बदलते परिवेश में पत्रकारिता की चुनौती : कारण और निवारण ! (आलेख)
पत्रकारिता की चुनौतियों को दर्शाने से पूर्व आवश्यक है कि सर्वप्रथम हम परिवेश का मूल अर्थ और परिभाषा जान लें। क्योंकि शाब्दिक अर्थ और परिभाषा आलेख को समझने और समझाने में परम सहायक सिद्ध होते हैं। जिसके फलस्वरूप वर्णनीय है कि परिवेश शब्द का स्रोत संस्कृत है और इसे परिधि, आभा, घेरा, मंडल, वातावरण अथवा माहौल इत्यादि नामों से जाना जाता है। जिसमें प्राणी के कार्य बिंदुओं के चारों ओर की सूक्ष्म से सूक्ष्म वास्तविक अर्थात तर्कसंगत अवस्था के चित्रचित्रण को परिभाषित किया जाता है। जैसा कि उपरोक्त आलेख के संदर्भ में बदलते परिवेश की मात्र चुनौतियों पर ही नहीं बल्कि राष्ट्रहित में उसके कारण और निवारण के उपलक्ष्य में भी गंभीर मूल्यवान प्रश्न उठाए गए हैं।
चूंकि वर्तमान परिवेश में अधिकांश पत्रकार और उनकी पत्रकारिता अपने मूल लक्ष्यों से भटक कर "गंगा गए गंगा दास और जमुना गए जमुना दास" की लोकोक्ति को चरितार्थ करने पर व्यस्त हैं। जिसका कड़वा सच यह है कि पत्रकारिता के पतंग की डोर व्यवसासियों के हाथ में आ चुकी है। जिन्होंने अपने निजी स्वार्थ में पत्रकारिता का मूल दृष्टिकोण ही बदल दिया है। क्योंकि उनका लक्ष्य ही धन अर्जित करना है। जिसकी उद्देश्यपूर्ति हेतु वह अपने मौलिक कर्तव्यों को भूल कर भ्रष्टाचारियों के हाथों मिल कर ही नहीं बल्कि स्पष्ट बिक कर सत्य का गला घोंटने में अपनी अग्रज भूमिका निभा रहे हैं। जिससे सम्पूर्ण देश एवं देशवासियों का अहित ही नहीं बल्कि उनके मौलिक अधिकारों का हनन भी हो रहा है और यही मूल कारण हैं कि सवा करोड़ की जनसंख्या वाला देश अभी तक विश्वगुरू नहीं बन पाया। चूंकि भ्रष्टाचार वह दीमक है जो राष्ट्र को लकड़ी की भांति अंदर ही अंदर निगल जाती है।
इसीलिए पत्रकारों को "राष्ट्र सर्वोपरि है" के सिद्धांत पर राष्ट्रहित में स्वतः संज्ञान लेना चाहिए कि वह विकास की कौन सी सीढ़ी पर चढ़ रहे हैं और देश को किन बुलंदियों पर लेकर जा रहे हैं? जिसके दूरगामी परिणाम क्या निकलने वाले हैं? जिसके आधार पर उन्हें अपने उत्तरदायित्वों के प्रति जागरूक होना होगा और मंथन करना होगा कि भ्रष्टाचार के बारूदी ढेर पर उनके बच्चों का भविष्य भी खड़ा है। जिस पर उन्हें प्रत्येक दृष्टिकोण से मूल्यांकन करना ही होगा। ताकि भारत का भविष्य उज्ज्वल हो सके।
उपरोक्त लक्ष्य की प्राप्ति हेतु भ्रष्टाचार से पीड़ित हम जैसे पत्रकारों ने व्यष्टि से समष्टि की ओर बढ़ते हुए "प्रेस कोर कौंसिल" नामक संस्था को पंजीकृत करवाया था जो धन के अत्यधिक आभाव के कारण धीमी गति से गतिमान भी है। जिसे तीव्र गति से दौड़ने के लिए विद्वान और सशक्त व्यक्तित्वों की परम आवश्यकता है। संभवतः भविष्य में "प्रेस कोर कौंसिल" बदलते परिवेश में पत्रकारिता की चुनौती के कारण और निवारण को आधारभूत चुनौती देगी और राष्ट्रहित में भव्य योगदान भी देगी। उस समय की प्रतीक्षा करनी होगी, क्योंकि कोई नहीं जानता है कि भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है?
जिन्हें तलाशने एवं तराशने हेतु उल्लेखनीय है कि उपरोक्त उद्देश्यपूर्ति हेतु सरकार को भी भारत को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने में दृढ़संकल्पित होकर आगे बढ़ना होगा और सुयोग्य प्रशिक्षित पत्रकारों को विशेष सहायता पहुॅंचानी चाहिए, ताकि धन के अभाव में "प्रेस कोर कौंसिल" सहित अन्य अनेक निष्पक्ष एवं सत्यमेव जयते पर आधारित सत्यनिष्ठ पत्रकारों और उनकी पत्रकारिता भ्रष्टाचार के विस्फोटक बारूद की भेंट न चढ़ जाए। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।