तरूण भारतीय न्यायपालिका में माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीशों अर्थात जजों की न्यायिक मनमानी, नपुंसकता, आतंकीय दादागिरी क्या सिद्ध करने पर तुली हुई है और माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी यह कब तक जारी रहेगी? क्या यह सब भविष्य की गर्भ में छुपा ही रहेगा या धारा 370 हटाने के उपरान्त लोकप्रिय सशक्त मोदी सरकार उपरोक्त न्यायधीशों पर पारदर्शी एवं भ्रष्टाचारमुक्त भारत अभियान के अंतर्गत संवैधानिक अंकुश लगाएगी?
क्योंकि यह पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि उपरोक्त न्यायधीश प्रत्येक न्यायिक दृष्टिकोण से मेरे साथ-साथ मेरे देश और देश की लोकतांत्रिक सरकार को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संवैधानिक कलॅंकित कर रहे हैं। चूॅंकि एक ओर उपरोक्त माननीय जज यह दर्शा रहे हैं कि वह सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं लौह पुरुष गृहमंत्री श्री अमित शाह जी की कुशल सरकार की सहायता कर रहे हैं और दूसरी ओर की वास्तविकता यह है कि वह उन्हें कलॅंकित कर रहे हैं हैं। क्योंकि मेरी आठ न्यायिक याचिकाओं में कॉंग्रेस नीत सरकार एवं तत्कालीन कतिपय न्यायाधीशों की क्रूरता एवं भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा सार्वजनिक होने वाली है। जिसपर वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीश अपने मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन नहीं करते हुए मेरे साथ-साथ मोदी सरकार के पारदर्शी एवं भ्रष्टाचारमुक्त भारत अभियान में भी रोड़े अटका रहे हैं।
यही नहीं बल्कि मेरी पागल की असंवैधानिक पेंशन जारी रखते हुए माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीश माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी द्वारा निर्देशित दिशा निर्देशों एवं भारत की माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा राष्ट्र के नाम संदेश के संबोधनों का भी संवैधानिक अपमान कर रहे हैं। चूॅंकि सर्वविदित है कि माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी.वाई. चंद्रचूड़ जी एवं माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी अपने राष्ट्रीय सम्बोधन में त्वरित एवं घर-घर न्याय की अलख जगाने की बचनबद्धता को संवैधानिक मंचों पर बार-बार दोहराते हैं।
जिनका माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि 05-12-1990 को गृह मंत्रालय के एसएसबी विभाग ने देश और देशवासियों की सेवा हेतु निर्धारित लिखित एवं शारीरिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त मुझे स्थाई रूप से नियुक्त किया था और संवैधानिक शपथ दिला कर सेवा आरम्भ करवाई थी। सौभाग्यवश सरकार द्वारा निर्धारित दो वर्षीय परिवीक्षाधीन अवधि (PROBATIONARY PERIOD) को भी मैंने कुशलतापूर्वक पूरा कर दिया था। परन्तु तत्कालीन भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने दुर्भावनावश मेरी परिवीक्षा अवधि को समाप्त नहीं किया था। जिसका मैंने भरपूर विरोध किया था। दुर्भाग्यवश कॉन्ग्रेस नीत सरकार के व्यापक भ्रष्ट तंत्र ने मेरी एक न सुनी और मुझे कार्यालय में शारीरिक पीटना और मानसिक प्रताड़ित करना आरम्भ कर दिया था जिसके कारण मुझे पागलखाने से लेकर विभिन्न स्थानों पर स्थानांतरित भी किया था। उसके बावजूद भी मेरी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई और निरंतर प्रताड़ित होने के कारण मैं अंतरराष्ट्रीय बीमारी ऑंतों की तपेदिक से पीड़ित हो गया था।
