फूलों से झोली भर लिए डालियां तोड़ दीं,
कांटे मिले तो झट से ,उंगलियां मोड़ लीं।
आदमी हो गया शातिर,सयाना आजकल,
हैं बंद दरवाजे केवल खिड़कियां खोल दीं।
सब अपने-अपने हक़ की बातें ही करेंगे,
काफिरों से सिर्फ उम्मीदें लगाना छोड़ दीं।
अपने ही घर में नहीं महफूज कोई भी,
आदमीं ने प्यार की रस्में निभाना छोड़ दीं।
चार कांधे भी किराए के मिलेंगे दोस्तों,
व्यस्तता में बाप की अर्थी उठाना छोड़ दी।
हो गया है मर्ज दिल भी लाइलाज ज़िन्दगी,
आपने असली दवाई खिलाना छोड़ दी।
रंग फूलों से चुरा कर उड़ गईं हैं तितलियाँ,
अब की मौसम ने बरखा बदलियां छोड़ दीं।