दुर्घटना के उपरांत न्यायिक जांच समसामयिक प्रथा बन चुकी है। वह जांच न्यायिक अधिकारियों के द्वारा करवाई जाए या न्यायिक विशेषज्ञ आयोग द्वारा करवाई जाए। परन्तु उनका निष्कर्ष ढाक के तीन पात से अधिक कुछ नहीं होता। चूंकि कुछ समय के बाद जांचकर्ता दुर्घटना की भीषण त्रासदी को भूल जाते हैं और लीपापोती करते हुए दोषियों को बचाने का प्रयास करते हैं। जिसके गम्भीर परिणाम देखने को यह मिलते हैं कि दोषी पुनः अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक नहीं करते और लापरवाह हो जाते हैं। जिसके आधार पर देश के समक्ष ऐसी परिस्थितियां पुनः दस्तक देती रहती हैं और देश के निरापराध नागरिक उपरोक्त भ्रष्टाचार का दंड भोगते रहते हैं।
उल्लेखनीय है कि 200 वर्ष अंग्रेजों के गुलाम रहने के कारण हमारी मानसिकता बन चुकी है कि उच्च अधिकारियों को प्रसन्न करना है। जो वह कह दें उसके बाद टस से मस नहीं होना है। उच्च अधिकारी "उच्च" अधिकारी ही होते हैं। जिनकी प्रसन्नता के लिए धन की व्यवस्था से लेकर शारीरिक संबंध स्थापित करने की व्यवस्था भी करनी पड़े तो कोई पीछे नहीं हटता। जबकि आजादी के अमृत महोत्सव में समस्त भारतीय नागरिकों, कर्मचारियों और उच्च अधिकारियों को नैतिकता के आधार पर "सौगंध" दिलाई जानी चाहिए कि उक्त मानसिकता को बदलते हुए संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों का ही पालन किया जाएगा। भले ही उक्त पालना के लिए भयंकर से भी भयंकर दंड भोगना पड़े। यूं भी हमें कर्मों अनुसार आज नहीं कल फल भोगना ही है।
सर्वविदित है कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के त्यागपत्र की मांग की जा रही है। जिसमें सर्वप्रथम भ्रष्टाचार शिरोमणि कांग्रेस दल और अन्य दलदल मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। मांग को सिरे से रद्द भी नहीं किया जा सकता। चूंकि ईमानदारी का उदाहरण माने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने भारत के तीसरे रेल मंत्री के रूप में 1956 में तमिलनाडु में अरियालुर रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। उसके उपरांत असम में गैसल रेल दुर्घटना के लिए नीतीश कुमार ने 1999 में भारत के 28वें रेल मंत्री के रूप में नैतिकता के आधार पर अपना पद त्याग दिया था। ऐसे में अश्विन वैष्णव जी भी नैतिकता से अछूते नहीं रह सकते। चूंकि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति नैतिकता पर आधारित है।
परन्तु वर्तमान रेल दुर्घटना की जांच हेतु माननीय उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका के रूप में याचिका दायर हो चुकी है। जिसमें याचिकाकर्ता ने माननीय उच्चतम न्यायालय से उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच करवाने की मांग की है। जिसके आधार पर अब वर्तमान सरकार के रेल मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव को नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र नहीं देते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा आगामी निर्णय के अनुसार सत्य का सामना करते हुए निष्पक्ष जांच में सहयोग करना चाहिए। ताकि सत्य देश के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके और दोषियों को दण्डित किया जा सके। जिसके कारण भविष्य में प्रत्येक कर्मचारी एवं अधिकारी अपने मौलिक कर्तव्यों का जागरूकता से निर्वहन करें। ताकि ऐसी भीषण त्रासदी पुनः न हो और न ही अनमोल जीवन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े। ॐ शांति ॐ