क्षण क्षण सौभाग्य का हर्ष बढ़ता रहा।।
चंद्रमा पर विराजमान हैं अब भारतीय।
आदित्य यान भी चंचल सरकता रहा।।
मेरी औकात थी सो प्रयासरत रहा मैं।
देखलो कछुए सी चाल पनपता रहा।।
ग़ज़ल की मात्राओं से क्या लेना मुझे।
साहित्यिक प्रयास निडर करता रहा।।
सेवा भाव को प्राथमिकता दी थी मैंने।
सर्वविदित है पूर्ण जीवन जलता रहा।।
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।