मेरे जीवन चक्र में सरकार द्वारा हर पल फांसी पर लटकाने का भय और निरंतर चिंता व्याप्त थी। जिसकी निरंतर सोच एवं हाई आल्टिच्यूट में नियुक्ति करने के कारण मैं अंतड़ियों के क्षय रोग से ग्रस्त हो गया था। चूंकि मेरे भ्रष्ट और क्रूर अधिकारियों ने अपने भ्रष्टाचार को मिटाने और क्रूरता को छुपाने के लिए मुझे एक ओर पागल सिद्ध कर दिया था और दूसरी ओर मेरी देशभक्ति पर देशद्रोह का झूठा आरोप लगा दिया था। उसपर भी विडंबना यह है कि माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने भी मुझे पागल मान लिया था। जिससे मेरे जीवन के सौभाग्य का सूर्य उदय होने से पहले ही अस्त हो गया था।
उल्लेखनीय है कि उक्त सूर्य अस्त के कारण मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली का नव विवाहित चूड़ा धूल धूसरित हो गया और बच्चे तरुण बाली का बचपन संवैधानिक बाल मौलिक अधिकार से असुरक्षित ही नहीं बल्कि सम्पूर्णतः वंचित रह गया था। जो कदापि लौटाया नहीं जा सकता और ना ही भारत की माननीय सर्वोच्च न्यायालय उसकी क्षतिपूर्ति कर सकती हे। चूंकि प्राकृतिक रूप से न तो मेरी धर्मपत्नी को युवती बनाया जा सकता है और ना ही मेरे बेटे को शिशु बनाया जा सकता है। जबकि सरकार को सेवाएं देने के प्रति मात्र मैं ही प्रतिबद्ध और वचनबद्ध था। परन्तु मेरे विभागीय अधिकारियों ने हम सबको मानसिक, शारीरिक और आर्थिक प्रताड़ित किया था।
जिन प्रताड़नाओं के कारण उत्पन्न असहनीय पीड़ाओं की प्रतिक्रियाओं के अंतर्गत मेरे रोने चिल्लाने को भी मेरा असंतुलित मानसिक प्रमाण माना जाता था। परन्तु मेरी विवशता को उच्चस्थ पदों पर विराजमान मेरे सगे भाई भी समझ नहीं सके थे। मेरे भाइयों और मित्रवरों की लेखनी ने भी लेखक होने के आधार पर अपनी कहानियों में मेरी व्यथाओं को महत्व नहीं दिया था। जबकि वही लेखक काल्पनिक साहित्य को समृद्ध करने में "साहित्यिक पुरस्कार" प्राप्त करने की होड़ में सम्मिलित रहे थे। जिनमें से किसी ने "साहित्य अकादमी पुरस्कार" और किसी ने पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त किया। परंतु इन लेखकों में से कई लेखक साहित्य अकादमी से कोई भी पुरस्कार प्राप्त नहीं कर सके और खाली हाथ मृत्युलोक से स्वर्ग सिधार गए हैं। जबकि कुछ लेखक अपने मूंह को छुपाने का अथक प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि उन्होंने अपने मौलिक कर्तव्यों को पूरा नहीं किया था।
सत्य यह भी है कि जम्मू और कश्मीर स्वास्थ्य विभाग के विद्वान मनोचिकित्सकों के एक श्रेष्ठ बोर्ड ने स्पष्ट लिखा हुआ है कि मेरा रोना चिल्लाना विभागीय अधिकारियों द्वारा मानसिक प्रताड़ना की दुखद प्रतिक्रिया है। जो मानसिक रोग में नहीं आती है। जिसे जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए एम मीर जी ने नहीं माना और मेरी पतिव्रता धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली की याचिका को रद्द कर दिया। जिसमें मुझे तपेदिक रोग के स्थान पर मानसिक उपचार करवाने के लिए भ्रष्ट एवं क्रूर आधिकारियों का सहयोग करने हेतु अमानवीयता ही नहीं बल्कि असंवैधानिक आदेश भी पारित कर दिया था। जो वर्तमान समय में माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के वर्तमान विद्वान न्यायाधीशों के लिए गले की फांस बना था।
