साहिल से बेरुखी थी,लहरों ने ख़ुदकुशी करली,
और इल्ज़ाम समंदर पे लगाने की गुफ्तगू करली।
हर नई शाख पर उल्लू घोंसले बना के बैठे हैं,
आज-फिर उजालों नें अंधेरों से दोस्ती कबूली।
लो आखिर पिघल के बह गया मेरा शुकून-ऐ-दिल,
ग़मों के दामन में मेंरे हिस्से की रौशनी भरली।
धधकती आग है चारों तरफ शोले ही शोले है,
फिरका-परश्ती से बने बारूद से झोली भरली।
वो हाल-ऐ-दिल दुश्मन का भी पूछ लेते आदतन,
ख़फ़ा इस बात से होकर अपनों ने दुश्मनी करली।
तू इतना मत बदल कि कल तेरी पहचान खो दे,
वक़्त ने साजिशन शोहरत-सदाक़त खोखली करदी।
तजुर्बा हो गया है किसने ,कब मेरी खिलाफत की,
'अनुराग'शिद्दत से निभाता आपने दिल्लगी करली।