ग़ज़ल/सजल !
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हानि पहुॅंचाने वाला सदैव पराया नहीं होता।
जो हानि पहुॅंचाए वो मॉं का जाया नहीं होता।।
घर का भेदी लॅंका ढाए, सभी परिचित हैं कि।
दानी व कपटी प्रायः भ्रम या माया नहीं होता।।
आगजनी करते हुए देखे होंगे आपने अनेक।
ताया भतीजे को भड़काए वे ताया नहीं होता।।
मेरे कर्म ही हैं जो ऊंचाइयों पर ले आए मुझे।
देश प्रफुल्लित होता यद्यपि सताया नहीं होता।।
कौन हैं जो नकारात्मकता फैला रहे घर मेरे।
ये प्रश्न प्रश्न ही रहता यदि उठाया नहीं होता।।
ग़ज़ल/सजल!
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जीवन मंत्र प्रायः स्वर्णिम अर्पण होता है।
तोड़ दिया जाता जो धुंधला दर्पण होता है।।
मेरी इच्छाओं की आप मत पूछो मित्रो।
आत्मिक संतुष्ट हूॅं तभी तो तर्पण होता है।।
तेरे स्वभाव अनुसार कुछ परिवर्तित हो।
जीना उसी का जो आपकी शरण होता है।।
राष्ट्रीय भावना दिखाने से दिखाई नहीं देती।
वीरगति प्राप्त करने वाला ही श्रवण होता है।।
सौभाग्य वीरों को माटी देश की सुगंध देती।
यौवन सुख उनका देश पर समर्पण होता है।।
सृजनकार
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय लेखक व राष्ट्रीय पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, आरएसएस का स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जनपद जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।