जंगल में मोर नाचा किसने देखा ?
(आलेख)
जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू में डोगरी और हिंदी शीराज़ा के मुख्य सम्पादक आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी समसमायिक समय में "जंगल में मोर नाचा किसने देखा" वाली प्रख्यात लोकोक्ति को चरितार्थ करने में पूरी तरह प्रयासरत हैं। यद्यपि इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि वह अत्यंत परिश्रमी एवं विद्वान हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश वह "एक तो करेला उसपर नीम चढ़ा" वाली कहावत को अनावश्यक चरितार्थ कर रहे है। चूंकि वह अकादमी का कार्यक्रम आयोजित करने और उसे सफल बनाने हेतु जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के वर्तमान सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी के साथ विचार-विमर्श करना भी उचित नहीं समझते। चूंकि एक तो उन्होंने "पीएचडी" अर्थात स्नातकोत्तर डॉक्टरेट की डिग्री अर्थात "विद्या वाचस्पति" की उपाधि प्राप्त की हुई है और दूसरा उनके पास इस अकादमी में लम्बे समय का अनुभव भी है। जिसके आधार पर वे प्रतिभाशाली लेखकों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक करने की इच्छा लिए आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी को भी मूर्ख बनाने में निरंतर सफल हो रहे हैं। चूंकि उन्होंने कतिपय चाटुकार लेखक अपने पक्ष में कर रखे हैं। जो मिलकर एक दूसरे की पीठ खुजा रहे हैं। जिन्हें डॉ रत्न बसोत्रा जी मंचासीन करते हैं और प्रतिउत्तर में मंचासीन चाटुकार डॉ रत्न बसोत्रा जी की आवश्यकता से कहीं अधिक प्रशंसा करते हैं। जैसे जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी डॉ रत्न बसोत्रा जी की निजी संपत्ति है। जहां से वह द्वापर युग के अद्वितीय दानवीर महारथी कर्ण का दायित्व निभा रहे हैं। जबकि सत्य यह है कि आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी भूल रहे हैं कि जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के वर्तमान विद्वान सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी न तो अशक्त हैं और ना ही वह धृतराष्ट्र की भांति अंधे हैं। क्योंकि वह देख भी सकते हैं और उनको विभिन्न बिन्दुओं पर लेखकों का भरपूर समर्थन भी मिल रहा है। जो यह भी जानते हैं कि आप द्वारा आमंत्रित कतिपय लेखक मंचासीन होने के उपरांत या अपनी रचना पढ़ने के बाद सभागार से लापता हो जाते हैं। जबकि वह इस बात को भी कहते हुए नहीं थकते कि उन्हें किसी का हृदय नहीं दुखाना है। ऐसे में डॉ रत्न बसोत्रा जी को पूर्ववत हथकंडे त्याग कर आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी का खुला समर्थन करते हुए पारदर्शी साहित्यिक मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी पारदर्शिता पर विश्वास करते हैं। क्योंकि उन्होंने इसको आरम्भ किया था। जिसका अनुमोदन महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी तन मन और आत्मा से करती हैं। जिसके निर्वहन की सुरक्षा के प्रति अर्थात पारदर्शी भारत की सुनिश्चितता हेतु माननीय उच्चतम न्यायालय के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक करते हुए वचनबद्ध हैं। सम्पूर्ण भारतीय नागरिक ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गणमान्यजन "डिजिटल इंडिया" को "डिजिटल इंडिया मिशन" मानते हुए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को शुभकामनाएं देते हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश हिंदी और डोगरी पत्रिका "शीराज़ा" के मुख्य सम्पादक डॉ रत्न बसोत्रा जी माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को एवं उनके डिजिटल इंडिया को नहीं मानते हैं।
संभवतः डॉ रत्न बसोत्रा जी आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी, भारत के माननीय विद्वान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री डी वाई चंद्रचूड़ जी और न्यायप्रिय माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी से अपने-आपको को "बड़ा" मानते हैं। जिसके अहंकारवश माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा आरंभ की गई "पारदर्शिता" की धज्जियां उड़ानें में वह कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि उन्हें सह सम्पादक श्री यशपाल निर्मल जी का अनमोल सहयोग मिल रहा है। जिनकी पैनी कलम का मुझे भलीभांति ज्ञान है। चूंकि वह मेरे शिष्य हैं।
उदाहरणार्थ वर्तमान समय में भी दिनांक 08- 06-2023 से 09-06-2023 तक के आयोजित कवि सम्मेलन में पंजीकृत कवियों के नामों को डॉ रत्न बसोत्रा जी ने सार्वजनिक नहीं किया था। जिसके पीछे का रहस्यमय सत्य वह स्वयं जानते हैं। जिसमें भ्रष्टाचार की बदबू आती है। चूंकि डॉ रत्न बसोत्रा जी अपने चहेतों को बुक करने के लिए अंतिम क्षण तक प्रयासरत रहते हैं। जिसके विरोध में लेखक आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी के पास यह पूछने के लिए जा रहे हैं कि पंजिकृत होने के लिए क्या क्या मूल आवश्यकताएं निर्धारित की गई हैं? अर्थात............,?