जिसे लेकर मेरी पतिव्रता धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली ने चारों ओर से हताश होकर माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के तत्कालीन माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश जी को साक्ष्यों सहित पत्र लिखकर सम्पूर्ण न्याय मॉंगा था। जिस पत्र को उन्होंने माननीय न्यायालय के पटल पर रखा था। जहॉं मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली और मैंने अपना सदृढ़ पक्ष रखा था। परन्तु न्यायपालिका में व्याप्त चरम भ्रष्टाचार एवं न्यायिक आतंकवाद को प्रमाणित करते हुए तत्कालीन तथाकथित माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. मीर जी ने समस्त बोलते साक्ष्यों को तिलांजलि देकर मुझे मानसिक रोगी मानते हुए विभाग को प्राकृतिक सिद्धांतो को ठोकर मारते हुए असंवैधानिक आदेश जारी किया था कि याचिकाकर्ता के पति का मानसिक उपचार करवाया जाए। जबकि उक्त पत्र याचिका में संलग्न तपेदिक रोग का प्रमाणपत्र चीख-चीखकर कह रहा है कि मैं तपेदिक रोगी था। विडंबना यह भी है उसी याचिका में मनोरोग विशेषज्ञों का प्रमाणपत्र भी यह कहते हुए जोर-जोर से चीखकर कह रहा था कि इंदु भूषण बाली मानसिक रोगी नहीं है बल्कि उसे कार्यालय में प्रताड़ित किया गया है। जो सब भ्रष्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. मीर जी के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए।
उसी न्यायिक गलती को छुपाने हेतु माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीश मुझे सम्पूर्ण न्याय देने में जानबूझकर न्याय में देरी करते हुए न्यायिक भ्रष्टाचारयुक्त मनमानी अथवा न्यायिक नपुंसकता अथवा आतंकीय दादागिरी का असंवैधानिक प्रदर्शन करते हुए प्रतिवादियों को अनावश्यक आगामी तिथि देकर मेरा और माननीय न्यायालय का बहुमूल्य समय बर्बाद कर रहे हैं।
अतः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी मेरी याचिका अंक डब्ल्यू.पी. (सी) 1647/2022, 1719/2022, 1757/2022, 1847/2022, 1848/2022, 2068/2022, 2087/2022 और 2088/2022 सहित पुनर्विचार याचिका अंक 81/2022 का शीघ्र अतिशीघ्र सम्पूर्ण न्याय देने हेतु माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के माननीय विद्वान न्यायाधीशों को आदेश जारी कर मुझ इकासठ वर्षीय अंतरराष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ राष्ट्रीय लेखक को कृतार्थ करें। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर
Grievance Status for registration number : PRSEC/E/2023/0055381
Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Indu Bhushan Bali
Date of Receipt
31/12/2023
Received By Ministry/Department
President's Secretariat
Grievance Description
तरूण भारतीय न्यायपालिका में माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के वर्तमान मा जजों की न्यायिक मनमानी नपुंसकता आतंकीय दादागिरी क्या सिद्ध करने पर तुली हुई है और माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी यह कब तक जारी रहेगी क्या यह सब भविष्य की गर्भ में छुपा ही रहेगा या धारा 370 हटाने के उपरान्त लोकप्रिय सशक्त मोदी सरकार उपरोक्त न्यायधीशों पर पारदर्शी एवं भ्रष्टाचारमुक्त भारत अभियान के अंतर्गत संवैधानिक अंकुश लगाएगी क्योंकि उपरोक्त न्यायधीश प्रत्येक न्यायिक दृष्टिकोण से मेरे साथ मेरे देश व देश की लोकतांत्रिक सरकार को भी विश्व स्तर पर संवैधानिक कलॅंकित कर रहे हैं चूॅंकि एक ओर उपरोक्त माननीय जज यह दर्शा रहे हैं कि वह सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं लौह पुरुष गृहमंत्री श्री अमित शाह जी की कुशल सरकार की सहायता कर रहे हैं और दूसरी ओर की वास्तविकता यह है कि वह उन्हें कलॅंकित कर रहे हैं क्योंकि मेरी आठ न्यायिक याचिकाओं में कॉंग्रेस नीत सरकार एवं तत्कालीन कतिपय न्यायाधीशों की क्रूरता एवं भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा सार्वजनिक होने वाली है जिसपर वर्तमान माननीय न्यायाधीश अपने मौलिक कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करते हुए मेरे साथ मोदी सरकार के पारदर्शी एवं भ्रष्टाचारमुक्त