कुछ भी सुलझाने के लिए सरकार है कि नहीं।
मंदिर मस्जिद के फसाद का आधार है कि नहीं।।
हर कोई मुझे दुत्कारा कर चला जाता है यूं ही।
किसी को भी मुझसे आंशिक प्यार है कि नहीं।।
स्वार्थ के घोड़ों पर सवार आते हैं विभिन्न रूप।
परंतु बताते नहीं मौलिक अधिकार है कि नहीं।।
सब कुछ न्यौछावर कर दूंगा एक बार पुनः मैं।
सत्य ईश्वर सार्वभौमिक निराकार है कि नहीं।।
गड़बड़ हो ही जाती है सांसारिक सुखों में मां।
ममता विश्वास से बढ़कर संस्कार है कि नहीं।।
संविधान पर आधारित है सम्पूर्ण राष्ट्र हमारा।
यह भारतीय न्यायिक क्षेत्राधिकार है कि नहीं।।