जिसके आधार पर एक ओर प्रतिभाशाली लेखकों को तिलांजलि दी जा रही है और दूसरी ओर विद्वान सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी को बदनाम करने का असफल प्रयास किया जा रहा है। जिससे अकादमी को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र को भी हानि पहुंचाई जा रही है। जिसके उत्तरदायी स्पष्टता डॉ रत्न बसोत्रा जी हैं। जिन्हें मैंने एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार समझाने का प्रयास भी किया था। यहां तक कि डॉ रत्न बसोत्रा जी द्वारा लेखकों के प्रति उनकी दुर्भावनापूर्ण रवैये एवं भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए भारत के तत्कालीन माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी को लिखित पत्र द्वारा शिकायत भी मैंने की हुई है। जिसमें लेखकों को खाना उपलब्ध नहीं करवाना एवं दिव्यांग लेखकों को कमरा उपलब्ध नहीं करवाना शामिल है। जिसका उल्लेख स्वयं डॉ रत्न बसोत्रा जी ने वर्तमान विद्वान सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी के समक्ष मेरी शिकायत पर क्षमा मांगने से पहले प्रस्तुत किया था।
उसके बावजूद डॉ रत्न बसोत्रा जी प्रत्येक आयोजित कार्यक्रम में मनमानी करते हुए "पारदर्शी भारत" के नियमों का उल्लंघन करने के साथ साथ प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 का भी पूरी तरह उल्लंघन करने से बाज नहीं आ रहे। जबकि प्रतिस्पर्धा को विकास की "रीढ़ की हड्डी" माना जाता है। जिसकी उद्देश्यपूर्ति हेतु "प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002" बनाया गया था। जिसमें स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना सुनिश्चित किया था। जिसने एकाधिकार तथा अवरोधक व्यवहार अधिनियम 1969 का स्थान लिया था। जिसके अंतर्गत भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की स्थापना हुई थी। जिसकी वर्तमान अध्यक्षा भारतीय प्रशासनिक अधिकारी रवनीत कौर हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश डॉ रत्न बसोत्रा जी को कला संस्कृति और भाषा के राष्ट्रीय उत्थान हेतु लेखकों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को एक ओर छोड़कर मौलिक कर्तव्यों पर आधारित लेखकों द्वारा प्रश्न पूछना भी वर्जित कर रहे हैं। जिससे उनके अवरोधक व्यवहार की पुष्टि होती है। जबकि सत्य यह है कि भारत और भारत के नागरिक आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और हम यह भी नहीं जान पा रहे हैं कि अकादमी द्वारा आयोजित कार्यक्रम दिनांक 08-06-2023 से 09-06-2023 के आयोजित कार्यक्रम में जम्मू और कश्मीर के कितने प्रतिभाशाली कवि पंजिकृत किए और कितने लेखकों को प्रतिभाशाली न मानते हुए तिलांजलि दी गई है? हमें यह भी नहीं बताया जा रहा कि डॉ रत्न बसोत्रा जी के पास "ज्ञान की कसौटी" पर परखने बाला "यंत्र" कौन सा है? जिसके आधार पर वे प्रतिभाशाली और अप्रतिभाशाली लेखकों में भेद करते हैं? अर्थात उनके पास कौन से अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित ब्रह्मास्त्र, ब्रह्मज्ञान या मंत्र हैं? जिसके बलबूते पर वह लेखकों को पहले पंजीकृत करने और उसके उपरांत उन्हें मंचासीन करने के लिए चयनित करते हैं? जबकि लेखकों की चयन प्रक्रिया के लिए मेरे चार दशकों के अनुभव में ऐसी कोई प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा या प्रतिद्विंदिता आयोजित नहीं की गई थी। जिसमें वास्तविक योग्यता के आधार पर चयन हुए हों।
जिसके लिए आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी द्वारा प्राप्त "विद्या वाचस्पति उपाधि" के अंहकार से उत्पन्न नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित करने हेतु हृदय तल से आग्रह करता हूॅं कि वह भारतीय सभ्यता और संस्कृति के लिए अपने ज्ञान-चक्षुओं को खोलें। यदि उन्हें मेरी लेखनी पर भ्रम है तो बताना अत्यन्त आवश्यक है कि मेरी साहित्यिक संघर्षमय यात्रा तत्कालीन डोगरी भाषा की पत्रिका शीराज़ा के मुख्य सम्पादक परम आदरणीय श्री ओम गोस्वामी जी के कार्यकाल से आरम्भ हुई थी। जिसके साक्षी परम पूज्य श्री शाम लाल रैना जी हैं। बताना यह भी अति आवश्यक है कि कुर्सी पूजनीय होती है और आपसे पहले कई महारथी इस कुर्सी की शोभा बढ़ा चुके हैं। आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी