जब अपनी कहानी पर रोना आया।
तब कांटों की सेज पर सोना आया।।
सिलवटें बिस्तर की कभी गई नहीं।
तथापि याद पाना औ खोना आया।।
मिट्टी हुए छाती फाड़कर भूमि की।
तभी तो धरती में बीज बोना आया।।
भेड़ बकरी पालन प्रशिक्षण लिया।
पुरुषों को पसंद दूध दुहना आया।।
कुछ पता न चला उखड़ गए श्वास।
पापकर्मों को भी नहीं धोना आया।।