विज्ञान कहता है कि मानव सृष्टि का आधार नर और नारी है। इसलिए शास्त्रों में भी नर को नारायण और नारी को नारायणी कहा गया है। कहने का अभिप्राय यह है कि हम सब अपनी-अपनी माताश्री के एक-एक अंडाणु और पिताश्री के एक-एक शुक्राणु का परिणाम मात्र हैं। क्योंकि विज्ञान ने इतना विकास कर लिया है कि अब विशेषज्ञ नर के एक शुक्राणु और नारी के एक अंडाणु का एक कृत्रिम नली में निषेचन कर शिशु को जन्म दे सकने में सक्षम हो चुके हैं। अर्थात अब सन्तान उत्पत्ति हेतु नर और नारी का प्राकृतिक मिलन भी आवश्यक नहीं रहा है।
जिसका अर्थ यह है कि मातृत्व की देवी स्वरूप नारी प्रसवपीड़ा से बच गई और शिशु गर्भ के मलमूत्र जैसे नौ माह के नर्क से बचते हुए माता-पिता के ऋण से भी स्वयं मुक्त हो चुका है। संभवतः उक्त शिशु की उत्पत्ति योनि द्वार से नहीं हुई है। इसलिए शास्त्रों अनुसार निर्धारित चौरासी लाख योनियों में से एक योनि कम कर देनी चाहिए। चूॅंकि कृत्रिम नली से मानव उत्पत्ति प्रमाणित करती है कि उसका जन्म किसी योनि द्वार से नहीं हुआ है।
उल्लेखनीय है कि उत्पत्ति के उपरॉंत अंत भी होता ही है। चूॅंकि गीता का उपदेश है कि जिसका जन्म हुआ उसका मरण भी निश्चित है अर्थात जो बना वह टूटा भी अवश्य है। शास्त्रों में भी यह बताया गया है कि मृत्यु अटल है अर्थात आज नहीं तो कल प्राणी का मरना तय है अर्थात यह सुनिश्चित है कि मृत्युलोक में हम स्थाई नहीं हैं बल्कि हम अस्थाई रूप से यहॉं किरायेदार हैं और हमारे किराय के उक्त मकान रूपी चोले का मूल स्वामी परमपिता परमेश्वर हैं जो जब चाहें हमें निष्कासित कर सकते हैं अर्थात हमें उक्त बन्धन से मुक्त कर सकते हैं। जिस पर प्रश्न यह खड़ा हो जाता है कि यह सब जानते हुए भी हम अकड़ किस बात पर रहे हैं? जबकि अकड़ एक ऐसा अवगुण है जो मृत्यु उपरान्त मृत शरीर में उत्पन्न होता है। जिसका सार्वभौमिक कटुसत्य यह है कि उक्त अवगुण के पश्चात परायों एवं अपनों द्वारा मिलकर राम नाम सत्य की रूदन ध्वनि से अंतिम यात्रा आरम्भ कर दी जाती है।
सर्वविदित है कि अंतिम यात्रा एक रहस्यमय ऐसा अध्याय है जिसके संबंध में कोई नहीं जानता है। चूॅंकि आज तक किसी भी विद्वान साहित्यकार ने उक्त यात्रा का वृतांत अपनी तीक्ष्ण बुद्धि व पैनी लेखनी द्वारा नहीं लिखा है और न ही उक्त यात्रा लेखन पर किसी प्रचंड साहित्यकार को साहित्य अकादमी पुरस्कार अथवा पद्मश्री पुरस्कार मिला है। क्योंकि जिसने भी यह यात्रा की वह पुनः लौट कर कभी यहॉं नहीं आया। इसलिए यह पहेली युगों-युगों से पहेली ही बनी हुई है और विज्ञान भी इस पर चुप्पी साधे अक्षम सिद्ध हो चुका है। यह बात भिन्न है कि कतिपय तथाकथित पंडित गरुड़ पुराण की कथा सुना कर अपनी जीविका चला रहे हैं जिन्हें दुर्भाग्यवश शुद्ध हिन्दी पढ़नी व बोलनी भी नहीं आती।
अब प्रश्न अंतिम यात्रा का है जिस यात्रा से पुनः लौटा यात्री सार्थक उत्तर देने के लिए यहॉं कोई विराजमान अथवा उपस्थित नहीं है। तो उदाहरण के रूप में उक्त अंतिम यात्रा का उल्लेख वर्तमान रेल मंत्रालय के जनरल डिब्बे से करते हैं। चूॅंकि अंतिम यात्रा के यान हेतु अभी तक कोई ऐसी खिड़की नहीं खुली है जिसमें स्वयं अथवा अपने धनवान बच्चों द्वारा बैठने अथवा सोने के लिए वातानुकूलित सीट आरक्षित की जा सके। इसलिए वर्तमान अंतिम यात्रा का सर्वोत्तम उदाहरण सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की कुशल सरकार के नेतृत्व में अग्रसर भारतीय रेलवे के जनसाधारण डिब्बे से अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता है। इसलिए समस्त भ्रष्टाचारियों एवं गर्भ में बेटियों के हत्यारे डॉक्टरों को एक बार मृत्युलोक के उपरोक्त डिब्बे में यात्रा का मात्र एक बार अनुभव अवश्य करना चाहिए।
जिस यात्रा को करने के पश्चात मेरा दावा है कि भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार से एवं गर्भ में बेटियों की हत्या करने वाले हत्यारे व्यवसायिक चिकित्सक (डॉक्टरों) भ्रुणहत्या करने से विमुक्त हो जाएंगे अर्थात कदापि पाप न करने की प्रतिज्ञा करते हुए मानवीय मूल्यों पर ली गई आरम्भिक शपथ "हिपोक्रीत्ज" का सम्पूर्ण पालन करने लगेंगे। सम्माननीयों जय हिन्द
स्वरचित
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौडियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर