खाली-पीली बेकार ख्याली बातों से,
दिन अपने न बदलो काली रातों से ।
यारा तेरे ज़ख्म एक दिन भर जाएंगे,
अच्छे मरहम भी मिलते हालातों से।
उठो तुम्हें लड़ना होगा तूफानो से,
न घबराना मौसम की बरसातों से।
जब तक सूरत नहीं बदलती देखेंगे ,
जंग रहेगी तख्त-ताज गलियारों से।
तरकश में हैं तीर अभी उम्मींदों के,
सूरज नहीं बुझेगा निकल अंधेरों से।
हिंसा-औ-अहिंसा को हथियार बनालो ,
कवच बनेगे कल फिर कई प्रकारों से।
संवादों से पुल बनते तटबंध नहीं,
पर बनते हैं स्तम्भ महान विचारों से।
अंक गणित और बीज गणित के समीकरण,
लड़ते हैं हर रोज घृणित बाज़ारों से।
कूटि-नीति से हल हो सकते हैं मसले,
गद्दारों के साथ लड़ो तलवारों से।
शहर-शहर में गली-गली बारूद बिछा,
रखना महफूज मजहबी अंगारों से।
'अनुराग' जरुरी नहीं मिलेगा प्यार,
मत खेलो दिल के नाज़ुक ज़ज्बातों से।