दूर से अपना लगा पर साथ है तो अजनबी,
क्यों ऐसे रिश्तों की दुहाई दे रहा है आदमीं।
ख्वाब भी टूटे कई,जागा,ना सोया देर तक,
बिखरी उम्मीदें हमारी और आँखों में नमीं।
एक अरसे से हमें तेरी कमीं खलने लगी है ,
मुठ्ठीओं से भी फिसलती जा रही है ज़िन्दगी।
एक दस्तक पर जो खुल जाते थे दरवाजे कभी,
रात-दिन कोशिश हुई खुलती नहीं है चिटखनी।
दिल से कहदो आज तुम ढूंढ ले कोई घर नया,
ना मुकम्बल आसमां है ना ही कदमो में ज़मीं।
शून्य में नज़रे गड़ाए ढूंढते रहते हो क्या तुम,
रास ना आएगी उसको आपकी दरिया-दिली।
वक़्त और पंछी कभी टिकते नहीं इक शाख पे,
क्या एक ही पल में कभी 'अनुराग'जी है ज़िन्दगी।