इबतदा होगी ना अब अंजाम होगा,
अब सीधा-सीधा जीत एलान होग।
है रगों में जोश तो अब सामने आ,
आपका हर पैंतरा नाकाम होगा।
कोई याराना नहीं एहल-ए-वतन,
शान में अब पेशगी यलगार होगा।
पीर तो होगी मगर कटना पड़ेगा,
गर कोई हिस्सा जिस्म का गद्दार होगा।
आख़िर जवानी है दहकता इंक़लाब,
कल जर्रा-जर्रा मुल्क़ का अंगार होगा।
बुझता सूरज हूँ तो क्या डर जाऊंगा,
सामना फिर रात के उस पार होगा।
ज़िन्दगी बे-रंग है बे-नूर,बे-गानी,
मौत का 'अनुराग'अब दीदार होगा|
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'Dt.25032016/CCRAI/OLP/Doct.