***ग़ज़ल***
धीरे-धीरे ही सही प्यार का एहसास मिल गया यारो,
जो हमारे खिलाफ थे साथ उनका भी मिल गया यारों।
तुम जो चाहो तो मेरे नाम का फतवा निकाल दो साहिब,
सहमा-सहमा डरा-डरा सा शख्श कल रात मर गया यारों।
गौर से देख मुझे ऐ तराशगर पथ्थर नहीं नगीना हूँ,
मेरी फितरत नहीं थी फिर भी साँचे में ढल गया यारों।
मुद्दतों बाद आँगन में कोई आवाज़ सुनाई दी है,
शोर बनके बिखर गए यादें वक़्त ज्यादा बदल गया यारों।
अब नहीं,और नहीं,ना ही कोई लौट कर आने वाला,
हैं खड़े भीड़ में तन्हा वो तो आगे निकल गया यारों।
मेरी कोशिश तेरी आदत आज दोनों बदल गईं फिर भी,
रास्तों पे बिछड़ के मंज़िल तक रंग कुछ और धुल गया यारों।
वक़्त की रेत पर बहता -बहता कहीं ढल गया किनारों में,
मेरी मुठ्ठी में सोना है मेरा सपना पिघल गया यारों।