उपरोक्त शब्द समकालीन उच्च शिक्षा प्राप्त एवं जम्मू कश्मीर के विद्वान हिंदी कलमकार श्री निदा नवाज़ जी ने अपनी फेसबुक पर लिखे हैं। उक्त शब्दावली की उत्पत्ति उन्होंने किस भावना से प्रभावित होकर की है? दूसरे शब्दों में कहें तो क्या उन्होंने उक्त शब्दावली अपने किसी विरोधी प्रतिस्पर्धी ग़ज़लकार को व्यंग्यात्मक नुकीले बाणों से घायल करने के लिए की है? उनके उक्त शब्दों के पीछे उनका दीर्घकालीन उद्देश्य क्या है? वह क्या दर्शाना चाहते हैं या क्या सिद्ध करना चाहते हैं? उपरोक्त प्रश्नों के पीछे का रहस्यमय सच वही बता सकते हैं कि भविष्य की गर्भ में क्या छुपा है और इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे?
परिणाम कुछ भी हों परन्तु एक बात तय है कि उपरोक्त प्रश्नों के संबंधित उनके अतिरिक्त दूसरा कोई व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से उचित उत्तर नहीं दे सकता। जबकि मेरे लिए तो यह अत्यन्त ही कठिन है। परन्तु अत्यंत कड़वे सच के आधार पर इतना अवश्य कह सकता हूॅं कि उक्त शब्दावली स्वातंत्र्योत्तर जम्मू कश्मीर की समसमायिक ग़ज़ल पर गहरा प्रभाव डालते हुए बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह अवश्य लगाएगी। यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि उक्त प्रश्नावली के कटघरे से जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू भी बच नहीं सकती। कहने का रहस्यमय अभिप्राय यह भी है कि उक्त कटाक्ष सीधे नपेतुले शब्दों से जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी को भी घायल करता है। जिससे अकादमी के सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास और हिंदी शीराज़ा के मुख्य सम्पादक डॉ रत्न बसोत्रा जी सहित समस्त ग़ज़लकार भी लपेटे में आ जाते हैं। जिनका मौलिक कर्तव्य ही नहीं बल्कि न्यायिक दायित्व बनता है कि वह स्पष्ट करें कि जम्मू कश्मीर का कौन कौन ग़ज़लकार शुद्ध हिंदी भाषा में ग़ज़ल लिखने में सक्षम है और कौन कौन हिंदोस्तानी एवं उर्दूयुक्त ग़ज़ल परोस कर हिंदी भाषा का सत्यानाश कर रहे हैं? जिनमें मेरी ग़ज़लों पर आधारित "राष्ट्र के नाम संदेश" नामक पुस्तक का भी मूल्यांकन अवश्य होगा।
इन्हीं साहित्यिक प्रज्वलित मानवीय मूल्यों पर आधारित फेसबुक के अब तक इकहत्तर ग़ज़लकारों ने श्री निदा नवाज़ जी की उक्त शब्दावली पर अपने तर्क, वितर्क और सुझाव भी रखे। बहुत से ग़ज़लकारों ने समसमायिक ग़ज़ल को "गजल" कहते हुए अपनी चिंता व्यक्त की और किसी ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ा कि उपरोक्त ग़ज़लकार यदि उच्च श्रेणी के ग़ज़लकार होते तो वह फेसबुक पर ही क्यों लिखते? निष्पक्ष न्याय करें तो श्री निदा नवाज़ जी के नेतृत्व में उनकी ही उक्त शब्दावली पर फेसबुक नामक अखाड़े में सम्पन्न हुए शब्दयुद्ध में अभूतपूर्व आनंद आया था। शब्दों के नुकीले चुभते तीर निशाने पर लग रहे थे। कौन रक्तरंजित हो रहा था और कौन प्रसन्नता अनुभव कर रहा था कि चिंताओं एवं संवेदनाओं से दूर हर कोई निशाना साधने में व्यस्त था।
अब एक बात तय है कि हिंदी भाषी ग़ज़ल विधा पर शोध करने की आवश्यकता है और आवश्यकता यह भी है कि जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के आदरणीय सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी, हिंदी शीराज़ा के मुख्य सम्पादक डॉ रत्न बसोत्रा जी, उनके सह सहयोगी श्री यशपाल निर्मल जी, सह सम्पादक श्रीमती रीटा खडयाल जी भी हिंदी भाषा के शीराज़ा में प्रकाशित ग़ज़लों पर विशेष ध्यान देंगे। वे इस पर भी विशेष ध्यान रखेंगे कि स्वातंत्र्योत्तर जम्मू कश्मीर की समसमायिक ग़ज़ल पर लिखी गईं पुस्तकों का स्तर एवं क्रम क्या है और कौन सी पुस्तक स्तर और क्रम के आधार पर क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर है? जिसके लिए मैं आदरणीय श्री निदा नवाज़ जी का हृदय तल से आभारी हूॅं। जय हिन्द। सम्माननीयों ॐ शांति ॐ