मानवता तरसती रही माननीय प्यार में।
बर्बाद होता रहा बस भरोसे सरकार में।।
छोड़ो बातें सामाजिक कार्यकर्ताओं की।
धोखेबाजी में सक्षम देखो खड़े कतार में।।
कल भी आए थे चार सज्जन समझाने।
गलती हो गई चार सौ बीस के बाज़ार में।।
भीखमंगे नहीं संवैधानिक न्याय मांगा है।
मेरा भारत महान है मेरे स्वतंत्र विचार में।।
जीवन मेरा सौभाग्य था युवाओं में वृद्ध।
वृद्धावस्था में खिला यौवन की बहार में।।
भ्रष्टाचारमुक्त भारत करने की ठानी थी।
खड़ा हूॅं देखो मैं न्यायाधीश के दरबार में।
जैसा भी हूॅं बदल तो नहीं सकता अब।
परिवर्तन भी हो नहीं सकता व्यवहार में।।
भागो तुम यहां से मेरा भेजा मत खाओ।
कष्ट सहे थे श्रीकृष्ण ने राम अवतार में।।