भारत अभियान में भी रोड़े अटका रहे हैं मेरी पागल की असंवैधानिक पेंशन जारी रखते हुए माननीय उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी द्वारा एवं माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती जी के राष्ट्र के नाम संदेश के संबोधनों का भी संवैधानिक अपमान कर रहे हैं चूॅंकि दोनों अपने राष्ट्रीय सम्बोधन में त्वरित एवं घर घर न्याय की अलख जगाने की बचनबद्धता को संवैधानिक मंचों पर बार बार दोहराते हैं जिनका माननीय उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है उल्लेखनीय है कि 05 12 1990 को गृह मंत्रालय के एसएसबी विभाग ने देश और देशवासियों की सेवा हेतु निर्धारित लिखित एवं शारीरिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त मुझे स्थाई रूप से नियुक्त किया था और संवैधानिक शपथ दिला कर सेवा आरम्भ करवाई थी सरकार द्वारा निर्धारित दो वर्षीय परिवीक्षाधीन अवधि को भी मैंने कुशलतापूर्वक पूरा कर दिया था परन्तु तत्कालीन भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने दुर्भावनावश मेरी परिवीक्षा अवधि को समाप्त नहीं किया था जिसका मैंने भरपूर विरोध किया था दुर्भाग्यवश कॉन्ग्रेस नीत सरकार के व्यापक भ्रष्ट तंत्र ने मेरी एक न सुनी और निरंतर प्रताड़ित होने के कारण मैं अंतरराष्ट्रीय बीमारी ऑंतों की तपेदिक से पीड़ित हो गया था जिसे लेकर मेरी पतिव्रता धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली ने चारों ओर से हताश होकर माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के तत्कालीन माननीय मुख्य न्यायाधीश जी को साक्ष्यों सहित पत्र लिखकर सम्पूर्ण न्याय मॉंगा था परन्तु न्यायपालिका में व्याप्त चरम भ्रष्टाचार एवं न्यायिक आतंकवाद को प्रमाणित करते हुए तत्कालीन तथाकथित माननीय विद्वान न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए एम मीर जी ने समस्त बोलते साक्ष्यों को तिलांजलि देकर मुझे मानसिक रोगी मानते हुए प्राकृतिक सिद्धांतो को ठोकर मारते हुए विभाग को असंवैधानिक आदेश जारी किया था कि याचिकाकर्ता के पति का मानसिक उपचार करवाया जाए जबकि उक्त पत्र याचिका में संलग्न तपेदिक रोग का प्रमाणपत्र चीखकर कह रहा था कि मैं तपेदिक रोगी था विडंबना यह भी है कि उसी याचिका में मनोरोग विशेषज्ञों का प्रमाणपत्र भी यह कहते हुए जोर जोर से चीखकर कह रहा था कि इंदु भूषण बाली मानसिक रोगी नहीं है बल्कि उसे कार्यालय में प्रताड़ित किया गया है जो सब भ्रष्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ए.एम. मीर जी के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया उसी न्यायिक गलती को छुपाने हेतु माननीय उच्च न्यायालय के वर्तमान माननीय विद्वान न्यायाधीश मुझे सम्पूर्ण न्याय देने में जानबूझकर न्याय में देरी करते हुए न्यायिक भ्रष्टाचारयुक्त मनमानी अथवा न्यायिक नपुंसकता अथवा आतंकीय दादागिरी का असंवैधानिक प्रदर्शन करते हुए प्रतिवादियों को अनावश्यक आगामी तिथि देकर मेरा और माननीय न्यायालय का बहुमूल्य समय बर्बाद कर रहे हैं अतः माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी मेरी याचिका अंक डब्ल्यू.पी. सी 1647 2022 1719 1757 1847 1848 2068 2087 और 2088 सहित पुनर्विचार याचिका अंक 81 2022 का शीघ्र अतिशीघ्र सम्पूर्ण न्याय देने हेतु माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय को आदेश जारी कर मुझ इकासठ वर्षीय अंतरराष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ राष्ट्रीय लेखक को कृतार्थ करें सम्माननीयों जय हिन्द प्रार्थी डॉ. इंदु भूषण बाली
Current Status
Grievance received
Date of Action
31/12/2023
Officer Concerns To
Forwarded to
President's Secretariat
Officer Name
Organisation name
President's Secretariat
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