाए महत्वपूर्ण सत्यता की कसौटी पर यह भी सिद्ध हो चुका है कि सत्तारूढ़ भाजपा नीत सरकार के सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के केबिनेट द्वारा सशक्त किए गए दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिनियम 1995 के नियम 1996 को संशोधित करने के बावजूद उसकी धारा 47 का उल्लंघन करने का दुस्साहस माननीय न्यायाधीश भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि माननीय उच्चतम न्यायालय भी उक्त अधिनियम को मानते हुए कई निर्णय दे चुकी है अतः अन्ततः माननीय न्यायाधीशों का कलॅंकित खेल नियति के आलौकिक, अद्भुत एवं अद्वितीय खेल की भॉंति अब अधिक समय तक नहीं चलेगा और न्यायपालिका की गरिमा एवं अपने स्वाभिमान की सुरक्षा हेतु एक न एक दिन यही माननीय विद्वान न्यायाधीश अपनी अंतरात्मा की चीखों के बल पर मुझे धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का के मुहावरे से ऊपर उठकर ससम्मान सम्पूर्ण न्याय देंगे ताकि गंगा मईया में अपनी अस्थियॉं विसर्जित होने से पूर्व मैं भी जीवन के अंतिम पड़ाव पर अपनी पतिव्रता अर्धांगिनी श्रीमती सुशीला बाली के साथ सपरिवार वृंदावन में जाकर शॉंति से श्रीकृष्ण जी की मंत्रमुग्ध बंसी सुन सकूॅं सम्माननीयों जय हिन्द प्रार्थी डॉ इंदु भूषण बाली ज्यौड़ियॉं
Current Status
Grievance received
Date of Action
12/01/2024
Officer Concerns To
Forwarded to
President's Secretariat
Officer Name
Organisation name
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