मृत्युदंड के अपराधी को मृत्यु से कुछ समय पूर्व काल कोठरी में बंद कर दिया जाता है। सुना है कि वहां ढंग से लेटा, खाया और आराम भी नहीं किया जा सकता। जहां अपराधी को सूर्य का प्रकाश और हवा इत्यादि भी उपलब्ध नहीं होता। वह एक-एक क्षण में मृत्यु से पूर्व असंख्य बार मृत्यु को प्राप्त करता है। यही कारण है कि अपराधी फांसी से पूर्व अपने आपको स्वयं फांसी लगा लेता है। जिसका उदहारण निर्भयाकांड के अपराधियों में से एक अपराधी द्वारा मृत्यु की आगोश में सोने के लिए स्वयं को फांसी लगाने का समाचार प्रकाशित हुआ था। उल्लेखनीय है कि मृत्यु के डर से भयग्रस्त अपराधी पल-पल मरने के डर से स्वयं को पहले ही मार डालता है या मार डालने का प्रयास करता है। क्योंकि उक्त अपराधियों का कोई लक्ष्य नहीं होता। जबकि क्रांतिकारियों की अमर गाथाएं तो फांसी पर लटकने से पहले उनके वजन अर्थात भार बढ़ने के कीर्तिमान स्थापित कर चुकी हैं। जिनमें असंख्य गणमान्य बलिदानियों में क्रांतिकारी भगतसिंह जी भी एक हैं।
राष्ट्र प्रायः बलिदान मांगता आया है और राष्ट्रहित में राष्ट्रभक्त बलिदान देते आए हैं। यूं भी भारत ऋषियों-मुनियों, साधु-संतों और गुरूओं का देश है। जिनमें से क्रांतिकारी पुजनीय गुरु गोविंद सिंह जी भी एक हैं। जिन्होंने अपने पिताश्री को भारतसत्य हेतु सत्यम शिवम सुंदरम की मान्यताओं पर चलते हुए बाल्यावस्था में अपने पिताश्री को बलिदान होने के लिए प्रेरित किया और उसके उपरांत अपने हृदय के टुकड़ों को देश पर न्योछावर कर दिए। जिसके साक्षी चमकौर युद्ध और दीवारें भी बनी हैं। ऐसे गुरुओं को शत शत नमन जिन्होंने कहा था कि "चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊ, गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ, सवा लाख से एक लड़ाऊ, तभी गोबिंद सिंह नाम कहाउॅं"। जिनके बच्चों के राष्ट्रीय बलिदान को अब 26 दिसम्बर "वीर बाल दिवस" के रूप में पूरा भारत मनाती है। जिसका श्रेय वर्तमान युगपुरुष सशक्त एवं साहसी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और उनकी सरकार को जाता है। जिसके लिए वह अभिनंदन एवं शुभकामनाओं के पात्र हैं।
ऐसी प्रेरणाओं से प्रभावित होकर ही मैं निजी स्वार्थ त्यागकर राष्ट्रहित में राष्ट्रपथ पर अग्रसर हुआ था। जिसका गला घोंटने के लिए स्वार्थियों ने मुझे तो पीड़ित, प्रताड़ित एवं उत्पीड़ित किया ही था। परन्तु दुर्भाग्यवश उन स्वार्थियों एवं भ्रष्टाचारियों ने मेरी देवी स्वरूप धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली को भी लपेटे में लेते हुए बदनाम कर दिया था। जिसका दोष मात्र इतना था कि वह दूध पीते बच्चे को छाती से लगाकर बसों और मेटाडोरों में धक्के खाते हुए मेरे विभागीय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों से मेरे प्राणों की भीख मांगती थी। पागलखानों में मेरा उपचार करवाती थी। वे सुहागिन रहना चाहती थी। जिसका दंड मेरे साथ-साथ आज भी वह भोग रही है। यही नहीं मेरी उक्त राष्ट्रभक्ति की आग की आंच के सेंक से मेरे बच्चे भी अछूते नहीं रह सके।
इसी के चलते निरंतर प्रताड़ना से बचने की चिंताओं के कारण सर्वप्रथम मैं अंतरराष्ट्रीय बीमारी "अंतड़ियों की क्षय" से रोगग्रस्त हुआ था और सम्पूर्ण भारत में में मुझे सरकार की ओर से क्षय रोग निवारक औषधि नहीं दी गई थी और अपने विभागीय अधिकारियों द्वारा निरंतर वेतन न देने के आधार पर बाज़ार से तपेदिक की बहुमूल्य दवाइयां खरीदने में अक्षम था। उसके उपरांत निरंतर चिंताओं और असंवैधानिक रूप से नौकरी से बर्खास्त करने के कारण कुपोषण के आधार पर मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली भी छाती के क्षय रोग से रोगग्रस्त हो गई थी। परन्तु इस बार दवाई सरकार ने उपलब्ध करवाई थी।
