माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ जी एक लम्बे समय से मुझे समझाया जा रहा है और उक्त समझाने के पीछे की विशेष कुटिल इच्छा यह है कि मैं निर्विरोध मान जाऊॅं कि मैं एक "पागल" हूॅं। जिसमें मैं यह भी मान जाऊॅं कि मेरी "विद्वता" एक "पागलपन" है और मेरा लेखन भी "मनोरोग" का प्रतिफल है। यहां तक कि राष्ट्रहित में मेरे द्वारा किया जा रहा "मौलिक कर्तव्यों" पर शोध कार्य भी शोध न होकर "पागलपन" का उदाहरणीय प्रमाणपत्र है। जिसे मुझे तुरन्त मान लेना चाहिए। ताकि सभी षड्यंत्रकारियों को जिसमें उच्च न्यायालय के तथाकथित विद्वान डॉक्टरों, अधिवक्ताओं, न्यायाधीशों एवं क्रूर भ्रष्टाचारी अधिकारियों पर ऑंच न आए अर्थात उन्हें उनके कुकर्मों से राहत दी जा सके।
परन्तु माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी सादर मेरे आपसे यक्ष प्रश्न यह हैं कि यदि आपको "पागल" करार कर दिया जाए तो क्या आप मान जाएंगे कि आप वास्तविक पागल हैं? चूंकि आप भी तो सरकार की इच्छा के विरुद्ध "कॉलेजियम" प्रणाली को बंद नहीं कर रहे? ऐसे में यदि मैं सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं हुआ था तो ऐसे में मैं राष्ट्रद्रोही कैसे हो गया? जबकि बीमार कर्मचारी का वेतन रोका ही नहीं जा सकता, तो मेरा वेतन क्यों रोका गया? जिस पीड़ा को लेकर मैंने अपने संवैधानिक मौलिक अधिकारों के अंतर्गत माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए याचिका दायर की तो न्यायालय ने अपने संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हुए मुझे मेरे विभाग से वेतन क्यों नहीं दिलवाया था? जिसके लिए आज भी मैं दरबदर माननीय न्यायालय में चुनौतियां दे रहा हूॅं। यही नहीं मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली की याचिका ओडव्ल्यूपी अंक 968/1996 पर माननीय उच्च न्यायालय ने गंभीरता से अपने मौलिक कर्तव्यों का निर्वहन क्यों नहीं किया था? जिसके आधार पर आज हम दोनों पति पत्नी और बच्चे अलग अलग रह रहे हैं? क्यों मुझे समाचार पत्र बेचने पड़े? मुझे अपने बेटे तरुण बाली को सैनिक स्कूल नगरोटा से भारीभरकम फीस के आभाव में क्यों निकालना पड़ा? क्यों हम सब सबकुछ होते हुए भी सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक घृणा के पात्र बने हुए हैं?
माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी किसी के व्यक्तित्व को मिट्टी में मिलाना क्रूरता की श्रेणी में आता है। ऐसे में जब कोई किसी क ख ग से पहले ही सता सताया माननीय न्यायालय में चुनौती देता है तो उसे न्यायाधीशों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। यह कौन सा कानून है? जबकि सरेआम याचिकाकर्ताओं का खुल्लमखुल्ला न्यायाधीशों द्वारा शोषण किया जा रहा है और आपके कार्यकाल में भी जारी रहते हुए दिन दुगनी और रात चौगुनी वृद्धि कर रहा है। परन्तु हम भारतीय याचिकाकर्ताओं का दुर्भाग्य यह है कि हमारे पास अर्थात भारत के संविधान में न्यायाधीशों द्वारा किए जा रहे शोषण के विरुद्ध शिकायत अथवा कोई ठोस कार्रवाई करने में सक्षम आयोग या लोकपाल या महा लोकपाल नहीं है। जहां पहले से उत्पीड़ित याचिकाकर्ता न्यायमूर्तियों द्वारा किए जा रहे ज्वलंत शोषण के विरुद्ध शिकायत दर्ज करा सके। जो माननीय भ्रष्ट न्यायाधीश रूपी घोड़ों की लगाम कसने में सक्षम हों और आपराधिक मनोवृत्ति वाले भ्रष्ट न्यायाधीशों को दंडित कर याचिकाकर्ताओं को न्याय दे सके। परन्तु उपरोक्त उद्देश्यपूर्ति हेतु भारतीय संविधान में आज़ादी के अमृत महोत्सव में भी कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है।
जिसके कारण भारतीय नागरिकों को न्याय नहीं मिल रहा। जिसका साक्ष्य मैं स्वयं हूॅं। जिसे पिछले कई दशकों से माननीय न्यायाधीशों ने न्याय से वंचित रखा हुआ है। जिसके आधार पर मैं अपने परिवार से भी अलग जीवनयापन कर रहा हूॅं। जिसके जवाबदेह माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी आप हैं। चूंकि उपरोक्त न्यायिक दिव्यांगता ही नहीं बल्कि न्यायिक नपुंसकता आपके अनुपम कार्यकाल में भी सुचारू रूप से विकसित हो रही है। क्योंकि आप उक्त न्यायिक दिव्यांगता और न्यायिक नपुंसकता पर अंकुश लगाने में विफल हो गए हैं। जिसके लिए वर्तमान समय के न्यायाधीश रूपी घोड़ों की लगाम खींचनी अत्यावश्यक है। ताकि न्याय जिंदा रहे।
अतः माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी मेरी न्यायिक यात्राओं की प्रत्येक बाधाओं में से एक वर्तमान बाधा आप और आपकी चुप्पी भी मानी जाएगी। जो आपकी अनुपम विद्वता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाएगी। जिसके कारण इतिहास के पन्नों में आपका नाम स्वर्ण अक्षरों के स्थान पर काले अक्षरों का प्रयोग किया जाएगा। जिससे बचने हेतु आपको समय रहते उपचार करना चाहिए। जो आपका संवैधानिक मौलिक कर्तव्य बनता है। इसलिए अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक करें ताकि इतिहास के पन्नों में आपका नाम सम्मान सहित लिखने में स्वर्ण अक्षरों का प्रयोग किया जा सके। ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।