बहुत प्यासी हैं आँखें धरा सी,
हर तरफ बेबसी है उदा'सी।
ज़िन्दगानी की तमन्ना बुझ गई,
बात उनके किये है जरा सी।
आप भी कम ना थे मुश्किलों में,
मेरे चर्चे तुम्हारी हवा थी।
दिए हैं ज़ख्म गहरे ला-इलाज,
काम आती नहीं अब दवा भी।
बख्स दी जान-दिल मेहरबानी,
थी अदावत बहुत बेवफा सी।
धूप का रंग हम कैसे बताएं,
सिर्फ देखी है मैंने अमासी।
तोड़ कर ले गये फूल कलियाँ,
तितलियाँ कर रहीं अब दुआ सी।
फिर चिरागों से गुल रौशनी भी,
चाँद-तारों पे काली घटा सी।
छुप गये हैं कहीं तो नज़ारे,
गर्दिशों की है आबो -हवा सी।
ये मेरी ख्वाहिशों का मुक़द्दर,
एक महफ़िल की बुझती शमां सी।
जिस्म-ए-कब्र में तुम सुकूं रहो,
रूह घुटती रहेगी धुआं सी।