उपरोक्त करुणामय हृदय विदारक संवेदनशील विपरीत परिस्थितियों में मेरे तथाकथित विद्वान साहित्यकार एवं लेखक (जिनमें पत्रकार भी सम्मिलित हैं) अपनी स्वार्थसिद्धियों हेतु चुप्पी साधे पतली गली से निकल भागे थे। ऐसे कठिन समय में मुझे रेडियो और दूरदर्शन विभाग के साथ-साथ जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू ने भी तिरस्कृत किया था। जिसके साक्षी वर्तमान मुख्य सम्पादक के रूप स्वयं आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी हैं। जो भलीभांति जानते हैं कि मुझे साहित्य संबंधित किसी भी बात के ध्यानाकर्षण हेतु मंच पर बोलने नहीं दिया जाता था। जबकि राष्ट्रहित में मेरे प्रश्नों को आज भी आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी द्वारा दुत्कारा जा रहा है। जिसके लिए वह मुझे माननीय न्यायालय में खड़ा करने और अपनी मानहानि के लिए माननीय न्यायालय से धारा 499/500 के अंतर्गत दंडित करवाना चाहते हैं।
उल्लेखनीय है कि मेरे द्वारा राष्ट्रहित में पूछे गए मौलिक कर्तव्यों से परिपूर्ण प्रश्नों को दुर्भावनावश आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी अपनी मानहानि मान रहे हैं। जबकि इसके पीछे का कड़वा सच यह है कि वह अपने स्वार्थी चाटुकार सहयोगी लेखकों के उकसावे में आकर ऐसा सोच रहे हैं। जबकि मैं तो उनसे स्पष्ट स्पष्टीकरण मांग रहा हूॅं कि जिन महाविद्वानों को वे मंचासीन कर रहे हैं। उनका साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रहित में योगदान क्या है? उन्होंने राष्ट्रहित में अपने मौलिक कर्तव्यों पर आधारित राष्ट्रनिर्माण में क्या-क्या लिखा है? उन्होंने मौलिक कर्तव्यों और मौलिक अधिकारों पर कितनी-कितनी पुस्तकें राष्ट्र को समर्पित की हुई हैं? उन्होंने अपने जीवनकाल में राष्ट्रहित के लिए क्या क्या त्याग किया हुआ है? उन्होंने ज्ञान-विज्ञान के कौन-कौन से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किए हुए हैं? वह साहित्य में कितने धनी हैं? उन्हें हिंदी में वाचस्पति उपाधि लेने के बावजूद शुद्ध हिंदी भाषा किस स्तर पर आती है? किस-किस कवि या लेखक ने उर्दू भाषा की रचनाओं को हिंदी भाषा का स्वरूप देकर सम्मान प्राप्त किया हुआ है? जिन लेखकों को हिंदी निदेशालय ने सम्मानित किया हुआ है उन्हें हिंदी कार्यक्रमों में आमंत्रित क्यों नहीं किया जाता? उन्हें "लेखक से मिलिए" की श्रंखला में सार्वजनिक क्यों नहीं किया जाता? लेखक से मिलिए श्रंखला का आधार और मापदंड क्या हैं?
उक्त प्रश्नों का राष्ट्रहित में सम्पूर्ण न्यायिक समाधान करने हेतु पूछे गए प्रश्नों से आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी आपकी मानहानि कैसे हो सकती है? अतः आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी कृपया बताने का कष्ट करें कि आप माननीय न्यायालय में याचिका कब दायर करेंगे? चूंकि कल्चरल अकादमियों, विश्वविद्यालयों एवं साहित्यिक संस्थाओं में आयोजित संगोष्ठियों में मौलिक अधिकारों से अधिक मौलिक कर्तव्यों पर खुलकर चर्चा होना अनिवार्य ही नहीं बल्कि अत्यंत आवश्यक है और समकालीन समय की भरपूर मांग है। जिसकी पूर्ति हेतु मैं कई दशकों से मृत्युदंड से बद्तर काल कोठरी की यातनाएं सहन कर रहा हूॅं। जिसके साक्षी आपके सहयोगी सह सम्पादक श्री यशपाल निर्मल जी भी हैं।
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।