कर्म का मोल न कोई चुकाना चाहे।
धर्म पर रक्त हर कोई बहाना चाहे।।
मेरी तो पहचान ही राष्ट्रीय तिरंगा है।
शर्म तो उसे है जो भी मिटाना चाहे।।
कुछ रुक जाओ सॉंस उखड़ गई है।
परंतु शूरवीर न कभी सुस्ताना चाहे।।
भ्रम अपना मिटा कर देख लें शत्रु।
नृत्य तॉंडव देखना व दिखाना चाहे।।
छठी का दूध सब को स्मरण ही है।
भूला नहीं न ही कोई भुलाना चाहे।।
खुली ऑंखों से स्वप्न देखते हैं हम।
छुपा लो तारे, जो भी छुपाना चाहे।।
डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू)
जम्मू और कश्मीर