परन्तु अब प्रतीत हो रहा है कि वर्तमान विद्वान न्यायमूर्तियों ने सच का सामना करने का मन बना लिया हुआ है। जिसके चलते उन्होंने मेरी याचिकाओं की सत्यता पर निरंतर निष्पक्ष कड़े आदेश पारित किए हैं। जिससे स्पष्ट हो रहा है कि वर्तमान सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत में संविधान, कानून और न्याय है। जबकि कांग्रेस नीत सरकार की समयावधि के साक्ष्यों का उल्लेख करते हुए अंग्रेजी भाषा में मैंने अपनी पुस्तक "वेयर इज़ कॉन्स्टिट्यूशन, लॉ एंड जस्टिस ?" नामक पुस्तक लिखी और माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में प्रकाशित की हुई है। चूंकि पारदर्शी असंख्य साक्ष्य और व्यापक कानून होने के बावजूद मुझे न्याय नहीं मिल रहा था। जिससे क्षुब्ध होकर मैंने उपरोक्त पुस्तक प्रकाशित की थी। जो अब सकारात्मकता के आधार पर नकारात्मकता को पूर्णतया मिथ्या प्रमाणित कर रही है। परन्तु विद्वान अधिवक्ताओं द्वारा प्रस्तुत किए जा चुके साक्ष्यों को अब मैं स्वयं वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीशों की न्यायालय के पटल पर रख रहा हूॅं। जिन्हें वर्तमान न्यायाधीश स्वयं मानते हुए प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने के कड़े आदेश भी पारित कर रहे हैं।
जिससे एक ओर मुझे न्याय मिलने की आशा जगी है और दूसरी ओर सुकून प्राप्त हो रहा है। चूंकि दिनांक 09 अगस्त 2023 की सुनवाई में माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री रजनीश ओसवाल जी ने मेरे प्रतिवादियों की ओर से उपस्थित विद्वान डिप्टी सालिसिटर जनरल ऑफ इंडिया श्री विशाल शर्मा जी के विनम्र आग्रह पर मेरे प्रतिवादियों (सर्वश्री सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी), डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल और सफदरजंग अस्पताल) को मेरी समस्त याचिकाओं पर उत्तर देने के लिए अंतिम और अंतिम सुअवसर दिया है। जिसमें उन्होंने रजिस्ट्री द्वारा दी गई रिपोर्ट "जिसमें प्रतिवादियों को पहले ही पांच अवसर दिए जा चुके हैं परन्तु प्रतिवादी जवाब दाखिल नहीं कर रहे" के आधार पर ठोस कार्रवाई करते हुए उन्होंने चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया है। जिसके साथ ही स्पष्ट कर दिया है कि यदि इस बार प्रतिवादी जवाब दाखिल नहीं करेंगे तो उचित आदेश पारित कर दिया जाएगा।
उक्त आदेश से एक ओर शनिदेव जी कृपा का अनुभव हो रहा है और दूसरी ओर मेरी देवी स्वरूप प्राणप्रिया धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली के तप और तपस्या की पूर्ति प्रतीत हो रही है। जिसकी शक्ति का कठोर आधार बन रहा है। क्योंकि वह जो न्यापालिका के प्रति अपना विश्वास खो चुकी थी वही विश्वास उसे न्याय मिलने पर पुनः जागृत हो जाएगा। जिसकी वर्तमान समय में हमारे बिखरे परिवार सहित देश के विकास हेतु परम आवश्यकता है। जिसकी न्यायिक सुगंध "भूषण और सुशीला" के मिलन का आधार बनेगी।
जिसके आनन्द से आनंदित एवं प्रफुल्लित होने के उपरोक्त बिंदुओं की आधारशिला पर प्रकृति ईश्वरीय कृपा से मेरे और मेरे रुष्ठ परिवार के उज्ज्वल भविष्य की ओर सुनहरे संकेत कर रही है! ताकि हम पारिवारिक सदस्य भी प्रेम पूर्वक अपने संवैधानिक मौलिक अधिकारों का निर्वहन करते हुए अपने सगे संबंधियों, भाई बंधुओं, मित्र वर्ग इत्यादि की भांति पत्नीटॉप, नैनीताल, शिमला इत्यादि ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थलों पर अपने शेष बचे जीवन को सुखमय और आनंदपूर्वक जी सकें। जबकि पुराने गीत के स्वर मेरे कानों में कुछ इस प्रकार रस घोल रहे थे। जिन्हें सुनकर मानों मन में गुदगुदी सी होने लगी थी और मुझे अनुभव हो रहा था कि उक्त गीत मेरी "सुशीला" गाते हुए मुझे कह रही हो कि "बेदर्दी बालमा तुझको मेरा मन याद करता है, बरसता है जो ऑंखों से वो सावन याद करता है .......। जय हिन्द सम्माननीयों ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।