ध्यान रहे कि उक्त कुर्सी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण धरती "मृत्युलोक" है। जिसपर परमपिता परमेश्वर ने हमारे मौलिक कर्तव्यों की निष्ठापूर्वक पूर्ति हेतु हमें भेजा है। अर्थात यह कर्मभूमि नामक एक सराय है। जिसके हम शरणार्थी हैं। जहां आना और जाना तय है। यहां आज तक कोई स्थाई नहीं हुआ और न ही कोई होगा। जिसका अंतिम सत्य श्मशानघाट अर्थात मरघट है। चाहे दफना कर किया जाए या जला कर किया जाए। अर्थात हम पंचतत्वों से अस्तित्व में आए थे और पंचतत्वों में ही मिलकर समाप्त हो जाते हैं। जिसका सीधा अर्थ है कि पंचतत्वों के रूप में परमेश्वर से अलग हुए थे और पंचतत्वों को त्यागकर ही हम परमेश्वर में विलीन हो जाते हैं। जीवनभर कामवश, क्रोधवश, मोहवश, ममतवश एवं अहंकारवश "जंगल में मोर नाचने के समान" नाचते रहते हैं। जिसे ईश्वरीय दिव्यदृष्टि के अलावा कोई नहीं देखता। अर्थात आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी "नकारात्मकता" को पूर्णतया छोड़ें और सकारात्मकता से आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी के कुशल नेतृत्व में अकादमी को चार चांद लगाते हुए विकास की बुलंदियों पर ले जाएं। मेरा मानना है कि इस शुभकार्य में "मेरे शिष्य" और अकादमी के सह सम्पादक के रूप में आपके सहयोगी श्री यशपाल निर्मल जी अवश्य आपको सहयोग करेंगे। उनके अलावा देवी तुल्य आदरणीय श्रीमती रीटा खड़याल जी का अनमोल सहयोग भी आपको लाभान्वित करेगा। इनके अलावा मैं जानता हूॅं कि आपके समकक्ष कल्चरल आफिसर आदरणीय श्री शाहनवाज जी का स्नेह/आशीर्वाद सदैव आप पर बना हुआ है। जिसके आधार पर आप मेरी इस जिज्ञासा को भी शांत कर सकते हैं कि "राष्ट्र के नाम संदेश" नामक "शुद्ध हिंदी ग़ज़ल संग्रह" ग़ज़लों की सूची में कौन से स्तर एवं स्थान पर आती है? इसके अलावा उपलब्ध मेरी अन्य उपलब्धियों सहित भ्रष्टाचार पर आधारित विश्व की सबसे लम्बी ग़ज़ल का कीर्तिमान वर्ल्डवाइड बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने मेरे नाम पंजीकृत किया हुआ है। जिसका आपको सम्पूर्ण ज्ञान है। आपको यह भी बताने की आवश्यकता नहीं है कि माननीय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय में मैं अपने मौलिक कर्तव्यों के आधार पर अपने मौलिक अधिकारों की सुनिश्चित सुरक्षा हेतु स्वयं याचिकाकर्ता के रूप में संघर्षरत हूॅं। जहां मैंने अपनी स्वः प्रकाशित नौ पुस्तकों एवं इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस सहित कुल छः विश्व कीर्तिमानों का ब्यौरा दिया है। आप यह भी जानते हैं कि मेरा एक-एक संघर्ष कई-कई विद्या वाचस्पति उपाधियों के समकक्ष है। जो राष्ट्र को समर्पित हैं और उक्त न्यौछावर किए गए एक-एक पीड़ायुक्त पहलुओं पर माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय विचार कर रही है। जिसमें माननीय उच्च न्यायालय ने विरोधियों से जवाब मांग लिए हैं और अति शीघ्र अपना निर्णय भी सुनाएगी। जिसपर मेरा पूर्ण विश्वास है कि एक न एक दिन डिजिटल इंडिया के आधार पर जंगल में नाचा मोर सबको दिखाई देगा। क्योंकि "मोदी है तो मुमकिन है" नारा सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है।
अतः उक्त आलेख के माध्यम से मेरा विनम्रतापूर्वक एक बार पुनः सर्वप्रथम डोगरी और हिंदी शीराज़ा के मुख्य सम्पादक आदरणीय डॉ रत्न बसोत्रा जी एवं जम्मू और कश्मीर प्रशासनिक सेवा अधिकारी के रूप में नियुक्त आदरणीय विद्वान सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के माननीय विद्वान उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा जी, गृह मंत्रालय के माननीय विद्वान मंत्री श्री अमित शाह जी, सांस्कृतिक मंत्रालय के माननीय विद्वान मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी जी, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और माननीय महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी से सादर आग्रह है कि कृपया जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा के आयोजित कार्यक्रमों में पारदर्शी उत्कृष्ट प्रदर्शन एवं राष्ट्रीय मौलिक कर्तव्यों पर आधारित जनचेतना के श्रेष्ठतम प्रदर्शनों को प्राथमिकता देकर सम्पूर्ण लेखक वर्ग को कृतार्थ करें। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।