खाली दिमाग शैतान का घर होता है। यह कहावत संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके कर्ताधर्ताओं पर पूर्ण रूप से चरितार्थ होती है। क्योंकि वह प्रत्येक दिन को किसी न किसी विशेष दिवस का रूप देकर अपने लिए पिस्ता, बादाम और काजू खाने का ढंग तलाशते हैं और उक्त सामग्री खाकर भूल जाते हैं कि उक्त दिवस का लाभ क्या किसी लाभार्थी को हुआ भी है या नहीं हुआ? उनको उससे कुछ भी लेना देना नहीं है। बस अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता।
इसी संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र संघ अपने और अपने चाहने वालों के लिए नित्य नई योजनाएं बनाते रहते हैं और लोगों द्वारा कड़े परिश्रम से कमाए धन से मौज मस्ती करते रहते हैं। जैसे गरीबों के धन से मौज मस्ती करना उनका मौलिक अधिकार है। जिसके आधार पर लागू योजनाओं में कभी वैश्विक परिवार दिवस मनाया जाता है तो कभी विश्व युद्ध अनाथ दिवस मनाया जाता है। जिनकी सच्चाई यह होती है कि वैश्विक परिवार की तो छोड़ें किसी दूरस्थ क्षेत्र के पिछड़े गांव के एक परिवार की भी सुध नहीं ली जाती है और यही हश्र विश्व युद्ध अनाथ दिवस का भी होता है। इसके अलावा बात विश्व हिंदी दिवस की करें या अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की कर लें। सब का ऐसा ही बुरा हाल है। क्योंकि शुद्ध हिंदी भाषा को लेकर कोई गंभीर नहीं है और अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर कोई यह तक सुनने को तैयार नहीं है कि अंतड़ियों के तपेदिक रोगी को मानसिक औषधि क्यों खिलाए जा रहे हैं?
ऊपर से 10 दिसम्बर को अर्थात अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर यदि कोई पीड़ित प्रताड़ित अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के किसी कार्यकर्ता से पूछ ले कि क्या आप हमारी सहायता करेंगे? तो वह उस प्रार्थी को बकरा समझकर बिना नमक मिर्च लगाए ही डकारना चाहता है। इसके अलावा सच तो यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके कार्यकर्ता भी यह नहीं बता सकते कि किसी कर्मचारी मानव की अस्थाई सेवा की परिवीक्षा अवधि को समाप्त कर किस मानसिक औषधि से स्थाई किया जा सकता है? तो वह भी उक्त पीड़ित मानव को पागल कहकर अपना पीछा छुड़ाने में ही अपना भला मानता है। यह निष्कर्ष अंर्तराष्ट्रीय दिवसों का अंततः निकलता है।
ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय दिवसों की सूची में एक "अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस" भी है। जिसका कड़वा सच यह है कि "हम दो और हमारे दो" के भारतीय स्लोगन पर आधारित छोटा परिवार सप्ताह भर भी शांति से नहीं चल पा रहा है और कलह क्लेश घर घर की कहानी बन चुका है। जिसे भूलकर संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके कार्यकर्ता विश्व शांति दिवस मनाने चले हैं? अंतरराष्ट्रीय पागल कहीं के स्वार्थी संयुक्त राष्ट्र संघ के चाटुकार कार्यकर्ता?
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।